Wednesday, December 18, 2024
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आखिर क्या है मानसरोवर झील की अद्भुत कहानी?

आज हम आपको मानसरोवर झील की अद्भुत कहानी बताने वाले हैं! उत्तराखंड अपनी धार्मिक मान्यताओं, साहसी और दिलचस्प पर्यटन और मनलुभावन प्रकृति के लिए जाना जाता है। इस ही राज्य के पिथौरागढ़ जनपद में स्थित तिब्बत सीमा से लगा समुद्र तल से लगभग 6,191 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ओम पर्वत अपने आप में दर्शनीय और रहस्यमय है। यह पर्वत उच्च हिमालय पर्वत श्रृंखला के विभिन्न पहाड़ों में से एक है। ओम पर्वत की अनुपम छटा, अद्भुत प्रकृति और साहसी आरोहण को नजदीक से देखने व समझने के लिए कई प्रकृति प्रेमी और पर्वतारोही दल यहां अक्सर पहुंचते रहते हैं। इस अनेकों रहस्यों से भरपूर पर्वत का दीदार नाबीडांग से होता है। नाबीडांग से कुट्टी गांव होते हुए लिटिल कैलाश, आदि कैलाश, बाबा कैलाश, स्थानो पर भी पहुंचा जा सकता है। इन जगहों के ठीक विपरीत लिपुलेख दर्रा होते हुए भी तिब्बत बॉर्डर पर स्थित कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए जाया जा सकता है। तिब्बत सीमा के पास स्थित इस शानदार पर्वत श्रृंखला के अनेकों अंगों से अन्नपूर्णा की विशालकाय चोटियों का दीदार भी मधुमस्त कर देने वाला होता है। यहां आने वाले प्रकृति प्रेमी अक्सर यहां से अनेकों अनेक चोटियों का दीदार कर खुद को मंत्र मुक्त पाते हैं।

पौराणिक कथाओं और पुरातन मान्यताओं के अनुसार ओम पर्वत अपने आप में कई महत्व और रहस्य संजोए हुए हैं। इस अनुपम स्थान को नजदीक से देख लौट आए पर्वतारोहियों की मानी जाए तो इस पहाड़ पर बर्फ के बीच ओम ॐ शब्द का आकार दिखाई देता है। यही कारण है कि इस पर्वत का नाम ओम पर्वत पड़ा। यूं तो कहा यह भी जाता है कि हिमालय के विभिन्न पर्वतों पर ओम शब्द की आकृतियां बनी हुई है, लेकिन इनमें से अब तक केवल ओम पर्वत की आकृति के विषय में ही पता चल सका है। यह अनुपम चोटी हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्म में भी विशेष धार्मिक महत्व अर्जित किए हुए हैं। इस पर्वत के दूसरी तरफ पार्वती मुहर नाम का एक पहाड़ है जो इसी नाम के एक दर्रे से जुड़ा हुआ है। इस पर्वत को लेकर भारत और नेपाल के बीच सीमा रेखा पर सहमति नहीं है जबकि पर्वत पर ओम का निशान भारत की तरफ और इसका पृष्ठ भाग नेपाल में दिखता है।

कई चोटियों पर फतह प्राप्त करने वाले पर्वतारोहियों के दल इस पर्वत की चोटी पर पहुंचने का प्रयास कर चुके हैं। सबसे पहले ब्रिटिश और भारतीय पर्वतारोहियों के संयुक्त दल ने इस चोटी को फतह करने का प्रयास किया था। हालांकि इस दल ने पर्वत की धार्मिक मान्यता का सम्मान करते हुए शिखर से 30 फीट पहले ही रुक जाने का फैसला किया, लेकिन मौसम खराब होने के कारण यह दल चोटी से 660 फीट पहले ही वापस लौट आया। सन 2008 के अक्टूबर महीने में एक अन्य दल ने इस पर्वत के शिखर पर चढ़ाई का प्रयास किया और पर्वत शिखर का सम्मान करते हुए यह दल चोटी से कुछ मीटर पहले वापस लौटा।

चमोली जिले में स्थित भारत के प्रथम गांव माणा से आदि कैलाश यात्रा प्रारंभ करने की मांग हो चुकी है। इस पैनखंडा क्षेत्र के नेता स्वर्गीय रमेश चंद्र सती ने इस मांग को उठाया था। उन्होंने इस यात्रा को चमोली जिले से प्रारंभ करने के लिए दो मार्ग सुझाए थे। पहले मार्ग नीति घाटी से ग्यलडउंग होते हुए है। इसमें कुल 10 पड़ाव है। नीति से कैलाश मानसरोवर परिक्रमा पथ की दूरी लगभग 110 किलोमीटर है। दूसरा मार्ग नीति घाटी से सुमना रिमखिम, शिवचिलम होते हुए बताया गया था इसकी दूरी लगभग 100 किलोमीटर है।

कैलाश मानसरोवर को शिव और पार्वती का घर माना जाता है। सदियों पूर्व से ही देवता और योगी महापुरुषों के साथ-साथ कई सिद्ध महात्मा यहां भगवान शिव के लिए आराधना और तपस्या करते हैं।इनमें से अब तक केवल ओम पर्वत की आकृति के विषय में ही पता चल सका है। यह अनुपम चोटी हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्म में भी विशेष धार्मिक महत्व अर्जित किए हुए हैं। इस पर्वत के दूसरी तरफ पार्वती मुहर नाम का एक पहाड़ है जो इसी नाम के एक दर्रे से जुड़ा हुआ है। इस पर्वत को लेकर भारत और नेपाल के बीच सीमा रेखा पर सहमति नहीं है जबकि पर्वत पर ओम का निशान भारत की तरफ और इसका पृष्ठ भाग नेपाल में दिखता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति मानसरोवर झील की धरती मात्रा को स्पर्श कर ले वह सीधा बैकुंठ को प्राप्त हो जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ओम पर्वत पर आज भी भगवान शिव वास और जग कल्याण करते हैं।

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