वर्तमान में सरकार दिल्ली के प्रदूषण पर कोई भी सख्त निर्णय नहीं ले पा रही है! दिल्ली की हवा जहरीली होने की गंभीर समस्या से निपटने के लिए आप सरकार ने जो कदम उठाए हैं वो अवैज्ञानिक, अप्रमाणित और यहां तक कि कब के त्याग दिए गए उपाय हैं। इसे देखकर सांस की तकलीफ महसूस कर रही दिल्ली हैरत में पड़ गई है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रजिस्टर्ड कैबों को दिल्ली में आने से रोकना, भले ही उनमें से अधिकांश सीएनजी पर चलते हों, प्रदूषण पर बहुत कम प्रभाव डालेंगे, लेकिन इससे कैब चालकों और यात्रियों दोनों को बड़ी असुविधा होगी। यह पीएम2.5 के स्तर को कम करने के लिए उतना ही अप्रभावी है जितना कि गलत तरीके से लागू की गई ऑड-ईवन स्कीम। पिछले साल भी निर्माण कार्य रोक दिया गया था, लेकिन इस प्रतिबंध में सरकारी मेगा प्रॉजेक्ट्स को शामिल नहीं किया गया था। हर वर्ष ठंड के दस्तक देते ही बेमन से बनाई गई नीति से निराशा होती है। मौसम के पैटर्न, हवा की गति और मानव गतिविधि के प्रभाव के आधार पर पूरे वर्ष के लिए योजना बनाई जा सकती है। यह स्पष्ट है कि पाबंदी केवल एक राज्य की अवैध शराब अर्थव्यवस्था को पनपने में मदद करता है और अधिक लोगों को मादक पदार्थों के सेवन की ओर धकेलता है, फिर भी बिहार जैसे राज्य इसे जारी रखते हैं। महाराष्ट्र में जब कोविड के लॉकडाउन के बाद शराब की दुकानें फिर से खुलीं, तो राज्य ने एक दिन में ₹11 करोड़ का संग्रह किया। लेकिन पटना ने राजस्व भारी-भरकम स्रोत से मुंह मोड़ने का विकल्प चुना।लेकिन अक्सर लक्ष्यों के अनुरूप उचित साधनों पर विचार किए बिना नियम बनाए जाते हैं और सरकारें अक्सर नतीजों का अनुमान लगाने में विफल रहती हैं। 2020 में संपूर्ण लॉकडाउन का अचानक विस्तार करने के फैसले से शुरू हुई अभूतपूर्व प्रवासी संकट ऐसी ही एक घटना थी। सरकारों को अंदाजा ही नहीं था कि लॉकडाउन की घोषणा के बाद लाखों प्रवासी पैदल ही घर का रुख कर लेंगे। इसी वजह से उन्होंने इसके लिए कोई तैयार नहीं की थी। बाद में आंकड़ा मिला कि करीब 1.14 करोड़ प्रवासियों ने पैदल मार्च किया था। यह किसी नीति के अनचाहे नतीजों के सबसे दिल दहला देने वाली मिसालों में से एक था।
इस तरह के नीति-निर्माण से लंबे समय तक चलने वाली आपदा के रूप में कई तरह की पाबंदियां हमारे मुंह बाए खढ़ी हो जाती हैं। हालांकि यह स्पष्ट है कि पाबंदी केवल एक राज्य की अवैध शराब अर्थव्यवस्था को पनपने में मदद करता है और अधिक लोगों को मादक पदार्थों के सेवन की ओर धकेलता है, फिर भी बिहार जैसे राज्य इसे जारी रखते हैं। महाराष्ट्र में जब कोविड के लॉकडाउन के बाद शराब की दुकानें फिर से खुलीं, तो राज्य ने एक दिन में ₹11 करोड़ का संग्रह किया। लेकिन पटना ने राजस्व भारी-भरकम स्रोत से मुंह मोड़ने का विकल्प चुना।
इंटरनेट बंद करना ऐसी ही असफल नीति का एक और उदाहरण है जिसमें जनता को सार्वजनिक लाभ से वंचित करने से लोगों की बढ़ी लागतों का हिसाब भी नहीं दिया जाता है। 2012 और 2023 इस वर्ष के लिए उपलब्ध नवीनतम डेटा के बीच भारत में सरकारों ने 752 इंटरनेट शटडाउन का आदेश दिया, जो दुनिया में सबसे अधिक है। अर्थशास्त्रियों की नजर से कई निगेटिव एक्सटर्नलिटीज पैदा करने वाली ऐसी नीति की एकमात्र विशेषता, इस प्रतिबंध में सरकारी मेगा प्रॉजेक्ट्स को शामिल नहीं किया गया था। हर वर्ष ठंड के दस्तक देते ही बेमन से बनाई गई नीति से निराशा होती है। मौसम के पैटर्न, हवा की गति और मानव गतिविधि के प्रभाव के आधार पर पूरे वर्ष के लिए योजना बनाई जा सकती है। लेकिन अक्सर लक्ष्यों के अनुरूप उचित साधनों पर विचार किए बिना नियम बनाए जाते हैं और सरकारें अक्सर नतीजों का अनुमान लगाने में विफल रहती हैं। 2020 में संपूर्ण लॉकडाउन का अचानक विस्तार करने के फैसले से शुरू हुई अभूतपूर्व प्रवासी संकट ऐसी ही एक घटना थी।यह है कि लोग, चाहे वो प्रवासी हों या इंटरनेट यूजर या फिर यात्री, सबकी लागत बढ़ जाती है। बता दें कि मादक पदार्थों के सेवन की ओर धकेलता है, फिर भी बिहार जैसे राज्य इसे जारी रखते हैं। महाराष्ट्र में जब कोविड के लॉकडाउन के बाद शराब की दुकानें फिर से खुलीं, तो राज्य ने एक दिन में ₹11 करोड़ का संग्रह किया। लेकिन पटना ने राजस्व भारी-भरकम स्रोत से मुंह मोड़ने का विकल्प चुना। एनसीआर के कार्यालयों और घरों के बाहर धुंध की चादर और कुछ नहीं बल्कि धुंधले नीति निर्माण का ही प्रतिबिंब है।