जानिए भारत के रोनाल्डो की कहानी, जो अब तक है दुनिया की नजरों से छुपा हुआ!

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हमारे देश भारत में कई प्रकार के टैलेंट छुपे हुए हैं, जिन्हें अभी तक बढ़ावा नहीं मिला! गोल गोल गोल का शोर। एक कमाल की किक। और ये गोल। सोशल मीडिया पर यह गोल वायरल है। यह रोनाल्डो, बेकहम, मेसी जैसे धुरंधरों की याद दिला रहा है। यह गोल दागा है उत्तराखंड के मुनस्यारी के एक दूरदराज के गांव के साढ़े 15 साल के लड़के हेमराज जोहरी ने। कॉर्नर किक से गेंद गोलकीपर को छकाती हुई सीधे गोलपोस्ट के अंदर नेट में झूल जाती है। अब हेमराज ‘उत्तराखंड के रोनाल्डो’ के नाम से वायरल हैं। लेकिन इस अविश्वनसीय गोल के दूसरी तरफ संघर्ष का एक लंबा सफर भी है। जिसे हेमराज ने जिया है और जी रहे हैं। यह सफर उस सीमांत गांव से शुरू होता है, जहां हेमराज रहते हैं। जहां आज तक सड़क नहीं पहुंची है। जहां फुटबॉल के मैदान की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। लेकिन यकीन मानिए यह गोल मुनस्यारी से करीब 22 किलोमीटर दूर गांधी नगर के उसी दुर्गम गांव से निकला है।

इस वायरल गोल के बाद हमने हेमराज से बात की। इस गोल को कर पाने के पीछे उनके जीवट और संघर्ष की वह कहानी जानी, जो शायद आप तक पहुंची हो। बातों-बातों में इस खुशमिजाज लड़के ने इसे बताया। लेकिन गर्व के साथ। पिता टेलरिंग का काम करते हैं। हेमराज की चार बहनें हैं। पूरी जिम्मेदारी पिता पर ही है। वजन घटाने के लिए दुनिया परेशान है, लेकिन हेमराज जब घर लौटते हैं, तो जरूरी डाइट पर मन मार जाते हैं। पिता की जेब इसकी इजाजत नहीं देती। मुनस्यारी में अपने गांव से देहरादून के स्पोर्ट्स कॉलेज के लिए निकलते हैं, तो एकबारगी सोचते हैं। क्योंकि किराए के लिए पिता को उधार कर पैसों का जुगाड़ करना पड़ जाता है। उत्तराखंड के सीमांत इलाके के इस उभरते हुए फुटबॉलर के इंटरव्यू के कुछ हिस्से हम ज्यों के त्यों यहां रख दे रहे हैं। आप उन्हें पढ़ेंगे तो समझ जाएंगे कि जिस राज्य में फुटबॉल स्टेट गेम है, वहां चार बार नैशनल खेल चुके हेमराज जैसे हीरे किन हालातों में चमकते हैं!

गांव तक न तो रोड है। ना ही कोई ग्राउंड है। मैं जब 11 साल का था, तो पहली बार मुनस्यारी आया। मैंने यहां बच्चों को खेलते हुए देखा। मैं जब पहली बार ग्राउंड में उतरा तो मेरे पास जूते-वूते भी नहीं थे। मैंने नंगे पैर खेलना स्टार्ट कर दिया। फिर बाद मैं मैंने मुनस्यारी बॉयज नाम के क्लब को जॉइन किया। उन्होने मुझे फुटबॉल शूज वगैरह दिए और फिर मैंने खेलना स्टार्ट किया। …मेरा पापा का सपना है कि मैं इंटरनैशनल फुटबॉलर बनूं। हमारे पास इतने पैसे तो नहीं हैं कि हम आगे खेल पाएं।

डाइट को लेकर सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। जब मैं घर आता हूं तो खाने को इतना नहीं होता कि डाइट पर अच्छे से ध्यान दे पाऊं मैं। खाने के लिए कम ही होता है। हॉस्टल में तो ठीक ही होता है, जब कॉलेज जाता हूं मैं। जब घर में आता हूं तो खाने के लिए थोड़ा कम ही रहता है। पैसे इतने हैं नहीं पापा के पास की जो चिकन-विकन खिला पाएं। बस डाइट थोड़ी कम हो जाती है।

परिवार में चार बहनें हैं। एक भाई है । पापा जब कमाते हैं, परिवार तभी चल पाता है। वैसे नहीं चल पाता इतना। कभी-कभी पैसे इतने होते हैं कि मतलब सीमित होते हैं। कभी-कभी देहरादून जाने के लिए पैसे नहीं होते मेरे पास। तो उधार करके मांगते हैं पापा, तब देते हैं।

अपने गांव में था, तो मैं खेतों में खेला करता था। सीढ़ी वाले खेत हुआ करते थे।डाइट को लेकर सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। जब मैं घर आता हूं तो खाने को इतना नहीं होता कि डाइट पर अच्छे से ध्यान दे पाऊं मैं। खाने के लिए कम ही होता है। हॉस्टल में तो ठीक ही होता है, जब कॉलेज जाता हूं मैं। जब घर में आता हूं तो खाने के लिए थोड़ा कम ही रहता है। पैसे इतने हैं नहीं पापा के पास की जो चिकन-विकन खिला पाएं। बस डाइट थोड़ी कम हो जाती है।

परिवार में चार बहनें हैं। एक भाई है । पापा जब कमाते हैं, परिवार तभी चल पाता है। वैसे नहीं चल पाता इतना। कभी-कभी पैसे इतने होते हैं कि मतलब सीमित होते हैं। कभी-कभी देहरादून जाने के लिए पैसे नहीं होते मेरे पास। तो उधार करके मांगते हैं पापा, तब देते हैं।

मैंने पैसे इकट्ठे करके एक बॉल खरीदी थी। मैंने खुद एक ग्राउंड बनाया था और खुद खेलना स्टार्ट कर दिया था।एक खाली जमीन थी। पहाड़ों वाला इलाका था। वहां ढलान थी। मैंने खोद-खोदकर एक छोटा सा मैदान बनाया था। वहां मैं अकेले खेला करता था।तो ये थी उस बेहतरीन खिलाड़ी की बेहतरीन कहानी!