सामान्य तौर पर गेहूं को अनाज के रूप में प्रयोग किया जाता है, परंतु यह औषधि हो सकती है यह किसने सोचा होगा! गेहूं की रोटी बनती है जिसे आप सभी रोज खाते होंगे। गेहूं से कई और भी तरह के स्वादिष्ट, खाद्य पदार्थ तैयार किए जाते हैं। इसकी भूसी (चोकर) जानवरों के लिए बहुत उपयोगी होती है। इसके अलावा क्या आप जानते हैं कि गेंहू का उपयोग रोगों को ठीक करने के लिए भी किया जाता है। जी हां, आप जिन गेहूं की रोटी का रोज भोजन करते हैं उसका औषधीय प्रयोग भी किया जाता है।आपके लिए यह जानकारी बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि गेहूं हर घर में होता है। आप भी गेंहू के औषधीय प्रयोग की जानकारी ले लीजिए ताकि बीमार होने की स्थिति में रोगों को ठीक करने में गेंहू का पूरी तरह इस्तेमाल कर सकें।इसकी ऊंचाई 60 से 150 सेमी होती है। इसका तना खोखला और होता है और इसमें गांठें होती हैं। इसकी पत्तियां लंबी और संकरी होती हैं। पत्तियों पर धारियां बनी होती हैं। इसके फल पीले, खूनी लाल या भूरे रंग के होते हैं। ये फल गोलाकार, फूले हुए व दोनों सिरों पर चपटे होते हैं। इसके एक भाग में गहरी धारी बनी होती है।
आयुर्वेद के ग्रंथ भावप्रकाश निघण्टु में इसके तीन किस्मों के बारे में बताया गया है-
- महागोधूम (इसके दाने बड़े होते हैं),
- मधूली (यह महागोधूम की अपेक्षा कुछ छोटा होता है) और
- दीर्घ गोधूम या नन्दीमुख (यह शूक रहित होता है यानी इसका अगला हिस्सा नुकीला नहीं होता है)।
गेहूं खाद्यान्न फसल होने के साथ साथ औषधीय गुणों से भरपूर अन्न है। इसका नियमित सेवन कई बीमारियों को दूर रखता है। खांसी, दर्द, गैस, हृदय रोग इत्यादि में गेहूं बहुत ही गुणकारी है। गेहूं की हरेक प्रजाति इन गुणों से भरपूर होती है।
गेहूँ, जौ और काकोली इत्यादि गण की औषधियों के 2 से 4 ग्राम बारीक चूर्ण को दूध, शहद और घी के साथ मिलाकर सेवन करने से तमाम तरह की खांसी में लाभ होता है। खांसी चाहे पित्त असंतुलन के कारण होती हो या टीबी की बीमारी अथवा अन्य कारण से हो। हर तरह की खांसी में इससे लाभ होता है।
गेहूं के 2 से 4 ग्राम चूर्ण को दूध के साथ लेने से भी पित्त असंतुलन के कारण हुई खांसी में काफी राहत मिलती है।
15-20 ग्राम गेहूं को 250 मिलीलीटर पानी में पकाएं। 1/3 भाग शेष रह जाने पर उसमें स्वादा के अनुसार सेंधा नमक मिलाकर पिलाने से भी खांसी मिटती है।
गेहूं और अर्जुन की छाल की बराबर-बराबर मात्रा से चूर्ण बना लें। इसकी 2 से 4 ग्राम मात्रा को गुड़, घी तथा तेल में पकाकर खाने से हृदय के रोगों में लाभ होता है। इस योग के सेवन के बाद केवल दूध पीने से भी इन रोगों में लाभ होता है।
इसके अलावा, गेहूँ तथा अर्जुन की छाल के चूर्ण को गाय के घी और बकरी के दूध में पकाएं। इसमें शहद और शक्कर के साथ मिलाकर सेवन करने से भी हृदय रोगों में लाभ होता है।
पुराने गेहूँ के चूर्ण से बने खाद्य पदार्थों का शहद के साथ सेवन करने से पेट संबंधी दिक्कतों, पेट का दर्द इत्यादि में लाभ होता है।अपच और भूख न लगने जैसी परेशानी में इस तरह की बीमारियों का सामना कर रहे व्यक्ति को गेहूं के चोकर की रोटी बनाकर खिलाने से फायदा होता है।
गेहूं से बने आहारों का नियमित सेवन करना डायबिटीज में सुधार करने वाला होता है। रक्त में से शर्करा को कम करने में गेंहूं के फायदे बहुत लाभदायक होते हैं।मूत्राशय की छोटी पथरी का इलाज करने के लिए गेहूं का प्रयोग किया जा सकता है। गेहूं और चने का काढ़ा बना लें। इसे 15-20 मिलीलीटर मात्रा में पिलाने से किडनी और मूत्राशय की छोटी पथरी गलकर निकल जाती है।अंडकोष बढ़ने के कारण दर्द हो रहा हो तो, इसके निदान के लिए भेड़ का दूध लें। इसमें गेहूं और कुन्दरु के चूर्ण को गर्म करें। इसे अंडकोष पर लेप करने से दर्द शीघ्र शांत हो जाता है।
योनि में होने वाली खुजली, गांठ आदि की स्थिति में गेहूं का आटा और रेवतिका को घोल का प्रयोग करना चाहिए। इस घोल को गुनगुना कर योनि पर इसका लेप कर सेंकने से इन समस्याओं में लाभ होता है।जिनकी हड्डी टूटी हो, वे, अस्थि शृंखला (हड़जोड़), लाख, गेहूं और अर्जुन की छाल को बराबर-बराबर मात्रा में मिला लें। इससे तैयार चूर्ण की 5 से 10 ग्राम मात्रा में घी मिलाकर या पकाकर सेवन करने के बाद दूध पीने से लाभ होता है। हड्डियों के टूटने और इनके अपने स्थान से खिसकने की स्थिति में भी इस योग से लाभ होता है।