प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने काम करने के तरीकों के लिए जाने जाते हैं! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर कई बाते हैं जो उन्हें औरों से अलग करती हैं। अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए ‘परिश्रम की पराकाष्ठा’ उनका मूल मंत्र है। हालांकि, वो सिर्फ परिश्रम नहीं बल्कि ‘स्मार्ट लेबर’ पर जोर देते हैं। इस मकसद में सटीक रणनीति और उत्तम तकनीक का सहारा लिया जाता है। पीएम मोदी का अडवांस्ड टेक्नॉलजी से कितना गहरा लगाव है, यह आए दिन पता चलता रहता है। प्रधानमंत्री कहते भी हैं कि सिर्फ योजना बनाना और उसका प्रचार करने भर से काम नहीं चलने वाला, उसे तय समय में पूरा करना सर्वोच्च लक्ष्य होना चाहिए। इसके लिए वह मंत्री हों या अधिकारी, उन्हें काम सौंपते हैं और मियाद पूरी होने पर उनसे हिसाब भी मांगते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि काम कहां तक पहुंचा, इसका ब्योरा भी मांग लेते हैं। याद कीजिए पिछले वर्ष नवंबर में उन्होंने 77 मंत्रियों के अपने पूरे मंत्रिपरिषद को आठ समूहों में बांट दिया था। अब वो सभी समूहों से पूछ रहे हैं कि कौन-कौन से काम पूरे हुए और जो तरीके बताए गए, उनका पालन हो रहा है या नहीं?
मंत्रियों को दिया टास्क
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रियों और उनके विभागों के काम-काज में पारदर्शिता लाने के साथ-साथ उनके काम करने की गति बढ़ाने के लिए 77 मंत्रियों का 8 अलग-अलग समूह बना दिया गया। हर समूह में 9 से 10 मंत्रियों को शामिल किया गया। जुलाई 2021 में मंत्रिपरिषद का विस्तार करने के बाद इसकी लगातार पांच बैठकें हुईं। इन्हें चिंतन शिविर का नाम दिया गया था। इन बैठकों के विषय भी अलग-अलग थे, मसलन- व्यक्तिगत दक्षता, केंद्रित कार्यान्वयन, मंत्रालय के कामकाज और हितधारक से जुड़ाव, पार्टी के साथ समन्वय एवं प्रभावी संचार और आखिर में संसदीय प्रथाओं की समझ और उनका सम्मान। प्रधानमंत्री ने हर बैठक की अध्यक्षता करते हुए मंत्रियों से नए-नए आइडियाज मांगे। उन्होंने पूछा था कि आखिर सरकार को किन कार्यों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और उसे फटाफट पूरा करने की क्या रणनीति अपनानी होगी? प्रधानमंत्री ने मंत्रियों को समझाया कि कैसे पार्टी संगठन की मदद लेकर सरकारी कामकाज को न केवल समय-सीमा में जमीन पर उतारा जा सकता है बल्कि लक्षित समूह तक उनका लाभ भी पहुंचाया जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रालयों के बीच आपसी समन्वय को दिनोंदिन गहरा करने के लिए मंत्रियों के बीच आपसी तालमेल बढ़ाने की जरूरत बताया। इसके लिए उन्होंने मंत्रियों को कार पूलिंग का सूत्र दिया। उन्होंने कहा कि मंत्रियों के बीच आपसी तालमेल बढ़े इसके लिए ऑफिस आते वक्त एक-दूसरे को लिफ्ट देने का चलन तेज किया जाए। प्रधानमंत्री ने दूसरा सूत्र टिफिन बैठक का दिया था। उन्होंने कहा था कि मंत्रियों और अधिकारियों को टिफिन बैठक करनी चाहिए जिसमें वो अपने-अपने घरों से टिफिन लाएं और एक साथ भोजन का आनंद उठाएं। उन्होंने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए यह प्रयोग किया भी था जिसकी कहानी भी उन्होंने मंत्रियों को सुनाई। प्रत्येक मंत्री के ऑफिस के लिए एक-एक पोर्टल बनाकर केंद्र की महत्वाकांक्षी योजनाओं और नीतियों के बारे में विस्तृत एवं समन्वित जानकारी उपलब्ध कराने को कहा गया। पोर्टल का स्वरूप ऐसा बनाने को कहा गया जिसमें संबंधित मंत्री द्वारा लिए गए निर्णयों की देखरेख हो सके।