क्या आपको पता है कि जो बाईडन ने अरब पर अपने विचार बदल लिए हैं! अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हाल में ही सऊदी अरब दौरा किया है। सऊदी अरब वो देश है, जिसको लेकर बाइडेन के विचार अच्छे नहीं हैं। बाइडेन ने 2019 के राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या पर मोहम्मद बिन सलमान को दंडित करने की बात की थी। इतना ही नहीं, उन्होंने दावा किया था कि सऊदी अरब को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। बाइडेन ने मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर भी सऊदी अरब को अलग-थलग करने का दावा किया था। लेकिन, इस दौरे से स्पष्ट हो गया है कि बाइडेन प्रशासन ने सऊदी अरब को लेकर अपनी नीति को स्पष्ट रूप से बदल दिया है। उन्होंने सऊदी अरब पहुंचने के बाद सबसे पहले मोहम्मद बिन सलमान से ही मुलाकात की। अमेरिका-सऊदी के बीच द्विपक्षीय बैठकों में भी बाइडेन ने प्रिंस सलमान से ही बातचीत की।
बात करने से किया इनकार
जनवरी 2021 में राष्ट्रपति पद संभालने के बाद जो बाइडेन ने एक अमेरिकी खुफिया आकलन को जारी किया था। इसमें निष्कर्ष निकाला गया था कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस और वास्तविक शासक मोहम्मद बिन सलमान ने सऊदी के आलोचक और वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का आदेश दिया था। खशोगी की अक्टूबर 2018 में इस्तांबुल में सऊदी अरब के वाणिज्य दूतावास के अंदर हत्या कर दी गई थी। उनके शव को भी दूतावास के अंदर ही ठिकाने लगा दिया गया था। इस आकलन के बाद राष्ट्रपति बाइडेन ने मोहम्मद बिन सलमान से सीधे बात करने से इनकार कर दिया था।
इतना ही नहीं, बाइडेन प्रशासन ने यह भी घोषणा की कि वह यमन पर सऊदी अरब के युद्ध के लिए अमेरिका के समर्थन को समाप्त कर रहा है। अटकलें लगाई जा रही थीं कि अमेरिका-सऊदी रणनीतिक गठबंधन जो 1945 में राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट और सऊदी किंग अब्दुल अजीज इब्न सऊद के बीच हुई बैठक से जुड़ा था, वह संकट में था। अमेरिका ने सऊदी अरब की रक्षा में तैनात अपनी मिसाइल डिफेंस सिस्टम को भी हटाकर दूसरे देशों में तैनात कर दिया। अमेरिका के समर्थन के हटते ही यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ सऊदी का सैन्य अभियान कमजोर भी पड़ गया था।
अब राष्ट्रपति बनने के करीब डेढ़ साल बाद राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सऊदी अरब के साथ संबंधों को फिर से स्थापित करने के लिए पश्चिम एशिया का दौरा किया। उन्होंने लाल सागर के किनारे बसे शहर जेद्दा में प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से बातचीत की। इस बैठक से एक हफ्ते पहले अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने सऊदी अरब को पश्चिम एशिया में चरमपंथ और ईरान से पैदा हो रहे चुनौतियों से निपटने में एक “महत्वपूर्ण भागीदार” कहा था। ऐसे में यह स्पष्ट हो चुका है कि मोहम्मद बिन सलमान को दंडित करने और अलग-थलग करने के लिए बाइडेन प्रशासन के प्रयास अब खत्म हो गए हैं। फिर भी इस यू-टर्न के पीछे कारण क्या है?
