Thursday, September 19, 2024
HomeIndian Newsनीतीश कुमार ने लोकतंत्र के सामने किया संकट उत्पन्न!

नीतीश कुमार ने लोकतंत्र के सामने किया संकट उत्पन्न!

बिहार में कुछ दिनों पहले हुए फेरबदल के बारे में तो आप नहीं देखा ही होगा! जोड़-तोड़ कर सरकार बनाने की अदभुत घटनाएं हमारे लोकतांत्रिक इतिहास पर धब्बे की तरह दर्ज हैं। लेकिन नीतीश कुमार मॉडल ने नई चुनौती पेदा कर दी है। नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा चुनावों में पांच बार जीत हासिल की और आठ बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। 2000 के चुनाव में नीतीश कुमार बहुमत साबित करने से पहले ही हट गए क्योंकि संख्याबल था ही नहीं। इसके बाद हर बार बिहार की जनता ने नीतीश कुमार वाले गठबंधन को दिल खोलकर बहुमत दिया। इन दो दशकों में देश की जनता ने एक ट्रेंड तो सेट कर ही दिया। त्रिशंकु सदन से तौबा। चाहे लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव। कुछ अपवादों को छोड़कर जनादेश स्पष्ट आता है। जनता त्रस्त हो गई थी गठबंधन सरकारों से। लेकिन नेताओं की आदत तो जाती नहीं है। पूर्ण बहुमत के बावजूद राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने उन्हें आता है। इसके लिए दो तरह के मॉडल हैं।एक शिवराज मॉडल जिसमें कमलनाथ के बहुमत की सरकार अल्पमत में आ गई क्योंकि राजा साहब के साथ नाराज विधायक अलग हो गए। शिवराज सिंह चौहान विपक्ष में रहते ही सीएम बन गए। शिवराज मॉडल कॉमन है। सिर्फ ताजा उदाहरण के लिए जिक्र किया। पहले देखें तो दसियों उदाहरण मिलेंगे। दूसरा, नीतीश मॉडल। इसमें मुख्यमंत्री खुद ही शिवाजी की मानिंद शिफ्टिंग अलायंस की रणनीति अपनाता है। मराठा शिरोमणि राष्ट्र के लिए कर रहे थे और नीतीश कुर्सी के लिए। यानी एक ही जनादेश से दोस्त और दुश्मन दोनों के साथ कभी नरम-कभी गरम रहते हुए मुख्यमंत्री बने रहना। इस लिहाज से नीतीश कुमार ने चुनावी लोकतंत्र के सामने नया संकट पैदा कर दिया है। पूर्ण जनादेश के बावजूद रातोंरात राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने के महराथी नीतीश कुमार पांच साल के टर्म में दो-दो बार इस्तीफे और शपथ का खेल खेल रहे हैं।

नीतीश कुमार ने इसकी शुरुआत की नैतिकता के हवाले से। 2014 में। जब जीतनराम मांझी को उन्होंने खुद मुख्यमंत्री बना दिया। ये कहते हुए कि नरेंद्र मोदी के लहर को बिहार में नहीं रोक पाना उनकी विफलता है। नैतिकता का तकाजा है जानेदश का सम्मान किया जाए। दशरथ मांझी को भी नीतीश ने कुछ मिनटों के लिए कुर्सी पर बिठाया था और शोहरत लूटी थी। अब एक महादलित को सीएम की कुर्सी सौंपने के बाद उन पर फूल वर्षा होने लगी। लैकिन नैतिकता की भी एक्सपायरी डेट होती है। 2015 के शुरू में नीतीश कुमार को लगा कि मांझी कुर्सी नहीं छोड़ेंगे। तब नैतिकता त्यागने का समय आ चुका था। नीतीश कुमार ने भाजपा पर पार्टी को हाइजैक करने का आरोप लगाया। जेडीयू के 12 विधायक मांझी के साथ खड़े थे। मांझी को पार्टी से निकाला गया और नीतीश कुमार फिर से नेता चुने गए। हालांकि विश्वास मत से पहले ही मांझी ने इस्तीफा दे दिया क्योंकि 233 सदस्यों वाली विधानसभा में 103 का समर्थन ही उनको था।

