Saturday, March 15, 2025
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गांधी से कम नहीं सावरकर, क्या ये है सरकार का नया दाव?

सरकार ने क्रांति वीर सावरकर की तुलना गांधीजी से कर दी है! सावरकर का इतिहास में स्‍थान और स्‍वतंत्रता आंदोलन में उनका सम्‍मान महात्‍मा गांधी से कम नहीं है…’ ये लाइनें हैं मासिक पत्रिका ‘अंतिम जन’ की। इसका ताजा इश्‍यू विनायक दामोदर सावरकर को समर्पित है। इस मैगजीन का प्रकाशन गांधी स्‍मृति और दर्शन स्‍मृति करता है। यह पब्लिकेशन संस्‍कृति मंत्रालय के अंतर्गत आता है। इसके चेयरपर्सन प्रधानमंत्री हैं। ताजा अंक में दावा किया गया है कि इतिहास में सावरकर का दर्जा महात्‍मा गांधी से कम नहीं है। यह और बात है कि सावरकर ऐसा चेहरा हैं जिन्‍हें कोई हीरो तो कोई विलेन मानता है। हिंदूवादी नेता उन्‍हें हिंदुत्व के दर्शन का सूत्रधार मानते हैं। सरकार की मैगजीन में महात्‍मा गांधी से वीर सावरकर की तुलना का आखिर क्‍या मतलब है?

इंडियन एक्‍सप्रेस ने इसे लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसके मुताबिक, जीएसडीएस के वाइस चेयरमैन और बीजेपी नेता विजय गोयल ने अंक की प्रस्‍तावना में सावरकर को महान देशभक्‍त बताया है। उन्‍होंने इसमें खेद जताते हुए लिखा है कि जिन लोगों ने स्‍वतंत्रता संग्राम में एक दिन भी जेल में नहीं ब‍िताया और समाज में कोई योगदान नहीं दिया, वे सावरकर जैसे देशभक्‍तों की आलोचना करते हैं। सावरकर का इतिहास में स्‍थान और स्‍वतंत्रता आंदोलन में उनका सम्‍मान महात्‍मा गांधी से कम नहीं है।

गोयल ने लिखा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनके योगदान के बावजूद सावरकर को कई वर्षों तक स्वतंत्रता के इतिहास में उचित स्थान नहीं मिला। जीएसडीएस के अधिकारियों के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि 28 मई को सावरकर की जयंती है। इसे देखते हुए जून का अंक सावरकर पर समर्पित किया गया है। जीएसडीएस स्वतंत्रता के 75 साल के उपलक्ष में पत्रिका के आगामी अंकों को स्वतंत्रता सेनानियों पर समर्पित करना जारी रखेगी।

जीएसडीएस की स्‍थापना 1984 में हुई थी। इसका मकसद महात्मा गांधी के जीवन, मिशन और विचारों को अलग-अलग सामाजिक-शैक्षिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिये प्रचारित करना है। गांधीवादियों का मनोनीत निकाय और विभिन्न सरकारी विभागों के प्रतिनिधि इसकी गतिविधियों का मार्गदर्शन करते हैं। मैगजीन का ताजा अंक 68 पन्‍नों का है। लगभग एक तिहाई अंक हिंदुत्व विचारक को समर्पित है। इसमें सावरकर पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, मराठी रंगमंच और फिल्म लेखक श्रीरंग गोडबोले, राजनीतिक टिप्पणीकार उमेश चतुर्वेदी और लेखक कन्हैया त्रिपाठी सहित कई नामचीन हस्तियों के लेख हैं। हिंदुत्व पर एक निबंध भी है, जिसे सावरकर ने अपनी इसी नाम की पुस्तक से लिखा है। गोयल की प्रस्तावना के बाद भारत में धार्मिक सहिष्णुता पर महात्मा गांधी का एक निबंध है।

वाजपेयी का निबंध सावरकर को ‘व्यक्तित्व नहीं बल्कि एक विचार’ बताता है। यह कहता है कि सावरकर ने गांधी से पहले ‘हरिजन’ समुदाय के लोगों के उत्थान की बात की थी। गोडबोले ने सावरकर और गांधी की हत्या के मुकदमे (वीर सावरकर और महात्मा गांधी हत्या अभियोग) के बारे में लिखा है। लेखक मधुसूदन चेरेकर ने गांधी और सावरकर के बीच संबंधों के बारे में लिखा।

