आज यानी 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) है. जम्मू-कश्मीर के कारगिल में भारत और पाकिस्तान के बीच मई से जुलाई 1999 तक युद्ध चला था. इस युद्ध में भारती की जीत हुई थी. आज से 23 साल पहले लड़े गए इस युद्ध में पाकिस्तान को भारत से मुंहतोड़ जवाब मिला था. सेना ने घुसपैठियों को मार भगाया था. इस जंग में जीत के उपलक्ष्य में हर साल 26 जुलाई को ‘विजय दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है. आज के दिन कारगिल की जंग में अपने प्राणों की आहुति देने वाले सैनिकों को सम्मानित किया जाता है.
26 जुलाई, 1999 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय के तहत पाकिस्तान सैनिकों को हराया था. तब से देश के बहादुर सैनिकों द्वारा दिखाए गए अदम्य साहस, वीरता और सर्वोच्च बलिदान की याद में उस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.
शहीदों को किया जा रहा याद
बता दें कि इससे पहले 1965 और 1971 की जंग में भी पाकिस्तान भारत से हार चुका है. कारगिल की यह जंग 60 दिन से ज्यादा चली थी. इस जंग को ऑपरेशन विजय नाम दिया गया. इस जंग में पाकिस्तान से लड़ते हुए भारत के 527 जवान शहीद हो गए थे. आज सभी देशवासी देश के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले शहीदों को याद कर रहे हैं. देश उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा है. भारतीय सेना के साहस और शौर्य को नमन किया जा रहा है.
पूरा देश गौरवान्वित
आज के दिन काफी लोग रक्तदान भी करते हैं. यह दिन भारत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है. पूरा देश शहीदों के साहस और शौर्य को याद कर गौरवान्वित है. हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति देने वाले जवानों को आज के दिन याद किया जाता है. कई बड़ी हस्तियां उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करती हैं. इस अवसर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जम्मू पहुंचे और शहीदों को याद किया. उन्होंने कारगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के परिवार से मुलाकात भी की.
हाजी यार मोहम्मद को विजय दिवस के कार्यक्रम का नहीं मिला न्योता
हाजी यार मोहम्मद पाकिस्तान के सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार निशान-ए-हैदर से सम्मानित सैनिक के शव को भी दफनाया. लेकिन हाजी यार मोहम्मद खान को लगता है कि देश उनके बलिदान को भूल गया है. उनकी शिकायत है कि विजय दिवस के कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता तक नहीं मिला. हाजी यार मोहम्मद को सबसे ज्यादा दुख मशकों की उपेक्षा को लेकर भी है. उनका कहना है कि मश्कोह ने कारगिल की जंग में सबसे ज्यादा कुर्बादी दी, उसे याद कोई नहीं करता. मशकों में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है. घाटी में रहने वाले ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल सदस्य नूर मोहम्मद के अनुसार सरहद के पास होने के बावजूद भी विकास का फंड नहीं मिला है.
मश्कोह घाटी में लड़ी गई लड़ाई किसी को भी आज याद नहीं रही
सरहद पर रहनेवाले लोगों को एक्चुअल लाइन ऑफ कंट्रोल रेसीडेंट का सर्टिफिकेट नहीं दिया जा रहा है. सर्टिफिकेट की मदद से नौकरी में आरक्षण और अन्य सुविधाएं मिलती हैं. सरकार की अनदेखी के चलते निवासी बहुत निराश हैं. कारगिल जंग सिफ नाम से कारगिल में लड़ी गयी है लेकिन असली जग मशकों में लड़ी गयी. मश्कोह में लड़ी गई लड़ाई किसी को भी आज याद नहीं है. लोग जम्मू-कश्मीर और कारगिल की तरह इलाके को बॉर्डर टूरिज्म के लिए खोलने की मांग कर रहे हैं ताकि सरकार अगर खुद मदद न करे तो कम से कम पर्यटन के जरिए इलाका का पिछड़ापन दूर हो जा रहा है ।
जवानों ने दिखाया था अद्भुत पराक्रम
कारगिल के दुर्गम पहाड़ों की चोटियां भारतीय सेना के साहस का गवाह है। सेना ने 18 हजार फीट की ऊंचाई पर चढ़कर दुश्मनों को नेस्तानाबूद करने का काम किया था। इस युद्ध में दुश्मनों से लड़ते-लड़ते मेरठ के पांच कारगिल के दुर्गम पहाड़ों की चोटियां भारतीय सेना के अदम्य साहस की गवाह हैं। 18 हजार फुट ऊंचाई पर चढ़कर दुश्मन को नेस्तनाबूद करना दुनिया का सबसे जटिल काम था, लेकिन भारतीय सेना ने अदम्य साहस का परिचय देकर इसे अंजाम दिया।आज से 23 साल पहले 26 जुलाई 1999 को भारतीय रणबांकुरों ने विजयश्री प्राप्त की। सीमित हथियार और सीमित खाद्य पदार्थों के साथ देशभक्ति के जज्बे से ओतप्रोत भारतीय सैनिकों ने कारगिल में दुश्मन को पीछे हटने को मजबूर कर दिया था।26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने कारगिल से पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ भगाया। तब से हम 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं। आज का दिन भारतीय सेना के पराक्रम का दिन है। शहीदों को नमन करने का दिन है।