नीतीश कुमार खुद इंजीनियर हैं। सोशल इंजीनियर भी। लेकिन पूर्ण बहुमत के बाद इस तरह की पॉलिटिकल इंजीनियरिंग पहली घटना थी। अगर उत्तराखंड में 21 साल में 12 सीएम हुए तो इसके पीछे पार्टी के भीतर और दूसरी पार्टी में जोड़-तोड़ की गहरी साजिश थी। लेकिन नीतीश कुमार यहां खुद ही राजनीतिक अस्थिरता का अभिनव प्रयोग कर रहे थे। फिर पूरी नैतिकता के साथ लालू के सहारे 2015 का चुनाव जीत गए। पर जनता को क्या पता था दो साल बाद फिर से शॉक मिलने वाला है। आवाज़ आई कि तेजस्वी यादव इनकम टैक्स के छापे पर सफाई नहीं दे रहे हैं। इसलिए इस्तीफा दे दिया जाए। 27 जुलाई, 2017 की दोपहर लगा अब बिहार में फिर से चुनाव होंगे क्योंकि नैतिक नीतीश कुमार लालू के समर्थन से जीते थे। पर उस शाम नीतीश की नैतिकता पर अंतरात्मा भारी पड़ गई। अंतरात्मा उनको पुराने यार यानी भाजपा के पास ले गई। इसलिए राजनीतिक अस्थिरता कुछ घंटों में खत्म हो गई।

अंतरात्मा बनाम नैतिकता

जनता को लगा नैतिकता से बेहतर अंतरात्मा की आवाज है क्योंकि तब तक नरेंद्र मोदी की लहर में तो उत्तर प्रदेश भी भगवा हो चुका था। इसलिए अंतरात्मा से उपजे फैसले को जनता ने 2020 में पूरा प्यार दिया। नीतीश कुमार की अगुआई में एनडीए को फिर पूर्ण समर्थन मिला। लेकिन जेडीयू खिसक कर चली गई तीसरे नंबर पर। सीएम बनने के बाद नीतीश को यही चिंता खाती रही कि पार्टी बचेगी या नहीं। इसमें डर ज्यादा था या सच्चाई, पता नहीं। लेकिन अभी नौ अगस्त को नीतीश कुमार की अंतरात्मा फिर जग गई। उन्होंने भाजपा से गठजोड़ तोड़ दिया। फिर बिहार के लोगों को लगा कि नीतीश कुमार किसी हालत में लालू यादव की पार्टी के साथ तो अब जाएंगे नहीं। मतलब चुनाव होंगे। लेकिन कुर्सी के बिना नीतीश कुमार क्या खाक संघर्ष करेंगे? वो भी लास्ट इनिंग में। इसलिए दोपहर में ही तेजस्वी के साथ हो गए और अब तो सरकार चलने भी लगी है।

ये नया नीतीश कुमार हैं। वो जताना चाहते हैं कि भाजपा की साजिश के कारण उन्हें पलटूराम होने पर मजबूर होना पड़ा। मतलब पलटूराम.2 के लिए भाजपा जिम्मेदार है। अब नैतिकता की तो चर्चा ही नहीं हो रही। यहां बात नीतीश कुमार की नैतिकता की है। वो पलटवार में पलटूराम पर प्रहार करने के बदले भाजपा पर नैतिकता खोने का आरोप लगा रहे हैं। उधर से बस यही कहा जा रहा है .. नीतीश जी, आपको तो 43 सीटें मिलने के बाद भी सीएम बनाया। अब कितना सम्मान दें। ऊपर से जबरदस्ती सीएम बनाने की बात कहकर नीतीश कुमार खुद ही भाजपा की नैतिकता को ऊंचा साबित कर रहे हैं।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments