वैदिक विज्ञान में कई प्रकार की औषधियों का वर्णन किया गया है! शायद बहुत कम लोगों ने सुगंधबाला के बारे में सुना होगा। सुगंधबाला के गुणों के आधार पर आयुर्वेद में कई तरह के बीमारियों के इलाज के लिए सुगंधबाला का प्रयोग किया जाता है। लेकिन सुगंधबाला का इस्तेमाल किन-किन बीमारियों के लिए प्रयोग में लाया जाता है या इसके और क्या-क्या फायदे हैं इस बारे में जानने के लिए आगे चलते हैं।
सुगंधबाला क्या होता है?
सुगंधबाला 1 मी तक ऊँचा, सीधा, शाकीय पौधा होता है। इसकी जड़ 42.5-50 सेमी लम्बी, 6 मिमी मोटी, चिकनी, भूरे रंग की होती है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इसकी सुगंध कस्तूरी की तरह होती है।
सुगन्धबाला कड़वा, छोटा, लघु, रूखा और ठंडे तासीर का होता है। यह पित्त और कफ कम करनेवाला, पाचक शक्ति व खाने की रुचि बढ़ाने वाला, जलन व बार-बार प्यास लगने की इच्छा कम करने वाला तथा घाव को जल्दी सूखाने में मदद करनेवाला होता है।इसके अलावा सुगंधबाला उल्टी, दिल की बीमारी, बुखार, कुष्ठ, अल्सर, नाक-कान से खून बहना, खुजली तथा जलन से राहत दिलाने में मदद करता है। इसकी जड़ प्रवाहिका, पेटदर्द, ब्लीडिंग तथा आमवात के कष्ट के उपचार सहायता करती है।
सुगंधबाला वृक्ष के फायदे
सुगन्धबाला के फायदे कितने है ये बहुत कम लोगों को पता है। इसके अनगिनत फायदों के कारण ही सुगंधबाला को आयुर्वेद में औषधि के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। चलिये जानते हैं कि किन-किन बीमारियों के लिए सुगंधबाला का प्रयोग कैसे किया जाता है।कई बार पेट में गड़बड़ी होने पर सांसों से बदबू आने की समस्या होती है। हरीतकी को गोमूत्र में पकाकर चूर्ण बनाकर, उसमें जटामांसी, ह्रीबेर तथा कूठ का चूर्ण मिला कर सेवन करने से मुँह की दुर्गंध तथा अन्य मुखरोगों में लाभ होता है।
अक्सर खाने में गड़बड़ी होने पर एसिडिटी हो जाती है जिसके कारण उल्टी होने लगता है। सुगंधबाला का सेवन ऐसे करने से आराम मिलता है।
स्वर्ण गैरिक तथा ह्रीबेर के सूक्ष्म चूर्ण (1-3 ग्राम) में मधु मिलाकर चावल के धोवन में घोलकर पीने से उल्टी में लाभ होता है।
सुगंधबाला से बने पेस्ट को तण्डुलोदक के साथ मिलाकर कर सेवन करने से उल्टी (वमन) में लाभ होता है।
आहार और जीवनशैली में असामांजस्य होने पर दस्त, उल्टी जैसी समस्याएं होने लगती है। सुगंधबाला अतिसार से राहत दिलाने में बहुत मदद करता है।
सोंठ तथा ह्रीबेर से षड्ङ़्गपानीय-विधि द्वारा सिद्ध जल का सेवन करने से अतिसार या दस्त को रोकने में मदद मिलती है।