मोहम्मद बिन सलमान को लेकर बाइडेन प्रशासन के नजरिये को बदलने के पीछे तीन प्रमुख भू-राजनीतिक घटनाक्रम को जिम्मेदार माना जा रहा है। ये घटनाक्रम ऐसे थे, जो व्हाइट हाउस के प्रत्यक्ष नियंत्रण में नहीं थे। इसी ने जो बाइडेन को पश्चिम एशिया में अमेरिका के सहयोगियों के प्रति अधिक पारंपरिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया। ये कारण इतने ताकतवर थे कि बाइडेन ने उन वादों को भी तोड़ दिया, जिसे उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान किया था।
इनमें सबसे पहला अब्राहम अकॉर्ड है। इस समझौते के कारण इजरायल और चार अरब देशों (यूएई, बहरीन, मोरक्को और सूडान) के बीच राजनयिक संबंध बहाल हुए थे। अब्राहम अकॉर्ड को सफल बनाने के पीछे ट्रंप प्रशासन का बड़ा योगदान था। लेकिन अब्राहम समझौते के साथ अमेरिका की पश्चिम एशिया नीति के दो स्तंभ इजरायल और सऊदी अरब ने ईरान का मुकाबला करने के लिए एक नई राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा साझेदारी बनाने के लिए औपचारिक कदम उठाए हैं। बाइडेन प्रशासन अभी तक भ्रम में था कि उसे ओबामा युग के यथार्थवाद पर वापस जाना चाहिए या फिर ट्रंप मॉडल को अपनाकर अरब इजरायल साझेदारी को मजबूत करना चाहिए। बाद में ट्रंप वाले मॉडल को ज्यादा प्रभावी मानकर उस पर ही आगे बढ़ने का फैसला किया गया।
इसमें दूसरा कारण ईरान था। बाइडेन प्रशासन ईरान परमाणु समझौते को फिर से लागू करने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहा है, लेकिन इस बार ईरान ने अड़ियल रूख अपना लिया है। ओबामा ने पश्चिम एशिया में अमेरिका के लक्ष्यों के बारे में संकीर्ण दृष्टिकोण रखा था। उन्होंने ईरान और सुन्नी अरबों के बीच शांति की वकालत की थी। ओबामा ने इजरायल के विरोध की अनदेखी करते हुए ईरान के साथ परमाणु समझौते को आगे बढ़ाया। के साथ आगे बढ़े जिसने ईरान के बम की ओर का रास्ता काट दिया। लेकिन, ट्रंप ने अमेरिका को परमाणु समझौते से बाहर निकाला और इजरायल और सुन्नी अरबों के बीच मजबूत संबंधों को बढ़ावा दिया। अब जो बाइडेन इजरायल-अरब साझेदारी को और मजबूत करते हुए परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने की कोशिश करते हुए एक मिश्रित दृष्टिकोण अपनाया है।
रूस यूक्रेन युद्ध
बाइडेन के सऊदी को लेकर विचारों में बदलाव के पीछे तीसरा कारण रूस-यूक्रेन युद्ध है। रूस के 24 फरवरी को यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया था। जिसके बाद रूस को दंडित करने के लिए अमेरिका समेत यूरोपीय संघ ने मॉस्को से तेल और गैस की खरीद को प्रतिबंधित कर दिया। लेकिन इस प्रतिबंध ने यूरोपीय संघ के देशों में हाहाकार मचा दिया। यूरोपीय संघ 90 फीसदी तेल और गैस आयात रूस से करता था। जिसके कारण यूरोपीय देशों में ऊर्जा संकट शुरू हो गया। अब यूरोपीय संघ रूसी ईंधन ले जाने वाले टैंकरों पर बीमा प्रतिबंध लगाने की योजना बना रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें पहले से ही 100 डॉलर प्रति बैरल के आसपास हैं। एक बार जब बीमा प्रतिबंध लागू हो जाता है, तो कीमतें और बढ़ सकती हैं। यह पश्चिम में मुद्रास्फीति संकट पैदा कर देगा। ऐसे में बाइडेन सऊदी अरब को मनाकर तेल का उत्पादन बढ़ाने और कीमत कम करने का अनुरोध कर रहे हैं।