बंटी हुई राय

सावरकर ऐसी शख्‍सीयत हैं जिन पर लोगों की राय बंटी हुई है। अंडमान की जेल में काला पानी की सजा काटने वाले वीर सावरकर को एक वर्ग हीरो मानता है। इसके उलट दूसरा वर्ग ऐसा है जो जेल से रिहाई के लिए ब्रिटिश राज को दी गई उनकी ‘दया याचिकाओं’ को आधार बना उन्हें ‘कायर’ बताता है। वीर सावरकर के आलोचक उनके ‘माफीनामे’ का प्रचार करते हैं। सावरकर का नाम महात्मा गांधी की हत्या में भी आया था। वह जेल भी गए। लेकिन, 1949 में वह बरी हो गए थे। अब बीजेपी और राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ (आरएसएस) सावरकर को लेकर आक्रामक हैं। दोनों वामपंथी इतिहासकारों पर सावरकर के चरित्र हनन का आरोप लगाते रहे हैं।

तुलना का क्या मतलब?

हाल में एक पुस्‍तक विमोचन में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने ऐलान किया था कि सावरकर युग आ चुका है। इतिहास में सावकर के बलिदान पर शायद ही किसी को शक हो। लेकिन, हिंदुत्‍ववादी विचारधारा के कारण वह एक बड़े तबके के लिए अछूत रहे हैं। देश के बदले माहौल में बीजेपी इस धारणा को बदलना चाहती है। पार्टी सावरकर को वह सम्‍मान दिलाना चाहती है जिसके वह असल में हकदार हैं। इसकी कोशिश वह करती रही है। साल 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। तब सावरकर को ‘भारत रत्न’ देने की सिफारिश की गई थी। हालांकि, तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने इस सिफारिश को ठुकरा दिया था। तब से आज स्थितियां बदल चुकी हैं। अटल बिहारी के नेतृत्व में बीजेपी की मिली-जुली सरकार थी। दूसरी ओर आज नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में है। बीजेपी ने 2020 के महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव में भी सावरकर को देश का सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान देने का वादा किया था।

सावरकर का जन्म ब्राह्मण हिंदू परिवार में हुआ था। उनके भाई-बहन गणेश, मैनाबाई और नारायण थे। सावरकर अपनी बहादुरी के लिए जाने जाते थे। यही कारण था कि उन्हें ‘वीर’ कहकर बुलाया जाने लगा। वीर सावरकर ने ‘मित्र मेला’ के नाम से एक संगठन की स्थापना की थी। इसने लोगों को भारत की ‘पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता’ के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया था। सावरकर ने पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज से बीए किया था।

जून 1906 में वह बैरिस्टर बनने के लिए लंदन गए थे। लंदन में रहते हुए उन्होंने इंग्लैंड में भारतीय छात्रों को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ प्रोत्साहित किया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हथियारों के इस्तेमाल का समर्थन किया। 13 मार्च 1910 को सावरकर को लंदन में गिरफ्तार किया गया था। उन पर नासिक के कलेक्टर जैकसन की हत्या के आरोप लगे थे। उन्‍हें मुकदमे के लिए भारत भेज दिया गया।

हालांकि, उन्हें ले जा रहा जहाज जब फ्रांस के मार्सिले पहुंचा, तो सावरकर भाग गए। लेकिन, फ्रांस की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 24 दिसंबर 1910 को सावकर को अंडमान में जेल की सजा सुनाई गई थी। सावरकर 1921 तक सेलुलर जेल में यातनाएं सहते रहे। इस दौरान उन्होंने 6 बार ब्रिटिश सरकार के पास दया याचिका भेजी थी। सावरकर की राय थी कि एक क्रांतिकारी का पहला फर्ज खुद को गुलामी के चंगुल से आजाद कराना है। सावरकर के आलोचक इसे अंग्रेजों के सामने उनके सरेंडर के रूप में देखते हैं। वहीं, प्रशंसक इसे उनकी रणनीति का हिस्सा बताते हैं।

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