जो बुरे लोग हमारे समाज से निकलते हैं वह कहीं ना कहीं समाज के कारण ही निकलते हैं! श्रीकांत त्यागी केस के बाद से हमारे गांव में लोग त्यागी नाम के खराब होने पर चर्चा कर रहे हैं। हमारे बारे में बहुत गलत जानकारी फैलाई जा रही है।’ रविवार को महापंचायत में 80 किलोमीटर दूर से हिस्सा लेने आए यश त्यागी ने गुस्से से भरे दिख रहे थे। 24 साल के शशांक त्यागी कहते हैं कि जब मैंने इसे सोशल मीडिया पर देखा तो हमारे गांव के लोग इसपर चर्चा करने लगे। हमने फैसला किया कि हमें महापंचायत में जाना चाहिए। हमने 70-80 बसें, 30 बाइक और करीब 300-400 कार के साथ नोएडा पहुंचे थे। महापंचायत में आए त्यागी समाज के लोग अभी कुछ समय पहले तक श्रीकांत को जानते तक नहीं थे। लेकिन नोएडा के रामलीला ग्राउंड में रविवार को हजारों की संख्या में जुटे लोगों का कहना था कि उनके समुदाय की प्रतिष्ठा को चोट पहुंची है और वे यहां उसके खिलाफ जुटे हैं। पर अब बड़ा सवाल ये है कि आखिर हमारा समाज, जाति या धर्म के नाम पर गालीबाजों के लिए ढाल क्यों बन जाते हैं? अपराध को कम या ज्यादा में क्यों बांटने लगते हैं?
नोएडा के ग्रैंड ओमैक्स सोसायटी में श्रीकांत ने एक महिला से बदतमीजी की थी। सोसायटी में रहने वाली महिला से श्रीकांत त्यागी की भिड़ंत हो गई थी। जब पूरी घटना का वीडियो वायरल हुआ तो मामला गहरा गया। वीडियो में श्रीकांत त्यागी एक महिला से बदतमीजी और गाली-गलौच करता दिख रहा था। नेता की ठसक और रौब वह महिला पर दिखा रहा था। लेकिन, महिला ने भी उसका डटकर सामना किया। ये वीडियो वायरल होने के बाद बवाल मच गया। गौतमबुद्धनगर के सांसद महेश शर्मा ने इस मामले में त्यागी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। लंबे समय तक भागने के बाद त्यागी को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया। महापंचायत में आए शशांक ने कहा, ‘हम श्रीकांत के व्यवहार का समर्थन नहीं करते हैं। लेकिन उसके घर बुलडोजर भेजना और उनकी पत्नी के साथ दुर्व्यवहार सही नहीं था।
1985 में सुप्रीम कोर्ट ने एक तलाकशुदा महिला के पति को हर महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों के दबाव में आकर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने 1986 में संसद में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया। सेकुलरिज्म और मुस्लिम तुष्टीकरण की विभाजन रेखा ही मिटा दी। शाह बानो मामले में समान नागरिक संहिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तिलमिला गया। तिलमिलाए भी क्यों न, उसका तो पूरा वजूद ही खतरे में था। फिर क्या था, मुस्लिम कट्टरपंथियों ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को इस्लामी मामलों में दखल बता विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया। यह विडंबना ही थी कि लेफ्ट दलों को छोड़कर सेकुलर कहे जाने वाली कमोबेश हर पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के एक सेकुलर फैसले का विरोध किया। शुरुआत में लगा कि राजीव गांधी सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ है। 23 अगस्त 1985 को लोकसभा में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बचाव करते हुए दमदार भाषण भी दिया। लेकिन सालभर के भीतर ही मुस्लिम कट्टरपंथियों के विरोध के आगे राजीव गांधी सरकार ने घुटने टेक दिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) कानून 1986 पारित कर दिया।
उल्लेखनीय है कि 24 जून 2017 की अमावस्या की रात हरियाणा, एसओजी और राजस्थान पुलिस रतनगढ़ के गांव मालासर में श्रवण सिंह के मकान को घेर लिया। उस वक्त इस घर में आनंदपाल के साथ-साथ तीन महिलाएं और तीन पुरुष तथा कुछ बच्चे मौजूद थे। ये सभी ग्राउंड फ्लोर पर बने कमरों में रह रहे थे, जबकि आनंदपाल उपर के कमरों में था। इन सभी को एक कमरे में बंद कर दिया गया। उस समय आनंदपाल पहली मंजिल पर था। करीब एक घंटे तक दोनों ओर से हुई फायरिंग में आनंदपाल सिंह को पुलिस ने मार गिराया। पुलिस के अनुसार आनंदपाल ने एके 47 से 100 राउंड फायर किए। आनंदपाल के एनकाउंटर के बाद राजपूत समाज के लोगों ने जोरदार विरोध किया। लोग आनंदपाल को अपना रॉबिनहुड मानते थे। आनंदपाल पर 7 कत्ल समेत 37 केस दर्ज थे। नागौर से लेकर राजस्थान के कई इलाकों में उसके एनकाउंटर पर जबरदस्त विरोध हुआ था।
श्रीकांत, आनंदपाल या शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करना कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता है। श्रीकांत के पक्ष में महापंचायत करे वाले ऐसा करके कहीं न कहीं कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं। अगर उन्हें कोई दिक्कत थी कोर्ट जा सकते थे। या फिर कोर्ट के फैसले का इंतजार कर सकते थे। श्रीकांत की हरकत कहीं से भी सही नहीं थी। वहीं धर्म के नाम शाहबानो फैसले का विरोध भी जायज नहीं हो सकता है। वैसे ही एक गैंगस्टर के एनकाउंटर का विरोध न केवल कानून के मुताबिक गलत है बल्कि ये अन्य आपराधिक छवि के लोगों को आगे बढ़ने में मदद कर सकता है।