कांग्रेस एक तरफ से भारत जोड़ो अभियान चला रही है, वहीं दूसरी ओर खुद बिखरती जा रही है! कांग्रेस का कहना है कि राहुल गांधी की 5 महीने लंबी भारत जोड़ो यात्रा न सिर्फ देश को पार्टी का संदेश पहुंचाएगी बल्कि संगठन में नई जान भी फूंकेगी। सच है कि एक के बाद एक चुनावी हार, कई कद्दावर और कुछ लो प्रोफाइल नेताओं के छोड़ने और लचर नेतृत्व की वजह से कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अटेंशन और मॉटिवेशन की सख्त दरकार है। लेकिन क्या इस यात्रा से कांग्रेस भरोसा और विश्वसनीयता जीत पाएगी जो 2014 से ही खो गई है?पिछले 8 साल से ज्यादा वक्त से केंद्र में बीजेपी की सरकार है। कांग्रेस के पास देश में अब बस दो ही मुख्यमंत्री रह गए हैं। 2014 से पहले उसके 1207 विधायक थे। अब सिर्फ 690 एमएलए हैं जो अबतक का सबसे कम आंकड़ा है। जमीन पर संगठन में लगातार क्षरण हुआ है। कई उम्मीदवार, प्रतिनिधि और पार्टी कार्यकर्ताओं का मोहभंग हुआ है। वे या तो किसी दूसरी पार्टी में शामिल हो गए या सक्रिय राजनीति से ही तौबा कर लिए।2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों (बीच के उपचुनाव भी शामिल) में कांग्रेस के 64 सदस्य दूसरी पार्टी के टिकट पर टिकट पर लड़े। 2014 में 41 और 2019 में 23।
इस दौरान तमाम राज्यों के 553 कांग्रेस विधायकों और 134 हारे हुए उम्मीदवारों ने पार्टी को छोड़ दया और किसी अन्य दल का हाथ पकड़ लिया। इनमें से 233 जीते भी जिनमें 107 बीजेपी के टिकट पर जीते।
-इस आंकड़े में सिर्फ उन नेताओं को शामिल किया गया है जो पपहले कांग्रेस के टिकट पर लड़ चुके हैं। इसमें पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ता शामिल नहीं हैं क्योंकि उसे लेकर कोई विश्वसनीय सूचना उपलब्ध नहीं है।यह साफ नहीं है कि भारत जोड़ो यात्रा संगठन में हुए इस क्षरण को रोकने में कैसे मददगार होगी। जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता प्रतीकों, विचार या भावनाओं के बजाय व्यवहारिकता और नफे-नुकसान के गणित को लेकर फैसला लेते हैं।प्रतीकात्मक राजनीति और जमीनी-स्तर के यथार्थवाद का ये अंतर उन राज्यों में और भी ज्यादा गहरा है जहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला बीजेपी से है।
पिछले दो लोकसभा चुनावों में 200 से कम सीटों (2014 में 189 और 2019 में 190) पर बीजेपी और कांग्रेस उम्मीदवारों के बीच सीधा मुकाबला दिखा।2014 में बीजेपी ने इन 189 में से 166 सीटों पर जीत हासिल की
2019 में बीजेपी ने कांग्रेस से सीधे मुकाबले वाली 190 सीटों में से 175 पर जीत हासिल की
इस तरह जब-जब कांग्रेस उम्मीदवार का बीजेपी उम्मीदवार से सीधा मुकाबला हुआ तब 10 में से 9 बीजेपी कैंडिडेट विजयी हुए।
