आज हम आपको आदित्य L1 के दाता प्रो. यूआर राव के बारे में बताने जा रहे हैं! इसरो ने देश के पहले सूर्ययान आदित्य-L1 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। देश के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण राकेट PSLV-सी57 पीएसएलवी-सी57 के साथ रवाना हुआ। इस मौके पर आदित्य-L1 की प्रोजेक्ट डायरेक्टर निगार शाजी ने देश के मशहूर साइंटिस्ट यूआर राव को याद किया। निगार ने कहा कि प्रोफेसर यूआर राव ने ही इस मिशन का बीज बोया था। उडूपी रामचंद्र राव को भारतीय स्पेस टेक्नोलॉजी का ‘जनक’ कहा जाता है। यूआर राव भारत के पहले उपग्रह आर्यभट्ट के प्रक्षेपण से जुड़े थे। राव ने 1984-1994 तक 10 वर्षों तक इसरो के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। प्रो. राव ने विक्रम साराभाई की मृत्यु के बाद भारत के उपग्रह कार्यक्रम का नेतृत्व किया। उन्होंने भारत के पहले उपग्रह, ‘आर्यभट्ट’ को लॉन्च करने के लिए युवा वैज्ञानिकों की एक टीम का नेतृत्व किया। प्रोफेसर राव के पास अपने सहयोगियों के साथ आर्यभट्ट उपग्रह की परिकल्पना, डिजाइन, निर्माण और टेस्टिंग करने के लिए केवल 36 महीने थे। प्रोफेसर राव ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने 10 मई 1972 को भारत के उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए यूएसएसआर के साथ बातचीत का नेतृत्व किया था। वह लगभग 200 सैटेलाइट वैज्ञानिकों की टीम में शामिल थे। बाद में, एक इंटरव्यू के दौरान राव ने कहा था कि, हमने एस्बेस्टस-छत वाले शेड में रात-दिन काम किया। वहां, व्यावहारिक रूप से कोई बुनियादी ढांचा नहीं था। सड़क पर कारों से ज्यादा बैलगाड़ियां थीं।
प्रो. राव ने फिजिकल रिसर्च लैबोरेट्री, अहमदाबाद में खुद जो एक्स-रे प्रयोग विकसित किया था, वह इस उपग्रह पर था। आर्यभट्ट के बाद, इसरो सैटेलाइट सेंटर, बैंगलोर के पहले निदेशक के रूप में, राव ने प्रयोगात्मक रिमोट सेंसिंग उपग्रहों, भास्कर 1 और 2, रोहिणी डी 2 और एसआरओएसएस श्रृंखला में प्रौद्योगिकी उपग्रहों की कल्पना की। वे भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रहों आईआरएस की नींव थे। उन्होंने भारत का पहला प्रायोगिक संचार उपग्रह, एप्पल को सफलतापूर्वक वितरित किया। यह भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह INSAT सीरीज का अग्रदूत था। प्रो. राव का मानना था कि तेजी से विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग जरूरी है। प्रोफेसर राव ने 1972 में भारत में उपग्रह प्रौद्योगिकी की स्थापना की जिम्मेदारी ली। उनके मार्गदर्शन में, 1975 में पहले भारतीय उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ से शुरुआत की गई। उनके नेतृत्व में संचार, रिमोट सेंसिंग और मौसम संबंधी सेवाएं प्रदान करने के लिए 18 से अधिक उपग्रह डिजाइन और लॉन्च किए गए। 1984 में अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव के रूप में कार्यभार संभालने के बाद, प्रोफेसर राव ने रॉकेट प्रौद्योगिकी के विकास को गति दी।
इसके परिणामस्वरूप एएसएलवी रॉकेट और ऑपरेटिंग पीएसएलवी लॉन्च वाहन का सफल प्रक्षेपण हुआ। यह 2.0 टन वर्ग का प्रक्षेपण कर सकता है। उपग्रहों को ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया गया। प्रोफेसर राव ने 10 मई 1972 को भारत के उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए यूएसएसआर के साथ बातचीत का नेतृत्व किया था। वह लगभग 200 सैटेलाइट वैज्ञानिकों की टीम में शामिल थे। बाद में, एक इंटरव्यू के दौरान राव ने कहा था कि, हमने एस्बेस्टस-छत वाले शेड में रात-दिन काम किया। वहां, व्यावहारिक रूप से कोई बुनियादी ढांचा नहीं था। सड़क पर कारों से ज्यादा बैलगाड़ियां थीं।1991 में भूस्थैतिक प्रक्षेपण यान जीएसएलवी के विकास और क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी के विकास की शुरुआत की। तीन दशक से भी अधिक समय पहले प्रोफेसर यूआर राव ने भारतीय रॉकेटों के लिए स्वदेशी क्रायोजेनिक तकनीक पर भी काम शुरू किया था। उस समय भारत क्रायोजेनिक तकनीक के लिए रूस पर बहुत अधिक निर्भर था।
राव ने लगभग 350 साइंटिफिक और टेक्निकल पेपर प्रकाशित किए। इनमें कॉस्मिक किरणें, अंतरग्रहीय भौतिकी, उच्च ऊर्जा खगोल विज्ञान, अंतरिक्ष अनुप्रयोग और उपग्रह और रॉकेट प्रौद्योगिकी शामिल हैं और कई किताबें लिखीं। बता दें कि 1975 में पहले भारतीय उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ से शुरुआत की गई। उनके नेतृत्व में संचार, रिमोट सेंसिंग और मौसम संबंधी सेवाएं प्रदान करने के लिए 18 से अधिक उपग्रह डिजाइन और लॉन्च किए गए। 1984 में अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव के रूप में कार्यभार संभालने के बाद, प्रोफेसर राव ने रॉकेट प्रौद्योगिकी के विकास को गति दी। उन्होंने 25 विश्वविद्यालयों से डॉक्टर ऑफ साइंस डी.एससी की डिग्री प्राप्त की थी। इसमें यूरोप का सबसे पुराना विश्वविद्यालय, बोलोग्ना विश्वविद्यालय भी शामिल है। प्रोफेसर यू.आर. राव मेक्सिको के ग्वाडलाजारा में प्रतिष्ठित ‘आईएएफ हॉल ऑफ फेम’ में शामिल होने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक बने। यानी सीधी सी बात यह है कि प्रो. यूआर राव ने इस सौरयान को बनाने में अपने जीवन की महत्वपूर्ण भूमिका दी है!