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुणवत्ता से समझौता किए बिना काम-काज को तयशुदा वक्त में पूरा करने के लिए अपना ही तंत्र विकसित किया है। वो चाहे बात मंत्रियों को समूहों में बांटने का हो या फिर प्रगति (Pro-Active Governance And Timely Implementation) का आइडिया। प्रधानमंत्री ने सरकार के साथ-साथ संगठन के स्तर पर भी आपसी समन्वय बनाने पर जोर दिया है। वो केंद्र सरकारी की योजनाओं के लाभार्थियों से भी सीधा संवाद करते हैं। प्रधानमंत्री ने पारंपरिक व्यवस्था को धता बताकर प्रगति का जबर्दस्त आइडिया सामने लाया। प्रधानमंत्री हर महीने प्रगति मीटिंग लेते हैं जिसमें वो राज्यों के मुख्य सचिवों और विभागीय सचिवों के साथ सीधे बातचीत करते हैं और एक-एक काम का हिसाब मांगते हैं। इसका फायदा अब जमीन पर दिख रहा है। दशकों से लटके पड़े सैकड़ों प्रॉजेक्ट्स पूरे किए जा चुके हैं और जिनमें लंबे वक्त की दरकार थी, उनका काम भी तेजी से आगे बढ़ रहा है। वो चाहे डैम का निर्माण हो या सुरंग का या फिर रेवले, ऊर्जा, नागरिक उड्डयन या किसी अन्य क्षेत्र का काम, प्रगति ने इन्हें अंजाम तक पहुंचाने में काफी मदद की है। प्रधानमंत्री प्रगति की मीटिंग में कई बार कामकाज की लाइव समीक्षा भी करते हैं। इसके लिए ड्रोन टेक्नॉलजी का इस्तेमाल होता है। पीएम ने एक बार बताया भी था कि कैसे केदारनाथ में चल रहे कार्य की प्रगति देखने के लिए उन्होंने वहां के डीएम को कहा था कि ड्रोन से वहां का लाइव नजारा दिखाएं।
देश के सबसे अधिक राज्यों में बीजेपी की सरकार है। इस कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी शासित राज्यों के कामकाज की समीक्षा बैठक भी किया करते हैं। इससे देश के आधे से भी ज्यादा हिस्से में सरकारी कामकाज का ब्योरा लेने में मदद मिल जाती है। ऐसी बैठकों में बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री हिस्सा लेते हैं। किस राज्य में कौन सी परियोजना कहां तक पहुंची है, कौन से राज्य किन नए आइडियाज पर काम कर रहे हैं, किन राज्यों में केंद्रीय योजनाओं को कितनी तवज्जो मिल रही है, इन सबका ब्योरा पीएम सीएम और डिप्टी सीएम से मांगते हैं। असम, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों और जिन राज्यों में उप-मुख्यमंत्री हैं, उनसे भी पूछताछ होती है।
यह तो हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपनी तत्परता की बात। उनके नेतृत्व में केंद्र सरकार और उनके सहोयगी संस्थाओं ने भी सरकारी कामकाज को पारदर्शी और प्रभावी बनाने के लिए अलग-अलग तरह का मैकनिजम तैयार कर रखा है। इनमें नीति आयोग की हर साल की वो लिस्टिंग भी है जिसमें राज्यों को उनके कामकाज के आधार पर श्रेणियों में बांटा जाता है। वो चाहे राज्यों के बीच उद्योगों को लुभाने की प्रतिस्पर्धा हो या फिर उनमें अपने नागरिकों को बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने की कोशिश या फिर स्वच्छ शहरों का वर्गीकरण, केंद्र सरकार सरकारों में प्रतिस्पर्धा की भावना विकसित करने के कई तंत्र खड़ा कर चुकी है। नीति आयोग 2018 से सतत विकास सूचकांक (SDG) इंडिया इंडेक्स भी जारी कर रहा है जिसमें हर राज्य का आकलन किया जाता है और उनके कामकाज के आधार पर उनकी नंबरिंग की जाती है।