अबुल हसन अली के पोते सलमान नदवी को कौन नहीं जानता! साल 2014 में एक ख़त ने पूरे देश में हड़कंप मचा दिया था। ये ख़त लिखा गया था आईएसआईएस चीफ अबु बकर अल बगदादी को। उस वक्त पूरे विश्व में बगदादी ने खौफ फैला रखा था। आए दिन क्रूरता से भरे वीडियो सोशल मीडिया पर डालकर ये खूंखार आतंकी चैन की नींद सोता था। उस वक्त भारत के एक मुस्लिम धर्मगुरू ने बगदादी की तारीफ में कसीदें पढ़े थे। इनका नाम है सैयद सलमान नदवी। नदवी इस्लाम के प्रख्यात प्रोफेसर भी हैं। उर्दू, फारसी और अरबी भाषा के जानकार भी हैं। इनकी लिखी कई किताबें पढ़ाई जा रही हैं। इसके अलावा तालिबान के प्रति रह रहकर इनकी मोहब्बत झलकती रहती है फिर भी खुद को लिबरल दिखाते की इनकी कोशिश में काबिल ए तारीफ है।
मौलाना सलमान नदवी ने अपने खत में इराकी प्रधानमंत्री को शैतान बताते हुए आईएसआईएस की जीत की बात कही थी। ख़त उर्दू में लिखा गया था लेकिन उसका हिंदी तर्जुमा भी है। मौलाना नदवी ने बगदादी को ‘अमीर अल-मूमिनीन’ के रूप में क्यों सम्बोधित किया। ये एक अरबी शब्द है जिसके मायने होता है विश्वासियों के कमांडर या वफादारों के नेता। यहां पर कई मुस्लिम धर्म गुरुओं ने उनके बयान की खिलाफत की तो कई समर्थन में भी उतरे। खैर, बात ये है कि भारत में बैठे शख्स को क्या जरूरत आन पड़ी थी कि वो बगदादी को लेटर लिखें। इसके अलावा अगर लिखना भी था खुले मन से हिंसा का नंगा नाच करने वाले इस शख्स को अपनी ज्ञान की गंगा से थोड़ा संवारना था, झंझोरना था और कहना था कि जो तुम कर रहे हो वो नाजायज है और इस्लाम इसकी कतई इजाजत नहीं देता। मगर ऐसा हुआ नहीं।मौलाना सलमान नदवी अबुल हसन अली के पोते हैं। इन्होंने अबु बकर बग़दादी को मुसलमानों के खलीफा के रूप में नियुक्त किये जाने पर बधाई दी थी। इतना ही नहीं बगदादी की सुरक्षा और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की थी। बग़दादी को लिखा ये खत वाट्सऐप पर उपलब्ध है, इस खत में उन्होंने बगदादी की वीरता और धार्मिक जोश की तारीफ की थी, जिसके साथ बग़दादी ने तानाशाह शासक नूरी अलमालिकी को सबक सिखाया है।
फौज की मांग
मौलाना सलमान हुसैनी नदवी ने एक बार सऊदी अरब सरकार को भी ख़त लिखा। इस पत्र में उन्होंने इराक में शिया समुदाय से लड़ने के लिए पांच लाख भारतीय सुन्नी मुस्लिम युवाओं की एक सेना तैयार करने का अनुरोध किया था। अपने इस पत्र के बाद वो खुद घिर गए थे। तमाम मुस्लिम नेताओं ने उनका खुला विरोध किया था। मुस्लिम नेताओं ने कहा था कि नदवी सुन्नियों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है क्योंकि वह वहाबवाद का एक स्पष्ट अनुयायी है। उन्होंने आगे कहा था एक कट्टर इस्लाम रूप जो सूफीवाद को तुच्छ जानता है और सूफी संतों के दरगाहों की यात्रा को हतोत्साहित करता है।साल 2018 में मौलाना सलमान नदवी को पत्रकार नवेद शिकोह ने खुला ख़त लिखा था। इन पत्र में पत्रकार ने लिखा था, ‘बगदादी को खलीफा मानने वाला राम मंदिर निर्माण के लिए नर्म रुख अपनाये तो दाल में काला नहीं दाल में नीला ज़हर नजर आता है। ऐसे जहरीले खेल अक्सर सियासी होते हैं। हर बार अपकी आस्था किसी ऐसी शख्सियत/संगठन की बेल पर चढ़ती-लिपटती नज़र आती है जो देश-दुनिया के लिए सिरदर्दी बनी होती है। देश- दुनिया की शैतान ताकतों से आपके क्या ज़ाति मफाद हैं ये तो अल्लाह ही जाने, लेकिन आपका असली रुप पोशीदा है।’
इंटरनेट पर इनके बारे में खंगालने पर बहुत सारे वीडियोज देखने को मिलते हैं। इनमें से ज्यादातर वीडियो विदेशी मुल्कों के बारे में होते हैं। नदवी एक वीडियो में इजरायल को धमकी देते दिखते हैं तो कहीं अमेरिका और रूस को। यानी कि न तो ये विदेश मंत्री हैं न ही विदेश मंत्री के सलाहकार। फिर भी हर वीडियोज में तमाम धर्मों के खिलाफ हमेशा इनका मोर्चा खुला रहता है। 2018 में इनको ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से हटा दिया गया था। तब भी इनको बहुत बुरा लगा था और इन्होंने कई बयान दिए थे। उन्होंने कहा था कि बोर्ड औबैसी की गोद में चला गया है।
साल 2021 में तालिबान के प्रति इनका प्यार झलक ही गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इन्होंने तालिबान की सरकार को बधाई तक दे डाली। एक मीडिया हाउस से बात करते हुए नदवी ने कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के साथ भारत के बेहतर संबंध होंगे। उन्होंने कहा कि हम तालिबान के साथ संबंधों पर भारत सरकार जो भी फैसला लेगी, हम उसके साथ हैं। नदवी ने कहा था कि दुनिया के ज्यादातर देश अफगानिस्तान में तालिबान सरकार से शांति और बेहतर राजनयिक संबंधों की उम्मीद कर रहे हैं, हमारे देश के भी तालिबान के साथ बेहतर संबंध होंगे। हम सब जानते हैं कि तालिबान में अफगानिस्तान में क्या किया था। वहां की महिलाओं की हालत क्या थी। वहां के बच्चों किस तरह जान बचाते भाग रहे थे। फिर भी तालिबान के प्रति उनका प्यार समझ से परे हैं।
दरअसल, इस सम्मेलन में एनएसए अजीत डोभाल ने कहा था कि कुछ लोग धर्म और विचारधारा के नाम पर वैमनस्यता पैदा करते हैं जो पूरे देश को प्रभावित करता है और इसका मुकाबला करने के लिए धर्मगुरुओं को मिलकर काम करना होगा। उन्होंने कहा कि गलतफहमियों को दूर करने और हर धार्मिक संस्था को भारत का हिस्सा बनाने के लिए प्रयास करने की जरूरत है। डोभाल ने सम्मेलन में कहा, ‘कुछ लोग धर्म के नाम पर वैमनस्यता पैदा करते हैं जो पूरे देश पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। हम इसके मूकदर्शक नहीं हो सकते। धार्मिक रंजिश का मुकाबला करने के लिए हमें एक साथ काम करना होगा और हर धार्मिक संस्था को भारत का हिस्सा बनाना होगा। इसमें हम सफल होंगे या नाकाम होंगे।’