जानिए कर्नाटक में बीजेपी आने की कहानी!

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कर्नाटक में जब बीजेपी आएगी तो उसके पीछे एक गहन रहस्य छुपा हुआ है! कर्नाटक के हुबली में ईदगाह मैदान सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं, सियासत का अखाड़ा भी रहा है। एक तरफ मुस्लिम संगठन और कांग्रेस पार्टी तो दूसरी तरफ संघ परिवार और बीजेपी। दोनों के बीच लंबा विवाद चला है। 1991 में रथयात्रा और अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिराने के बाद संघ और बीजेपी ने हुबली ईदगाह मैदान पर अंजुमन-ए-इस्लाम के दावे के खिलाफ कमर कस ली। 1992 में जब बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी और नरेंद्र मोदी ने श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराया था, तभी ईदगाह मैदान में भी ऐसा ही कार्यक्रम रखा गया। इसका आयोजन संघ परिवार के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रध्वज गौरव संरक्षण समिति के बैनर तले किया था। हालांकि, प्रशासन ने भारी बल प्रयोग से उन्हें ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराने से रोक दिया। फिर 1994 में बीजेपी नेता उमा भारती ने यही कोशिश की। उनका जबर्दस्त विरोध हुआ। पुलिस ने स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने को आतुर भीड़ पर गोलियां बरसा दीं और पांच लोगों की जान चली गई।

उस वक्त बीजेपी कर्नाटक में अपना पांव जमाने की कोशिश में थी। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भी हुबली ईदगाह मैदान में तिरंगा नहीं फहराने देने की अंजुमन-ए-इस्लाम की जिद्द ने बीजेपी को बड़ा मौका दे दिया। उस वक्त अनंत कुमार पार्टी के लिए बड़ी रणनीतिकार साबित हुए। कुमार तब कर्नाटक बीजेपी के महासचिव थे। वो हुबली के ही रहने वाले थे। उनकी लाल कृष्ण आडवाणी से अच्छी-खासी नजदीकी थी। उधर, 1990 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल को राजीव गांधी ने पद से हटा दिया। इस कारण लिंगायत समुदाय में कांग्रेस के खिलाफ काफी रोष था। अनंत कुमार ने गुस्साए लिंगायतों को बीजेपी की तरफ मोड़ने पर काम शुरू कर दिया।

1994 में कांग्रेस के वीरप्पा मोइली कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे। जब ईदगाह मैदान विवाद में हिंसा हुई तब अनंत कुमार ने ‘मोइली हटाओ’ अभियान छेड़ दिया। इसे लालकृष्ण आडवाणी की भी ताकत मिली। उन्होंने भी मोइली हटाओ का आह्वान किया। यह रणनीति काम कर गई और 1994 के चुनाव में बीजेपी को कर्नाटक विधानसभा में पहली बार बड़ी सफलता हाथ लगी। उसने पांच वर्ष पहले चार सीट पाकर कर्नाटक विधानसभा में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी। लेकिन इस बार उसकी सीटें 10 गुना हो गईं। 40 सीटों पर मिली जीत से उत्साहित अनंत कुमार ने उत्तरी कर्नाटक में हिंदुओं को एकजुट करने पर जोर बढ़ा दिया। उसका परिणाम हुआ कि आज तक उस इलाके पर बीजेपी का दबदबा कायम है। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कर्नाटक में 36.2% वोट मिले। कांग्रेस 38% वोट पाकर टॉप में रही थी।

बहरहाल, 1994 में कर्फ्यू तोड़कर ईदगाह मैदान जाने की कोशिश के लिए उमा भारती के खिलाफ हुबली कोर्ट में मुकदमा दायर किया गया। हालांकि, बाद में केस खत्म हो गया। बीजेपी की तरफ से ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराने का वह छठा प्रयास था। उधर, सुप्रीम कोर्ट में उसका मुकदमा चल रहा था कि ईदगाह मैदान पर असली अधिकार किसका है। लेकिन, बीजेपी की तरफ से 15 अगस्त 1994 को राष्ट्रध्वज फहराने की प्लानिंग हो गई। 14 अगस्त को हुबली में कर्फ्यू लगा दिया गया। पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स (RAF) के जवान चप्पे-चप्पे पर तैनात कर दिए गए। मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा, ‘मैं कल्याण सिंह नहीं हूं कि अपनी आंखें मूंद लूं और हिंसा होने दूं।’ बीजेपी नेता सिकंदर बख्त को बंगलोर में गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन उमा भारती छिपते-छिपाते हुबली पहुंच गईं।

15 अगस्त, 1994 को बीजेपी समर्थकों ने ईदगाह मैदान की ओर मार्च किया और हिंसा भड़क उठी। प्रदेश बीजेपी के बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा के साथ पार्टी सांसद उमा भारती गिरफ्तार हो गईं। उसके बाद भीड़ में खलबली मच गई। पुलिस ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं। पुलिस की गोलियों ने पांच लोगों की जान ले ली। चार दिन बाद बीजेपी ने पूरे हुबली में मोइली हटाओ अभियान छेड़ दिया। इस पर पुलिस ने बेवजह फायरिंग शुरू कर दी और एक महिला की मौत हो गई। इस घटना से मोइली सरकार की छवि खराब होने लगी। हड़बड़ी में मुख्यमंत्री ने धमकी दी कि अब अगर हिंसा हुई तो आरोपियों पर टाडा के तहत मुकदमा दर्ज किया जाएगा। हालांकि, देखते ही देखते पड़ोस से शहर भद्रावती में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया।

तभी लालकृष्ण आडवाणी ने कहा, ‘मोइली का भविष्य उसी वक्त पता चल गया जब उनकी सरकार ने हुबली में निर्दोष देशभक्तों पर गोलियां चलवाईं।’ उन्होंने याद दिलाया कि कैसे एक दशक पहले नरगुंड पुलिस ने किसानों की रैली पर फायरिंग की थी और कांग्रेस(आई) की सरकार चली गई थी। इन घटनाओं से अंजुमन-ए-इस्लाम पर दबाव बना और उसने खुद ही ईदगाह मैदान में तिरंगा फहरा दिया। बाद में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के तत्कालीन प्रमुख अशोक सिंघल ने 2001 में हुबली का दौरा किया। उनके दौरे हुबली में जबर्दस्त विरोध हुआ और हिंसा भड़क उठी। उस हिंसा में भी एक व्यक्ति की मौत हो गई।

बहरहाल, कर्नाटक में फिर चुनाव है। बीजेपी ने बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाकर बासवराज बोम्मई को यह कुर्सी थमा दी है। पार्टी को डर है कि येदियुरप्पा के हटाने से लिंगायत समुदाय कहीं आक्रोशित न हो जाए। इसलिए पार्टी ने 75 वर्ष की उम्र सीमा का नियम तोड़कर उन्हें पार्टी संसदीय बोर्ड में शामिल कर लिया है। हालांकि, बोम्मई भी लिंगायत समुदाय से ही आते हैं, लेकिन उनकी येदियुरप्पा जैसी धाक नहीं है। ऐसे में ईदगाह मैदान का विवाद फिर से सामने है। फिलहाल, कर्नाटक हाई कोर्ट ने ईदगाह मैदान में गणेश उत्सव मनाने का अनुमति दे दी और वहां भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित भी हो चुकी है। इस बार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को इससे कितना फायदा होगा, भगवान ही जानें।