सीधे मुकाबले में बीजेपी का इस स्तर का दबदबा दोनों पार्टियों की सांगठनिक ताकत में अंतर को भी दिखाता है। एक तरफ जहां कांग्रेस का संगठन बिखर चुका है और कुछ जगहों पर तो ध्वस्त हो चुका है। दूसरी तरफ बीजेपी ने एक ऐसा मजबूत संगठन तैयार किया है जो भारत में पहले नहीं देखा गया।बीजेपी कार्यकर्ता शहरों और गांवों में घूम-घूमकर समर्थन जुटाने हैं। संघ परिवार के तमाम संगठनों के सहयोग से जमीन पर उन्होंने स्थायी मौजूदगी बना ली है। इससे वे चुनाव के दौरान और चुनावों के बीच में भी वोटरों को साधने की क्षमता रखते हैं। डिजिटल और आर्थिक क्षमताओं से इसे और ताकत मिलती है।बीजेपी का जमीन से ये कनेक्ट यात्रा के विचार से उलट है। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की बात करें तो जब काफिला गुजर जाएगा, धूल छंट जाएंगे तब काम करते रहने के मॉटिवेशन के अलावा कुछ काम नहीं आएगा।
यात्रा के दूरगामी असर भी बीजेपी के बेहतर मीडिया प्लानिंग की वजह से सीमित हो जएंगे। गुजरात चुनाव से पहले बीजेपी और सरकार घोषणाओं की बारिश करेंगी और प्रतीकों पर जोर देंगी। प्रतीकों की राजनीति में पीएम नरेंद्र मोदी का कोई सानी नहीं हैं। कांग्रेस को समझना चाहिए कि 5 महीने तक मीडिया और लोगों का इंट्रेस्ट बनाए रखना बहुत मुश्किल है। ये बहुत लंबा समय है।
हम ये नहीं कहते कि प्रतीक का महत्व ही नहीं है या किसी हताश संगठन में नई जान फूंकने में उसकी कोई भूमिका नहीं है। निश्चित तौर पर यह एक अच्छी शुरुआत है। कासकर तब जब कांग्रेस के पास बीजेपी की चुनावी मशीना का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। लेकिन यात्रा ही कांग्रेस की समस्याओं का समाधान नहीं हो सकती, यह कोई ऐसी चीज नहीं जहां पार्टी की सारी ऊर्जा लगा दी जाए।यूपी चुनाव में कांग्रेस का पूरा अभियान दो प्रतीकों पर केंद्रित था- महिला सम्मान और प्रियंका गांधी। लेकिन पार्टी का अभियान त्रासदी साबित हुआ क्योंकि इन प्रतीकों को जमीनी स्तर पर कोई साथ नहीं मिला। जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की मौजूदगी नहीं दिखी।
कांग्रेस नेताओं और उसके शुभचिंतकों को भारत जोड़ो यात्रा से बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं पालनी चाहिए। जयराम रमेश को तो ये यात्रा ‘भारतीय राजनीति को बदल देने वाली’ दिखती है लेकिन यह ज्यादा नहीं, बहुत ही ज्यादा हो गया। महात्मा गांधी ने अपने अभियान को शालीनता से बिना शोर के शुरू किया था और आंदोलन को धीरे-धीरे जोर पकड़ने दिया। जैसे-जैसे वह गांवों और राज्यों से होकर गुजरे, आंदोलन गति पकड़ता गया, खुद ही शोर करने लगा।राहुल गांधी की यात्रा के साथ कुछ अन्य समस्याएं भी हैं।देशभर में यात्रा चलती रहे लेकिन राहुल गांधी और दूसरे कांग्रेस नेताओं को अहम कार्यक्रमों में शामिल होना होगा जिसमें पार्टी अध्यक्ष का चुनाव भी शामिल है।
कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के ऐलान में वैसे भी बहुत देर हो चुकी है। अक्टूबर में चुनाव होने हैं और राहुल गांधी उसमें अपनी भागीदारी को लेकर अब भी अनिश्चित बने हुए हैं।फिलहाल कांग्रेस अध्यक्ष की रेस में आगे दिख रहे अशोक गहलोत राहुल गांधी को ही पार्टी की कमान संभालने की पैरवी कर रहे हैं।भारत को एक ताकतवर विपक्ष की जरूरत है जो अपना किरदार शिद्दत से निभा सके। भारत जोड़ो यात्रा में यह क्षमता है कि वह कांग्रेस में नई ऊर्जा भर सके। लेकिन कामयाबी के लिए उसे जनसमर्थन के टिकाऊ औजार विकसित करने होंगे।