भारत के समुद्र में दौड़ने वाले युद्ध पोतों के बारे में तो आपने सुना ही होगा! चीन आक्रामक तरीके से नए एयरक्राफ्ट कैरियर बनाकर समंदर में लगातार अपनी ताकत बढ़ा रहा है। उसे काउंटर करने के लिए इंडियन नेवी अपने तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर को बनाने की दिशा में तेजी चाहती है। उसका नाम आईएनएस विशाल प्रस्तावित है जो आईएनएस विक्रांत से भी बड़ा होगा। आईएनएस विक्रांत 2 सितंबर को इंडियन नेवी में शामिल होने वाला है। यह आईएनएस विक्रमादित्य के बाद भारत का दूसरा लेकिन देश का पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर है। 2023 के मध्य तक यह पूरी तरह कॉम्बैट रेडी हो जाएगा। यह भारत का अब तक तक का सबसे बड़ा युद्धपोत है जिसका वजन 45000 टन है। हालांकि, आईएनएस विशाल इससे भी बड़ा होगा जिसका वजन 65000 टन हो सकता है। INS विशाल CATOBAR कैटापल्ट असिस्टेड टेक-ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी सिस्टम वाला होगा। जबकि मौजूदा दोनों युद्धपोत आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विक्रांत STOBAR Short Take-off but Arrested Recovery सिस्टम वाले हैं।
अगर आप एयरक्राफ्ट कैरियर्स पर गौर करेंगे तो कुछ की नाक उठी हुई होती है तो कुछ की चपटी। जैसे भारत के मौजूदा दोनों युद्धपोत आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विक्रांत की नाक उठी हुई हैं। आइएनएस विशाल चपटी नाक वाला होगा। चीन के पास चपटी नाक वाले एयरक्राफ्ट कैरियर पहले से हैं और वह आक्रामक ढंग से उनकी संख्या में इजाफा भी कर रहा है। आइए विस्तार से समझते हैं कि एयरक्राफ्ट कैरियर यानी युद्धपोत क्या होते हैं, उठी हुई और चपटी नाक के पीछे रहस्य क्या है? इस एक फर्क से दोनों की क्षमताओं में क्या फर्क आ जाता है, उठी नाक और चपटी नाक वाले युद्धपोतों के फायदे-नुकसान क्या हैं?
एयरक्राफ्ट कैरियर और कैरियर बैटल ग्रुप
एयरक्राफ्ट कैरियर को आप समंदर में तैरता हुआ एयरबेस कह सकते हैं। उनके डेक से लड़ाकू विमान उड़ान भरते और लैंडिंग करते हैं। एक युद्धपोत से तकरीबन वो हर कार्रवाई की जा सकती है जो किसी एयरबेस से की जा सकती है। ग्राउंड अटैक किया जा सकता है, हवा से हवा में मार की जा सकती है, किसी शिप को ध्वस्त किया जा सकता है। इसके अलावा एयरक्राफ्ट कैरियर से वो कार्रवाइयां भी की जा सकती हैं जो किसी एयरबेस से उतनी आसानी से नहीं की जा सकतीं। मसलन निगरानी, इंटेलिजेंस, समंदर में हमले।
एयरक्राफ्ट कैरियर सैन्य कूटनीति में भी बड़ी भूमिका निभाते हैं। यह सैन्य ताकत के प्रदर्शन का महत्वपूर्ण और कारगर जरिया है। अमेरिकन नेवी के एयरक्राफ्ट कैरियर दुनिया के कोने-कोने में तैनात हैं जो सैन्य शक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण है। उसे चुनौती देने के लिए चीन भी तेजी से युद्धपोतों की संख्या बढ़ा रहा है। यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि एयरक्राफ्ट कैरियर कभी अकेले काम नहीं करता। डेस्ट्रॉयर, सबमरींस, फ्रिगेट्स, टैंकर शिप वगैरह भी उसके साथ-साथ चलते हैं। इस पूरे समूह को कैरियर बैटल ग्रुप कहा जाता है।
