क्या आप जानते हैं कि कारगिल युद्ध में इजराइली हथियारों ने भारत का काफी हद तक साथ निभाया था! भारत और पाकिस्तान के बीच 23 साल पहले कारगिल में एक ऐसा संघर्ष हुआ था जिसे आज भी दुश्मन भुला नहीं पाया है। कश्मीर पर कब्जे की सपना संजोये पाकिस्तानी आतंकियों ने द्रास सेक्टर के कारगिल में घुसपैठ कर ली थी। मई 1999 में इसकी शुरुआत हुई थी और 26 जुलाई 1999 को भारत की जीत के साथ ये अपने अंजाम पर पहुंचा। इस जंग के बारे में जब-जब बात होगी तब-तब भारत के उस दोस्त का जिक्र भी होगा जिसने कारगिल में पाकिस्तान उसकी हकीकत बता दी थी। इजरायल, वो देश जो हर मुसीबत में भारत के साथ खड़ा नजर आया है। भारतीय सेना और भारतीय वायुसेना (IAF) के पास इतने हथियार तो थे कि वो पाकिस्तान को जवाब दे सके लेकिन इजरायली मदद ने उन्हें दुश्मनों पर और ज्यादा सफलता हासिल करने में मदद की थी।
एतिहासिक ऑपरेशन सफेद सागर
कारगिल का युद्ध, इतिहास की वो घटना है जिसमें भारत की सेनाओं ने दुनिया को बता दिया था कि उन्हें हल्के में लेने की भूल न की जाए। मई 1999 में जब पाकिस्तान के आतंकी और सैनिक सीमा पार करके भारत में घुस आए तो उन्हें खदेड़ने के लिए आईएएफ ने 11 मई को ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ लॉन्च किया था। 23,000 फीट की ऊंचाई पर इस मिशन को चलाना आसान काम नहीं था। इस मिशन को लॉन्च करने का मकसद सेना को सपोर्ट मुहैया कराना था। आईएएफ ने इस ऑपरेशन में मिग-27, मिग-21 और मिग-29 जैसे फाइटर जेट्स को तैनात कर दिया था। 27 मई को आईएएफ ने मिग-21 और मिग-27 क्रैश हो गए। इसके बाद आईएएफ ने फ्रांस के फाइटर जेट मिराज2000 को इसमें तैनात किया और वेस्टर्न एयर कमांड ने इस पूरे ऑपरेशन पर नजर रखी।
ऑपरेशन ‘सफेद सागर’ को आईएएफ ने तीन फेज में लॉन्च किया था। पहले फेज में दुश्मन के ठिकानों की रेकी की गई जिसमें उनके पास मौजूद हथियार और बंकरों की जानकारी शामिल थी। इसके बाद ऊंची चोटियों पर बैठे दुश्मन के कैंप्स, उनके हथियार और उनकी भोजन के साथ ऑयल सप्लाई पर वायुसेना ने हमला बोला। तीसरे फेज में इजरायल की तरफ से मिले लेजर गाइडेड बमों से हमला किया गया। इजरायल ने उसे समय आईएएफ की बड़ी मदद की और दुर्गम जगहों के लिए लेजर गाइडेड बम और मिसाइल के साथ नाइट विजन डिवाइस भी आईएएफ को मुहैया कराईं। इसके साथ ही इजरायल के हेरॉन ड्रोन के जरिए दुश्मन की सही लोकेशन खोजने में भी मदद मिली थी।इजरायल की मदद के बारे में निकोलस ब्लारेल की किताब द इवॉल्यूशन ऑफ इंडियाज इजरायल पॉलिसी (OUP) में भी जानकारी मिलती है। इसमें उन्होंने लिखा है, ‘पाकिस्तान की तरफ से चरणबद्ध तरीके से घुसपैठ को फॉरवर्ड पोस्ट्स पर अंजाम दिया गया था। पहाड़ियों की ऊंचाई से ये भी साबित हो गया था कि भारतीय सेना इसके लिए तैयार नहीं थी और न ही वो एलओसी की तरफ से होने वाली घुसपैठ को रोक सकती थी। उनके पास पहाड़ों पर युद्ध लड़ने और ट्रेनिंग का भी अभाव था।’
25 मई को वायुसेना को एलओसी पार करने का आदेश मिला और घुसपैठियों को उनके अंदाज में जवाब देने के लिए कहा गया। हालांकि तत्कालीन वाजपेयी सरकार की तरफ से सिर्फ हेलीकॉप्टर प्रयोग करने की सलाह दी गई थी। आईएएफ ने सरकार को बताया दिया था कि हेलीकॉप्टर इसके लिए सही ऑप्शन नहीं होगा। ऑपरेशन सफेद सागर को आज भी आईएएफ के इतिहास में एक मील का पत्थर माना जाता है। यह पहला मौका था जब आईएएफ को इतनी ऊंचाई पर किसी ऑपरेशन को अंजाम देना था। कारगिल के पर्यावरण में मिशन के अलावा फ्यूल को बचाकर रखना सबसे अहम था। मिग और मिराज वायुसेना की ताकत थे।
कब हुआ पहला हमला?
वायुसेना का पहला हमला 26 मई, 1999 को सुबह 6:30 बजे शुरू हुआ। इस अटैक में मिग-21, मिग-27 एमएल और मिग-23 बीएन फाइटर जेट्स शामिल थे। हमले के समय मिग-29 ने लड़ाकू विमानों को कवर देने के साथ एयर डिफेंस का काम किया था। हमले के बाद कैनबरा ने दुश्मन के नुकसान की रेकी भी की थी। मिग-29 ने कारगिल के पहाड़ों पर जमे दुश्मनों पर आर-77 मिसाइलों से हमला बोला था। 60 दिन तक ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ चला था और इस दौरान 300 एयरक्राफ्ट ने 6500 सॉर्टीज को पूरा किया। फाइटर जेट्स ने 1235 सॉर्टीज में 24 टारगेट्स पर हमला किया। कारगिल की ऊंचाई समुद्र तल से 16,000 से 18,000 फीट है। ऐसे में फाइटर जेट्स को 20,000 फीट से कुछ ज्यादा की ऊंचाई पर उड़ान भरनी थी। यह काम मुश्किल था क्योंकि ऊंचाई पर हवा का दबाव भी काफी कम होता है।