आरक्षण नई समस्याएं पैदा कर सकता है, यह हम नहीं विशेषज्ञ कहते हैं! हाल में सुप्रीम कोर्ट ने ने रिजर्वेशन पर एक अहम फैसला दिया। उसने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों EWS के लिए नौकरी और शिक्षा में 10 फीसदी कोटा को मंजूरी दी। यह दलित, आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग OBC को मिलने वाले 49 फीसदी आरक्षण के अतिरिक्त है।भारतीय क्रिकेट टीम मेरिट पर चुनी जाती है। राष्ट्रीय या राज्य की टीमों में दलित या आदिवासी खिलाड़ी कितने हैं? जवाब आता है बहुत थोड़े। कुछ लोग सचिन तेंदुलकर को अब तक का सबसे महान बल्लेबाज बताते हैं। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आईने में देखें तो ऐसा लगेगा कि उन्हें ब्राह्मण होने का फायदा मिला। सुनील गावस्कर की गिनती भी लोग महानतम बल्लेबाजों में करते हैं। वह भी ब्राह्मण हैं। टी-20 क्रिकेट टीम के कप्तान रोहित शर्मा भी ब्राह्मण हैं। एक दशक तक तेज गेंदबाजी के लिए जाना-पहचाना नाम ईशांत शर्मा भी ब्राह्मण हैं। राहुल शर्मा ने भारतीय टीम और संदीप शर्मा ने अंडर-19 टीम के लिए खेला है। चेतन शर्मा चीफ टेस्ट सेलेक्टर हैं। भारतीय टीम के कोच राहुल द्रविड़ भी ब्राह्मण हैं। उनके पूर्ववर्ती रवि शास्त्री और अनिल कुंबले भी। कोई भी दलित या आदिवासी कोच दिखाई नहीं देता है।
अय्यर ने कहा कि 1980 के दशक तक राज्य की टीमों में आधे से ज्यादा खिलाड़ी ब्राह्मण थे। राजनीतिक रूप से अपर कास्ट दबदबेदार रूरल कास्ट (यादव, पटेल, जाट) के साथ अब सत्ता साझा कर रही है। क्रिकेट भी उसी दिशा में बढ़ा है। स्तंभकार ने सवाल उठाया कि क्या सूर्यकुमार यादव सबसे अच्छे नए बल्लेबाज हैं? या वह सिर्फ सिस्टम के लाभार्थी हैं जिसने दलित और आदिवासियों को बाहर रखा है? कम से कम चार यादव खिलाड़ियों ने क्रिकेट में इस साल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व किया है। इनमें सूर्यकुमार यादव, कुलदीप, उमेश और जयंत शामिल हैं। अजय यादव झारखंड और संजय यादव तमिलनाडु के लिए खेलते हैं।
अय्यर अपने लेख में कहते हैं कि कुछ लोग कह सकते हैं कि क्रिकेट टीम सरकारी संस्थान नहीं हैं। लिहाजा, कोटा की जरूरत नहीं है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले में ईडब्ल्यूएस कोटे को लाभ नहीं प्राप्त करने वाले निजी संस्थानों में भी बढ़ाया जा सकता है। जब कोटा का दायरा सभी जगह बढ़ सकता है तो क्या क्रिकेट एकैडमी, कॉलेज टीमें और राज्य क्रिकेट टीमें बाहर ही रहेंगी?
इन सवालों को उठाने के बाद अय्यर खुद ही जवाब देते हैं। वह कहते हैं कि कोटे के दायरे को लगातार बढ़ाना गलती है। क्रिकेट में कोटा बेवकूफी होगी। भरत जग हंसाई का पात्र बन जाएगा। एक प्रमुख इंडस्ट्री कोलैप्स कर जाएगी। अंतरराष्ट्रीय मैचों में भारत कहीं टिक नहीं पाएगा। हालांकि, कोर्ट का तर्क क्रिकेट पर भी लागू होता है। यही कारण है कि यह लॉजिक गलत है। अमेरिका में नस्ल के आधार पर कोटे को असंवैधानिक करार दिया गया है। अन्य क्रिकेट खेलने वाले देशों में भी क्रिकेट में कोटा नहीं है।
दूसरे देश अलग क्यों हैं? कारण है कि उन्होंने एहसास किया कि ऐतिहासिक अन्यायों को लक्षित कर दिया जाने वाला कोई भी कोटा मौजूदा समय में अन्याय को जन्म देगा। अपर-कास्ट के जिन लोगों ने किसी से कभी भेदभाव नहीं किया और जिन्हें ज्यादा अंक मिले हैं, उनके साथ अन्याय होगा। पूर्व में हुए अन्याय की भरपाई के लिए थोड़ा अन्याय हो सकता है। लेकिन, करीब सभी दूसरे देशों में सामाजिक न्याय के लिए इसे कोटा के बजाय स्कॉलरशिप और स्कीमों से पूरा किया जाता है। कोटा बहुत अन्याय करता है। यह प्रतिभा को चोट करता है।
डॉ. भीम राव आम्बेडकर ने सोचा था कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण की जरूरत सिर्फ 10 साल के लिए पड़ेगी। लेकिन, राजनीति ने इसे अंतहीन खींच दिया है। कोर्टों को फोकस करना चाहिए कि कोटे को सीमित करते हुए उसे बढ़ने से रोकें। हालांकि, उन्होंने ऐसा नहीं किया है।कारण है कि उन्होंने एहसास किया कि ऐतिहासिक अन्यायों को लक्षित कर दिया जाने वाला कोई भी कोटा मौजूदा समय में अन्याय को जन्म देगा। अपर-कास्ट के जिन लोगों ने किसी से कभी भेदभाव नहीं किया और जिन्हें ज्यादा अंक मिले हैं, उनके साथ अन्याय होगा। पूर्व में हुए अन्याय की भरपाई के लिए थोड़ा अन्याय हो सकता है। लेकिन, करीब सभी दूसरे देशों में सामाजिक न्याय के लिए इसे कोटा के बजाय स्कॉलरशिप और स्कीमों से पूरा किया जाता है। कोटा बहुत अन्याय करता है। यह प्रतिभा को चोट करता है। अय्यर के अनुसार, अच्छा होगा कि कोई क्रिकेट में कोटा लागू करने के लिए तुरंत याचिका डाले। जो चीज शिक्षा पर लागू है वह निश्चित तौर पर क्रिकेट पर भी लागू होगी। यह इस सच को सामने ला देगा कि ऐसे कोटे की क्यों जरूरत नहीं है। इससे एहसास होगा कि कोटे को बढ़ाने के बजाय इसे सीमित करने की जरूरत है।