उसने हमारे लिए बहुत ही ज्यादा लाभदाई होती है, यह हमारे शरीर की बीमारियों को जड़ से खत्म कर देती है! सत्यानाशी जैसा नाम सुनकर आपको थोड़ा अजीब-सा लग रहा होगा कि यह क्या चीज है या सत्यानाशी का प्रयोग किन कामों में किया जाता होगा? कुछ लोग ऐसा भी सोच सकते हैं कि जिस पौधे का नाम ही सत्यानाशी है वह केवल नुकसान ही पहुंचाती होगी, लेकिन अगर आप भी ऐसा ही सोच रहे हैं तो आपकी सोच गलत है। सच यह है कि सत्यानाशी एक बहुत ही गुणी पौधा है और सत्यानाशी का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। कितना भी पुराना घाव, खुजली, कुष्ठ रोग आदि हो, आप सत्यानाशी का प्रयोग कर रोग से छुटकाारा पा सकते हैं।
आयुर्वेदिक किताबों में भी यह बताया गया है कि सत्यानाशी कफ-पित्त दोष को खत्म करती है। इसके दूध, पत्ते के रस, बीज के तेल से घाव और कुष्ठ रोग में लाभ होता है। इसकी जड़ का लेप करने से सूजन ठीक होती है। सत्यानाशी का प्रयोग कर आप बुखार, नींद ना आने की परेशानी, पेशाब से संबंधित विकार, पेट की गड़बड़ी आदि में भी फायदा ले सकते हैं।
सत्यानाशी का फल चौकोर होता है जिसके पूरे पौधों पर कांटे होते हैं। इसमें राई के समान छोटे-छोटे श्यामले रंग के बीज भरे रहते हैं। ये दहकते कोयलों पर डालने से भड़भड़ बोलते हैं। उत्तर प्रदेश में इसे भड़भाँड़ भी कहते हैं। सत्यानाशी के किसी भी भाग को तोड़ने से सोने जैसा पीला दूध निकलता है, इसलिए इसको स्वर्णक्षीरी भी कहते हैं, लेकिन आयुर्वेद के अनुसार, सत्यानाशी स्वर्णक्षीरी से पूर्णतः भिन्न है।
आयुर्वेद के अनुसार, स्वर्णक्षीरी को के नाम से जाना जाता है। यह वनस्पति कश्मीर तथा उत्तराखण्ड में 3900 मीटर की ऊँचाई पर प्राप्त होता है।
सत्यानाशी पंचांग से दूध निकाल लें। 1 बूंद पीले दूध में तीन बूंद घी मिलाकर आंखों में काजल की तरह लगाने से मोतियाबिंद और रतौंधी में लाभ होता है।
1 ग्राम सत्यानाशी दूध को 50 मिली गुलाब जल में मिला लें। इसे रोजाना दो बार दो-दो बूंद आंखों में डालें। इससे आंखों की सूजन, आंखों के लाल होने आदि नेत्र विकारों में फायदा होता है।
2-2 बूंद सत्यानाशी के पत्ते के रस को आंखों में डालने से सभी प्रकार के नेत्र रोग में लाभ होता है।
500 मिग्रा से 1 ग्राम सत्यानाशी जड़ के चूर्ण को गर्म जल या गर्म दूध के साथ सुबह-शाम पिलाने से कफ बाहर निकल जाता है। इससे
सांसों के रोग और खांसी में लाभ होता है।
इसका पीला दूध 4-5 बूंद बतासे में डालकर खाने से लाभ होता है।
सत्यानाशी पंचांग का रस निकालकर उसको आग पर उबालें। जब वह रबड़ी के समान गाढ़ा हो जाय तब 500 मिली रस, 60 ग्राम पुराना गुड़ और 20 ग्राम राल मिलाकर, खरल कर लें। इसकी 250 मिग्रा की गोलियां बना लें। 1-1 गोली दिन में तीन बार गर्म पानी के साथ लेने से दमे में बहुत लाभ होता है।
5-10 मिली सत्यानाशी पंचांग रस को दिन में 3-4 बार पिलाने से पेशाब खुलकर आता है तथा जलोदर रोग में लाभ होता है।
2-3 ग्राम बनाएं में सत्यानाशी तेल की 4-5 बूंदें डालकर सेवन करने से भी लाभ होता है।
पेशाब में जलन हो तो सत्यानाशी के 20 ग्राम पंचांग को 200 मिली पानी में भिगो लें। इसका काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाएं। इससे मूत्र विकारों में लाभ होता है।
सुजाक में सत्यानाशी फायदा पहुंचाती है। सुजाक में 2-5 मिली पीले दूध को मक्खन के साथ लें।
इसके अलावा आप इसके पत्तों के 5 मिली रस को 10 ग्राम घी में मिला भी ले सकते हैं। दिन में दो-तीन बार देने से सुजाक में लाभ होता है।
कुष्ठ रोग और रक्तपित्त (नाक-कान अंगों से खून बहने की समस्या) में सत्यानाशी के बीजों के तेल से शरीर पर मालिश करें। इसके साथ ही 5-10 मिली पत्ते के रस में 250 मिली दूध मिलाकर सुबह और शाम पिलाने से लाभ होता है।
सत्यानाशी के दूध को घाव पर लगाने से पुराने और बिगड़े हुए घाव ठीक होते हैं।
सत्यानाशी रस को घाव पर लगाने से घाव ठीक हो जाता है।
सत्यानाशी दूध को लगाने से कुष्ठ तथा फोड़ा ठीक होता है।
सत्यानाशी पंचांग के पेस्ट को पीसकर पुराने घाव एवं खुजली में लगाने से लाभ होता है।
छाले, फोड़े, फुंसी, खुजली, जलन, सिफलिस आदि रोग पर सत्यानाशी पंचांग का रस या पीला दूध लगाने से लाभ होता है।
अतः इन सभी बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है!