आज हम आपको ब्रेन मैपिंग टेस्ट के बारे में जानकारी देने वाले हैं! श्रद्धा मर्डर का आरोपी आफताब इतना शातिर है कि पॉलिग्राफी टेस्ट में भी उसने पुलिस को छका दिया। उसके अलग-अलग बयानों की वजह से पॉलिग्राफ टेस्ट का कोई ठोस नतीजा नहीं मिला। अब गुरुवार को उसका नार्को टेस्ट होगा। पुलिस ने बुधवार को उस पर नार्को टेस्ट के कुछ सेशन किए लेकिन महत्वपूर्ण सेशन 1 दिसंबर को हुआ । अगर पॉलिग्राफी की तरह नार्को टेस्ट में भी पुलिस को कुछ ठोस नतीजे नहीं मिलते हैं तो वह ब्रेन मैपिंग की मांग कर सकती है। दिल्ली पुलिस से जुड़े सूत्रों ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि पुलिस आफताब के ब्रेन मैपिंग के लिए कोर्ट जा सकती है। आखिर ब्रेन मैपिंग टेस्ट क्या है, कैसे होता है, पॉलिग्राफ टेस्ट के दौरान किन सवालों पर आफताब ने अलग-अलग बयान दिया, आइए एक नजर डालते हैं।
हमारा मस्तिष्क यानी दिमाग अरबों न्यूरॉन से बना एक बेहद जटिल अंग है। न्यूरॉन ही शरीर के सभी हिस्सों से दिमाग तक संदेश पहुंचाते हैं और दिमाग के संदेश को शरीर के सभी अंगों तक भेजते भी हैं। ये संदेश मस्तिष्क के तरंग (ब्रेन वेव) बनाते हैं। ब्रेन मैपिंग टेस्ट में इन्हीं तरंगों को मॉनिटर किया जाता है। ब्रेन मैपिंग का इस्तेमाल मस्तिष्क से जुड़ी समस्याओं के इलाज में भी होता है। किसी शख्स की मेंटल हेल्थ कंडिशन की कैसी है, इसका पता लगाने में भी ब्रेन मैपिंग मददगार होती है। आजकल हार्डकोर क्रिमिनल्स से राज उगलवाने के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है।
जिसका टेस्ट करना होता है उसे एक हेल्मेटनुमा हेडबैंड पहनाया जाता है। हेडबैंड में सेंसर लगे होते हैं जो दिमाग की हलचल को मापते हैं। जिस शख्स की ब्रेन मैपिंग होती है उसे किसी तरह का केमिकल या इंजेक्शन लगाने की जरूरत नहीं होती।
सेंसर लगा हेडबैंड एक उपकरण से जुड़ा होता है जिसे ब्रेन फिंगरप्रिंटिंग डिवाइस कहते हैं। यह इलेक्ट्रोइंसेफलोग्राम (EEG) के इस्तेमाल के जरिए शख्स के मस्तिष्क के इलेक्ट्रिकल बिहैवियर का अध्ययन करता है।
फरेंसिक एक्सपर्ट व्यक्ति के सामने क्राइम से जुड़ीं चीजों की तस्वीरें, वीडियो और आवाज सुनाते हैं। ब्रेन मैपिंग में वीडियो, फोटो और ऑडियो आरोपी के सामने लगे सिस्टम पर दिखता है। इन्हें देखने, सुनने के बाद आरोपी के दिमाग में क्या प्रतिक्रिया होती है, उसे फरेंसिक एक्सपर्ट मॉनिटर करते हैं। मशीन पर आ रही तरंगों को देखकर यह पता लगाया जाता है कि वह कितना सच या झूठ बोल रहा है। ये तरंगे (पी 300) तभी पैदा होती हैं जब आरोपी का उन तस्वीरों और ऑडियो से कोई संबंध होता है। बेगुनाह आरोपी क्राइम सीन से जुड़ीं तस्वीरों, वीडियो और ऑडियो को नहीं पहचान पाते बल्कि दोषी संदिग्ध उसे पहचान लेता है।ब्रेन मैपिंग टेस्ट के लिए उस शख्स की सहमति जरूरी होती है जिसका टेस्ट किया जाना होता है। इसके अलावा इसके लिए अदालत से भी अनुमति लेनी होती है।
आफताब का पॉलिग्राफ टेस्ट पूरा हो चुका है। इस टेस्ट के 5 सेशन के दौरान उसने कई अहम सवालों पर अलग-अलग और विरोधाभासी बयान दिए।फरेंसिक एक्सपर्ट व्यक्ति के सामने क्राइम से जुड़ीं चीजों की तस्वीरें, वीडियो और आवाज सुनाते हैं। ब्रेन मैपिंग में वीडियो, फोटो और ऑडियो आरोपी के सामने लगे सिस्टम पर दिखता है। इन्हें देखने, सुनने के बाद आरोपी के दिमाग में क्या प्रतिक्रिया होती है, उसे फरेंसिक एक्सपर्ट मॉनिटर करते हैं। मशीन पर आ रही तरंगों को देखकर यह पता लगाया जाता है कि वह कितना सच या झूठ बोल रहा है। ये तरंगे (पी 300) तभी पैदा होती हैं जब आरोपी का उन तस्वीरों और ऑडियो से कोई संबंध होता है। बेगुनाह आरोपी क्राइम सीन से जुड़ीं तस्वीरों, वीडियो और ऑडियो को नहीं पहचान पाते बल्कि दोषी संदिग्ध उसे पहचान लेता है।
ब्रेन मैपिंग टेस्ट के लिए उस शख्स की सहमति जरूरी होती है जिसका टेस्ट किया जाना होता है। इसके अलावा इसके लिए अदालत से भी अनुमति लेनी होती है।इन्हें देखने, सुनने के बाद आरोपी के दिमाग में क्या प्रतिक्रिया होती है, उसे फरेंसिक एक्सपर्ट मॉनिटर करते हैं। मशीन पर आ रही तरंगों को देखकर यह पता लगाया जाता है कि वह कितना सच या झूठ बोल रहा है। ये तरंगे (पी 300) तभी पैदा होती हैं जब आरोपी का उन तस्वीरों और ऑडियो से कोई संबंध होता है। बेगुनाह आरोपी क्राइम सीन से जुड़ीं तस्वीरों, वीडियो और ऑडियो को नहीं पहचान पाते बल्कि दोषी संदिग्ध उसे पहचान लेता है।ब्रेन मैपिंग टेस्ट के लिए उस शख्स की सहमति जरूरी होती है जिसका टेस्ट किया जाना होता है। इसके अलावा इसके लिए अदालत से भी अनुमति लेनी होती है। अपने लिव-इन पार्टनर श्रद्धा वालकर की हत्या के बाद लाश के टुकड़े करने के लिए किस हथियार का इस्तेमाल किया? लाश के टुकड़ों को कहां-कहां फेंका? पॉलिग्राफ टेस्ट के दौरान इन सवालों पर आफताब के बयानों में पुलिस को गड़बड़ी दिखी है।