बेल फल मज्जा, दारुहल्दी, दालचीनी तथा ह्रीबेर चूर्ण (2-4 ग्राम) में मधु मिला कर सेवन करने से तथा अनुपान में चावल के धोवन को पीने से भी दस्त में आराम मिलता है।सुगन्धबाला, धातकीपुष्प, लोध्र, पाठा, लज्जालू, कुटजत्वक्, धनिया, अतीस, नागरमोथा, गुडूची, बिल्वमज्जा तथा शुण्ठी मिलाकर जो काढ़ा बनता है। उसका 10-30 मिली सेवन करने से अतिसार, अरुचि लाभ होता है।
चावल के धोवन में ह्रीबेर का सूक्ष्म चूर्ण, (1-2 ग्राम) शर्करा तथा मधु मिलाकर बच्चों को मात्रानुसार पिलाने से सभी प्रकार के अतिसार, प्यास, जलन से आराम पाने में मदद मिलती है।
अगर किसी बीमारी के एलर्जी के फलस्वरुप बार-बार प्यास जैसा महसूस हो रहा है तो सुगंधबाला का लेप ऐसे लगायें।समान मात्रा में में चंदन, ह्रीबेर, खस तथा पद्मकाष्ठ चूर्ण का लेप बनायें और उसको सिर पर लेप की तरह लगाने से प्यास लगना कम होता है।
अगर पेचिश ठीक होने का नाम नहीं ले रहा है तो सुगंधबाला का इस्तेमाल ऐसे करें। मोथा, खस, इंद्रयव, सुगन्धबाला, मोचरस तथा बिल्वमज्जा इन सब चीजों को पीसकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट से सिद्ध घी का प्रयोग करने से संग्रहणी (पेचिश) रोग में लाभ होता है।
हर्पिस के दर्द और जलन से आराम दिलाने में सुगंधबाला मदद करता है। पुण्डरिया काठ, सुगन्धबाला, दारुहल्दी, मुलेठी तथा बला को अलग-अलग अथवा एक साथ मिलाकर, पीसकर, घी मिलाकर लेप करने से विसर्प या हर्पिस में लाभ होता है।
बेल फल मज्जा, दारुहल्दी, दालचीनी तथा ह्रीबेर चूर्ण (2-4 ग्राम) में मधु मिला कर सेवन करने से तथा अनुपान में चावल के धोवन को पीने से भी दस्त में आराम मिलता है।सुगन्धबाला, धातकीपुष्प, लोध्र, पाठा, लज्जालू, कुटजत्वक्, धनिया, अतीस, नागरमोथा, गुडूची, बिल्वमज्जा तथा शुण्ठी मिलाकर जो काढ़ा बनता है। उसका 10-30 मिली सेवन करने से अतिसार, अरुचि लाभ होता है।
चावल के धोवन में ह्रीबेर का सूक्ष्म चूर्ण, (1-2 ग्राम) शर्करा तथा मधु मिलाकर बच्चों को मात्रानुसार पिलाने से सभी प्रकार के अतिसार, प्यास, जलन से आराम पाने में मदद मिलती है।
अगर किसी बीमारी के एलर्जी के फलस्वरुप बार-बार प्यास जैसा महसूस हो रहा है तो सुगंधबाला का लेप ऐसे लगायें।समान मात्रा में में चंदन, ह्रीबेर, खस तथा पद्मकाष्ठ चूर्ण का लेप बनायें और उसको सिर पर लेप की तरह लगाने से प्यास लगना कम होता है।
अगर पेचिश ठीक होने का नाम नहीं ले रहा है तो सुगंधबाला का इस्तेमाल ऐसे करें। मोथा, खस, इंद्रयव, सुगन्धबाला, मोचरस तथा बिल्वमज्जा इन सब चीजों को पीसकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट से सिद्ध घी का प्रयोग करने से संग्रहणी (पेचिश) रोग में लाभ होता है।
हर्पिस के दर्द और जलन से आराम दिलाने में सुगंधबाला मदद करता है। पुण्डरिया काठ, सुगन्धबाला, दारुहल्दी, मुलेठी तथा बला को अलग-अलग अथवा एक साथ मिलाकर, पीसकर, घी मिलाकर लेप करने से विसर्प या हर्पिस में लाभ होता है।