एयरक्राफ्ट कैरियर मुख्य तौर पर 2 प्रकार के होते हैं- STOBAR (स्टोबार) और CATOBAR (कैटोबार)। वैसे एक तीसरा सिस्टम भी है- STOVL (Short Take-off and Vertical Landing) लेकिन ऐसे एयरक्राफ्ट कैरियर बहुत कम है। तो आइए समझते हैं कि STOBAR और CATOBAR क्या होते हैं। दरअसल, उठी हुई और चपटी नाक से आप बता सकते हैं कि कोई एयरक्राफ्ट कैरियर STOBAR है या CATOBAR सिस्टम वाला।ये दोनों दरअसल वे सिस्टम हैं जिनके जरिए किसी कैरियर पर कोई लड़ाकू विमान उड़ान भरते हैं। एयरक्राफ्ट कैरियर के डेक पर बना रनवे जमीन पर बने रनवे के मुकाबले बहुत छोटे होते हैं। यही वजह है कि डेक पर लड़ाकू विमान सिर्फ अपने इंजन से पैदा हुए थ्रस्ट का इस्तेमाल करके टेक ऑफ नहीं कर सकते। उन्हें छोटे से रनवे पर टेक ऑफ के लिए इंजन से पैदा हुए थ्रस्ट के अलावा हवा के अनुकूल दबाव से अतिरिक्त मदद की दरकार होती है। STOBAR और CATOBAR सिस्टम यही अतिरिक्त मदद मुहैया कराते हैं।
जिन एयरक्राफ्ट कैरियर की नाक उठी हुई होती है वो STOBAR टाइप की होती हैं। आगे का हिस्सा उठा हुआ होने की वजह से एक वक्र यानी कर्व बन जाता है जिसे ‘स्की-जंप’ Ski-Jump कहा जाता है। इस तरह जब एयरक्राफ्ट जब डेक पर बने रनवे के अंतिम छोर पर पहुंचता है तो कर्व की वजह से सीधे के बजाय हवा में ऊपर की तरफ बढ़ता है। इससे शुरुआती समय में ही एयरक्राफ्ट को ऊंचाई हासिल करने में मदद मिलती है। आसान शब्दों में इसे ऐसे समझ सकते हैं कि डेक से टेक-ऑफ के लिए एयरक्राफ्ट अपनी शक्ति का इस्तेमाल करता है और इसमें उसे स्की-जंप (उठे हुए कर्व) से मदद मिलती है।अगर स्टोबार सिस्टम वाले दुनिया के कुछ प्रमुख एयरक्राफ्ट कैरियर्स की बात करें तो भारत के आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विक्रांत, ब्रिटिश रॉयल नेवी का एचएमएस क्वीन एलिजाबेथ, रूस का ऐडमिरल कुजनेत्सोव और चीन के टाइप 001 और टाइप 002 एयरक्राफ्ट कैरियर इसी सिस्टम वाले हैं।
स्टोबार के उलट कैटोबार सिस्टम वाले कैरियर से हैवी पेलोड वाले एयरक्राफ्ट को भी लॉन्च किया जा सकता है। अवाक्स सिस्टम वाले एयरक्राफ्ट भी इससे ऑपरेट हो सकते हैं। ये नॉन-फाइटर एयरक्राफ्ट्स को भी लॉन्च कर सकते हैं।
इसे बनाने में खर्च ज्यादा आता है। इसके अलावा इसे ऑपरेट करना स्टोबार के मुकाबले कठिन होता है और इस वजह से और ज्यादा क्रू की जरूरत पड़ती है। इनका रखरखाव भी खर्चीला होता है क्योंकि इसके कैटापल्ट में कई मूविंग पार्ट भी होते हैं। स्टोबार के उलट इसमें जरूरी फोर्स पैदा करने के लिए अतिरिक्त सिस्टम की जरूरत पड़ती है।