थायराइड हमारे शरीर में होने वाली बहुत बड़ी समस्या है! योगासनों के अभ्यास शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की सेहत को बेहतर बनाए रखने के लिए कारगर माना जाता है। योग आपकी ऊर्जा को संतुलित करने, शरीर के लचीलेपन को बढ़ाने और तनाव को दूर करने के लिए कारगर माने जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि योगसनों से हार्मोन संतुलन बनाए रखने में भी मदद मिलती है, ऐसे में यह थायरॉइड की समस्या से परेशान लोगों की सेहत को ठीक बनाए रखने में सहायक अभ्यास हो सकता है।योग मुद्राएं थायरॉइड ग्रंथि के कार्यों को आसान बनाने के साथ हार्मोन के स्तर को संतुलित करने में कारगर हो सकती हैं।कई अध्ययनों में थायरॉइड के कामकाज में सुधार करके हार्मोंन संतुलन को बेहतर बनाए रखने में नियमित रूप से योगासनों के अभ्यास को लाभकारी बताया गया है। जिन लोगों को थायरॉइड की समस्या का जोखिम होता है उनके कामकाज को भी ठीक रखकर इस तरह की समस्याओं से बचाव करने के लिए योगासनों का अभ्यास करना विशेष लाभकारी माना जाता है।
कौन से है योगासन?
सर्वांगासन के नियमित अभ्यास की आदत शरीर के लिए कई प्रकार से लाभकारी हो सकता है। पैरों और कंधों को टोन करने के साथ गर्दन से अतिरिक्त तनाव को दूर करने तथा थायरॉइड और पेट के अंगों को उत्तेजित करने के लिए नियमित तौर पर इस योग का अभ्यास किया जा सकता है। हाइपो और हाइपरथायरायडिज्म दोनों ही स्थितियों के लिए इस योग के अभ्यास को अच्छा माना जाता है। तनाव को दूर करने के साथ रजोनिवृत्ति से संबंधित जटिलताओं को कम करने में भी इस योग का अभ्यास करना लाभकारी हो सकता है।
मत्सयासन या फिश पोज योग का अभ्यास, शरीर के महत्वपूर्ण हिस्सों छाती, एब्स, हिप फ्लेक्सर्स और गर्दन को स्ट्रेच करने से लेकर हार्मोंन्स के संतुलन को बेहतर बनाए रखने के लिए सहायक माना जाता है। यह गर्दन की समस्याओं से परेशान लोगों के लिए भी कारगर योगाभ्यास हो सकता है। गर्दन में मौजूद थायरॉइड ग्रंथि को उत्तेजित करने के साथ कंधों और मस्तिष्क के लिए भी इसे फायदेमंद अभ्यास के तौर पर जाना जाता है।
उष्ट्रासन योग, कंधों और पीठ की स्ट्रेचिंग और इसे मजबूत बनाए रखने के साथ छाती को खोलकर श्वसन में सुधार करने और पाचन कार्यों को बेहतर बनाए रखने के लिए फायदेमंद माना जाता है। यह गर्दन की स्ट्रेचिंग करने के साथ रक्त परिसंचरण को बढ़ाकर थायरॉयड ग्रंथि को उत्तेजित करता है। पीठ के निचले हिस्से के दर्द से राहत पाने और शारीरिक मुद्रा में सुधार करने के लिए भी इस योग के नियमित अभ्यास की आदत को कारगर माना जाता है।
सबसे पहले वज्रासन में बैठ जाइये.
अब घुटनों के बल खड़े हो जाईए और भुजाओं के बगल में रख ले.
घुटने और पैर के पंजे एक साथ रखने की कोशिसकरिये, अगर कोई दिक्क्त महसूस हो तो इसे अलग-अलग कर सकते हैं।
अब पीछे की ओर झुकिए, दाहिने हाथ से दाहिनी एड़ी को और फिर बाएँ हाथ से बायीं एड़ी पड़ने की कोशिस करिये।
ध्यान रहे कोई जोर जबरजस्ती नहीं करना है. जितना आराम से हो सके उतना करना है.
उदर को आगे की ओर उभरना है, जाँघों को सीधा रखने का प्रयास करिये, और सिर एवं मेरुदण्ड को जितना सम्भव हो पीछे की ओर झुकाये.
खिंचाव के समय सम्पूर्ण शरीर, विशेषकर पीठ की पेशियों को को आराम दें।
शरीर के भार को पैरों और भुजाओं द्वारा समान रूप से सहारा दीजिए।
पीठ को धनुषाकार बनाये रखने के लिए कन्धों को भुजाओं का सहारा दीजिए.
अंतिम स्थिति में जितनी देर आराम से रुक सकते हो रुके।
अब एक हाथ को एड़ी से अगलकरिये, फिर दूसरे हाथ को, और धीरे धीरे प्रारम्भिक स्थिति में लौट आइए.
यह एक चक्र पूरा हुआ!
समान्यतः गत्यात्मक आसान के रूप में इसे 3 बार तक अभ्यास कर सकते है. जैसे जैसे अभ्यास में निपुर्णता होती जाये, इसकी संख्या को आप बड़ा सकते है!
जिन लोगों को गर्दन में तनाव या चोट की परेशानी है, वे लोग यह योगासन ना करें.
लो ब्लड प्रेशर के रोगी भी इस आसन से बचें.
अगर आपके घुटनों में दर्द रहता है, तो यह आसन करते हुए सावधानी बरतें और घुटनों के नीचे तकिया भी लगा सकते हैं.
अगर शुरुआत में आपके हाथ तलवों तक नहीं पहुंच पा रहे, तो उन्हें कूल्हों पर भी रख सकते हैं!
उष्ट्रासन के लाभ।
पाचन शक्ति बढ़ता है।
सीने को खोलता है और उसको मज़बूत बनाता है।
पीठ और कंधों को मजबूती देता है।
पीठ के निचले हिस्से में दर्द से छुटकारा दिलाता है।
रीढ़ की हड्डी में लचीलेपन एवं मुद्रा में सुधार भी लाता है।
मासिक धर्म की परेशानी से राहत देता है।