वैदिक विज्ञान एक ऐसा विज्ञान है, जिसमें हमारे वेदों और औषधियों से संबंधित कई लेख लिखे हुए हैं! चुक्रिका जड़ी बूटी के बारे में शायद ही किसी को पता होगा। हिन्दी में चुक्रिका को अम्बारी या पालंग साग कहते हैं लेकिन अंग्रेजी में इसको (ब्लैडर डॉक) कहते हैं। चुक्रिका को आयुर्वेद में पेट संबंधी बीमारियां पेचिश, दस्त, उल्टी, पीलिया जैसे बीमारियों के लिये सबसे ज्यादा औषधि के रूप में सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है। चलिये आगे इस अनजाने जड़ी बूटी चुक्रिका के बारे में विस्तार से जानते हैं।
चुक्रिका क्या है?
वैसे तो चुक्रिका की कई प्रजातियां होती हैं। आम तौर पर चुक्रिका की पत्तियों एवं कोमल डंठलों का साग बनाया जाता है। इसकी पत्तियां तथा डंठल खट्टा होता है। यह उभयलिंगी, अरोमिल, चिकना, 15-30 सेमी लम्बा, वर्षायु शाकीय पौधा होता है। इसके पत्ते सरल, 2.5-7.5 सेमी लम्बे, अण्डाकार तथा आधार पर शंक्वाकार, 3-5 शिरायुक्त तथा खट्टे होते हैं। इसके फूल 2.5-3.8 सेमी लम्बे, सफेद या गुलाबी रंग के होते हैं। इसके फल 1.2 सेमी व्यास या डाईमीटर के, छोटे, सफेद अथवा गुलाबी रंग के होते हैं। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जुलाई से दिसम्बर तक होता है।चुक्रिका स्वाद में हल्का मधुर और अम्लिय होता है, लेकिन इसकी तासीर गर्म होती है। यह शरीर में वात दोष को कम करने वाला , कफपित्त ,रुचि और भूख बढ़ाने वाला होता है। सारक यानि लैक्सिटिव, पथ्य या आहार तथा देर से पचने वाला होता है।
यह गुल्म या ट्यूमर, दर्द, अग्निमांद्य या पाचन, हृदय की पीड़ा, आमवात में फायदेमंद होता है। इसके पत्ते मूत्रल यानि डाइयूरेटिक तथा मृदुरेचक या लैक्सिटिव होते हैं।इसका पौधा रेचक, आमाशयिक क्रियावर्धक, ठंडा, शक्तिवर्द्धक तथा दर्दनिवारक होता है।यह दर्दनिवारक, ज्वरघ्न, स्तम्भक (बुखार कम करने वाली दवा), मूत्रल (डाइयूरेटिक), मृदुविरेचक (लैक्सिटिव), भूख तथा शक्ति बढ़ाने वाले गुणों वाली होती है।
चुक्रिका के फायदे
किसी खाने से संक्रमण हो जाने पर दस्त की स्थिति और भी बदतर हो जाने पर मल के साथ खून आने लगता है तो यह स्थिति शरीर के लिए गंभीर हो जाती है। चुक्रिका के भूने हुए बीजों को 1-2 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से प्रवाहिका में लाभ होता है।अगर ज्यादा मसालेदार खाना, पैकेज़्ड फूड या बाहर का खाना खा लेने के कारण दस्त है कि रूकने का नाम ही नहीं ले रहा तो चुक्रिका का घरेलू उपाय बहुत काम आयेगा।
चांगेरी, चुक्रिका तथा दुग्धिका का जूस बनाकर 20 मिली जूस में दही, घी तथा अनार बीज मिलाकर खाने से अतिसार में लाभ होता है।टी.बी. के कारण उत्पन्न अतिसार में चांगेरी, चुक्रिका तथा दुग्धिका के (15-20 मिली) पत्ते के रस से बने खड्यूष में घी तथा अनार का रस मिलाकर पीने से लाभ होता है।
अक्सर किसी बीमारी के वजह से या खान-पान में गड़बड़ी होने के कारण उल्टी महसूस हो तो चुक्रिका से किया गया घरेलू इलाज बहुत ही फायदेमंद होता है। ताजे पत्ते का रस (5-10 मिली) में तक्र मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से पित्त के कारण हुए उल्टी या छर्दि से राहत मिलती है।
अगर आपको पीलिया हुआ है और आप इसके लक्षणों से परेशान हैं तो चुक्रिका का सेवन इस तरह से कर सकते हैं। 10-15 मिली चुक्रिका पत्ते के रस में तक्र मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है।
5-10 मिली चुक्रिका-जड़ का रस या फाण्ट का सेवन करने से रक्त शुद्ध होकर रक्त संबंधित बीमारियों में लाभ होता है।
अगर सर्दी-खांसी या किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के तौर पर कान में दर्द होता है तो चुक्रिका से इस तरह से इलाज करने पर आराम मिलता है। चुक्रिका रस को हल्का गर्म करके 1-2 बूंद कान में डालने से कान के दर्द से राहत मिलती है।
चुक्रिका का औषधीय गुण सांप के विष के असर को कम करने में काम आता है। चुक्रिका पत्ते के पेस्ट को सांप के काटे हुए स्थान पर लगाने से दर्द और जलन जैसे विषाक्त प्रभावों का असर कम हो जाता है।
चुक्रिका बिच्छु के काटने पर विष के असर को कम करने में मदद करता है। चुक्रिका के बीजों को भूनकर, पीसकर बिच्छू के दंश स्थान पर लगाने से दंश के कारण होने वाले जलन तथा दर्द से राहत मिलती है।