जबकि नीतीश कुमार ने अपनी सरकार बदली है तब से वह काफी परेशान हो गए हैं!नीतीश कुमार सरकार ने विश्वास मत हासिल कर लिया। लेकिन हमें इंतजार था नीतीश कुमार के उस भाषण का जिसमें खुलासा करेंगे कि बीजेपी के साथ ऐसा हुआ क्या जिससे इतना पुराना साथ टूट गया। खुद मुख्यमंत्री ने कई बार कहा है कि वो इसका कभी ना कभी खुलासा करेंगे। नीतीश कुमार ने बुधवार को विधानसभा ने बातें कई कहीं, लेकिन कुछ भी ऐसा निकलकर सामने नहीं आया जिससे पता चल सके की एनडीए गठबंधन से टूट का आखिर क्या कारण था? कुल मिलाकर वही बातें और वही आशंकाएं कि बीजेपी, जेडीयू में सेंध लगाने की कोशिश कर रही थी। वो भी खुलकर तो उन्होंने नहीं कहा, ना तेजस्वी ने कहा, बल्कि महागठबंधन की दूसरी पार्टी के नेताओं जरूर कही। तो फिर माजरा क्या है, इसे नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के संबंधों को लेकर बताते हैं। खुद मुख्यमंत्री ने अपनी बातों से स्पष्ट कर दिया कि उन्हें दिक्कत बिहार बीजेपी से नहीं बल्कि केंद्र से है। साफ तौर पर वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर ले रहे थे क्योंकि उन्होंने कहा कि देश में अब कोई काम नहीं हो रहा, सिर्फ प्रचार हो रहा है। नीतीश कुमार बार-बार कह रहे थे कि अलग होने में केंद्रीय नेतृत्व कारण था। वो बार-बार असेंबली में विपक्षी खेमे को देखकर कर कह रहे थे कि आप लोग क्यों उत्तेजित हो रहे हैं, मेरा आप लोगों से कुछ थोड़े ना है। अब बताते हैं कि आखिर नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के बीच ये खटास पैदा कहां से हुई या खटास थी तो वो मिटी क्या? नीतीश कुमार की ये टीस पुरानी है, 2009 की है। वो उन्हें साल रही है।
इसकी शुरुआत 11 मई, 2009 से हुई। लुधियाना में एनडीए की रैली थी। मनमोहन सिंह सरकार दूसरे टर्म के लिए जनता के बीच थी। आखिरी फेज का लोकसभा चुनाव होने वाला था। इसी से पहले ये रैली थी लुधियाना में, जिसमें एनडीए के तमाम बड़े नेता आए थे। बीजेपी के कई राज्यों के सीएम भी पहुंचे थे जिसमें नरेंद्र मोदी भी शामिल थे। लुधियाना की उस रैली में नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार का हाथ थामा और ऊपर किया, विक्ट्री साइन बना। इससे एक संदेश गया कि एनडीए 2009 के लोकसभा चुनाव को लेकर एकजुट है। अब बताते हैं आगे क्या होता है?
इसके अगले साल 2010 में बिहार विधानसभा के चुनाव होने थे, जिसमें एनडीए गठबंधन को प्रचंड बहुमत मिला था। आरजेडी 22 सीटों पर सिमट गई थी। इसी से पहले 12 जून 2010 को बिहार में भारतीय जनता पार्टी ने वही विज्ञापन छापा जिसमें नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की लुधियाना रैली में एक दूसरे का हाथ थामे तस्वीर दिखाई गई। इसमें लिखा था कि गुजरात सरकार ने बिहार सरकार को 5 करोड़ रुपये की मदद पहुंचाई है। ये 2008 में कोसी कोसी नदी में का बांध टूटने से आए जल प्रलय के लिए था। विज्ञापन देखने के बाद नीतीश कुमार नाराज हो गए थे। उन्होंने कहा था कि ये तो नैतिकता के खिलाफ है। मुझसे अनुमति नहीं ली गई। ये विज्ञापन क्यों छापा गया। उसके पीछे की कहानी ये है कि उस समय नीतीश कुमार अपना जनाधार बढ़ा रहे थे। मुस्लिम वोटरों में उनकी छवि अच्छी हो रही थी ऐसे में वो चाहते नहीं थे कि नरेंद्र मोदी के कारण उनका जनाधार घटे या अल्पसंख्यक समुदाय में वोट बैंक पर असर पड़े।
नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ 17 साल साल पुरानी दोस्ती तोड़ दी। तब भी एक्सटर्नल फोर्सेस की वजह से ये कदम उठाने की बात उन्होंने कही थी। नीतीश कुमार ने कहा कि था हम बिहार में बीजेपी कोटे से जो मंत्री हैं उन्हें बर्खास्त करने की सिफारिश राज्यपाल के पास भेज दी है। इस तरह बीजेपी-जेडीयू का एनडीए में जो 17 साल का साथ वो खत्म हो गया। तब भी नीतीश कुमार ने यही कहा कि बिहार में सबकुछ ठीक था, गठबंधन ठीक से चल रहा था। लेकिन एक्सटर्नल फोर्सेज (नरेंद्र मोदी) के कारण गठबंधन टूटा है। यानी 24 अगस्त 2022 को जो तर्क नीतीश कुमार ने दिया वही उन्होंने 9 साल पहले भी दिया था।
अब बात 12 जुलाई 2018 जब अमित शाह पटना पहुंचते हैं। नीतीश कुमार उस समय अमित शाह के लिए पटना में डिनर रखते हैं। उस डिनर में जानकारी के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर दोनों दिग्गज नेताओं के बीच थोड़ी बहुत बातचीत हुई थी। 12 जुलाई 2018 के बाद अहम तारीख आई 13 जुलाई 2022 की। जब पीएम मोदी और नीतीश कुमार के एक साथ नजर आए। इस दौरान दोनों के बीच काफी गर्मजोशी भी दिखी थी।
बिहार विधानसभा के सौ साल पूरे होने पर 13 जुलाई, 2022 को पटना में खास आयोजन था, जिसमें पीएम मोदी पहुंचे थे। दोनों में काफी गर्मजोशी दिखी, उस भाषण में भी नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार के गवर्नेंस की काफी तारीफ की थी। संदेश यही दिया गया कि बिहार एनडीए में सबकुछ ठीक है। लेकिन अगस्त में सबकुछ बदल गया। एनडीए से नीतीश कुमार अलग हो गए और महागठबंधन के साथ सरकार बना ली। पूरा सारांश यही है कि 11 मई 2009 की जो तस्वीर थी, वो जो टीस थी जिसका विज्ञापन छपा। वो टीस अभी भी नीतीश कुमार के दिल में है।बीच की अवधि में जो वापस महागठबंधन से अलग होकर वो इसलिए क्योंकि उनको अपना राजनीतिक वजूद बचाना था। उन्हें लग रहा था कि मोदी लहर इतनी प्रचंड है कि जेडीयू अलग सर्वाइव नहीं कर सकती। आज फिर से नीतीश कुमार को अचानक लगने लगा है कि सीएम के तौर पर आखिरी पारी है तो चांस लेते हैं पीएम के तौर पर।