Monday, December 23, 2024
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आखिर क्या नियम रखता है पत्नी का गुजारा भत्ता?

आज हम आपके पत्नी के गुजारा भत्ता के नियम के बारे में जानकारी देने वाले हैं! पति-पत्नी में अलगाव के बाद अक्सर गुजारा भत्ता के लिए अदालती जंग चलती है। कुछ मामलों में पति अपनी कमाई छिपाकर कोर्ट की तरफ से तय गुजारा भत्ता देने में आनाकानी करता है तो कुछ मामले ऐसे भी आते हैं जब ठीक-ठाक कमाई करने की स्थिति में होने के बावजूद पार्टनर कुछ करना नहीं चाहता या चाहती। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐसे ही मामले में फैसला दिया है कि अगर पार्टनर कमाई करने में सक्षम है तो दूसरे पार्टनर पर मैंटिनेंस का बोझ नहीं डाला जा सकता। इतना ही नहीं, कोर्ट ने कहा कि शादी से जुड़े कानून में मैंटिनेंस के नियम जेंडर न्यूट्रल हैं यानी दोनों पार्टनर में लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता।  सबसे पहले बात दिल्ली हाई कोर्ट के ताजा फैसले की। मैंटिनेंस से जुड़े एक मामले में कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई पार्टनर कमाई करने में सक्षम है तो दूसरे पार्टनर पर मैंटिनेंस का बोझ नहीं डाला जा सकता। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि 1955 के हिंदू मैरिज ऐक्ट के तहत मैंटिनेंस को लेकर जो प्रावधान हैं, वे पूरी तरह से जेंडर न्यूट्रल हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई पार्टनर बिना कोई वाजिब वजह के बेरोजगार रहने का फैसला करता है तो दूसरे पार्टनर पर खर्च चलाने के लिए मैंटिनेंस का एकतरफा बोझ नहीं डाला जा सकता। इस मामले में एक शख्स ने फैमिली कोर्ट के अप्रैल 2022 के एक फैसले को चुनौती दी थी जिसमें उसे अपनी पत्नी को हर महीने 30 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने और कानूनी खर्च की भरपाई के लिए अलग से एकमुश्त 51 हजार रुपये देने का आदेश दिया था। हाई कोर्ट ने शख्स को राहत देते हुए मैंटिनेंस की रकम को 30 हजार रुपये महीने से घटाकर 21 हजार रुपये कर दिया। कोर्ट ने इस दौरान टिप्पणी की कि पत्नी कमाई करने में सक्षम है लेकिन उसने बिना किसी वाजिब कारण के बेरोजगार बना रहना चुना। ऐसा कोई संकेत नहीं है कि उसने रोजगार हासिल करने के लिए अपनी तरफ से ईमानदार कोशिश की हो। ऐसे में खर्चों की पूर्ति की सारी जिम्मेदारी एकतरफा तरीके से पति पर नहीं डाली जा सकती।

अब बात मैंटिनेंस से जुड़े नियम-कानून की। CRPC कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की व्यवस्था की गई है। इसके तहत पत्नी, बच्चे या माता-पिता सरीखे आश्रित तब मैंटिनेंस का दावा कर सकते हैं जब उनके पास आजीविका का कोई अन्य साधन उपलब्ध नहीं हो। गुजारा भत्ता के दो प्रकार हैं- अंतरिम और स्थायी। अगर मामला अदालत में लंबित है तो उस दौरान के लिए जो गुजारा भत्ता तय किया जाता है, वह अंतरिम गुजारा भत्ता होता है। कोई व्यक्ति पर्मानेंट मैंटिनेंस के लिए भी दावा कर सकता है। तलाक जैसे मामलों में स्थायी गुजाराभत्ता का आदेश तबतक लागू रहता है जबतक कि संबंधित पक्ष पति या पत्नी दोबारा शादी न कर ले या उनमें से किसी एक की मौत न हो जाए।

हिंदू मैरिज ऐक्ट, 1955 के तहत पति या पत्नी गुजारा भत्ते का दावा कर सकते हैं। कानून पूरी तरह जेंडर न्यूट्रल है। इसकी धारा 24 कहती है कि अगर पति या पत्नी के पास अपना गुजारा करने के लिए आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है तो वे इसके तहत पार्टनर से अंतरिम गुजारा भत्ता और इस प्रक्रिया में लगने वाले खर्च की क्षतिपूर्ति का भी दावा कर सकते हैं। धारा 25 के तहत पार्टनर स्थायी गुजारा भत्ता का दावा कर सकते हैं अगर वे खुद को गुजारा करने में असमर्थ पाते हैं। घरेलू हिंसा कानून 2005 के तहत भी कोई महिला अपने और बच्चों के लिए गुजारे भत्ते की मांग कर सकती है। हालात के हिसाब से अदालतें गुजारे भत्ते को घटा-बढ़ा या रद भी कर सकती हैं। किसी केस में गुजारा भत्ता कितना होगा, इसका कोई तय फॉर्म्युला नहीं है। यह केस और परिस्थितियों के हिसाब से तय होगा। गुजारे भत्ते की रकम अदालतों के विवेक पर निर्भर है।

सुप्रीम कोर्ट ने 4 नवंबर 2020 को ‘रजनीश बनाम नेहा’ केस में मैंटिनेंस को लेकर अदालतों के लिए गाइडलाइंस तय किए थे। शीर्ष अदालत ने कहा कि गुजारा भत्ता की रकम कितनी हो, इसका कोई तय फॉर्म्युला नहीं है। यह केस टु केस अलग-अलग हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ते की राशि तय करते वक्त अदालतों को इससे जुड़े पिछले फैसलों पर विचार करना चाहिए। मैंटिनेंस की रकम तय करते वक्त दोनों पार्टियों की स्थिति, आवेदक की जरूरत, प्रतिवादी की आय और संपत्ति, दावेदार की वित्तीय जिम्मेदारियों, संबंधित पक्षों की उम्र और रोजगार की स्थिति, नाबालिग बच्चों के भरण पोषण और बीमारी या अक्षमता जैसे तमाम पहलुओं पर विचार करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि गुजारा भत्ता से जुड़े आदेशों का पालन भी सिविल कोर्ट के फैसलों की तरह होना चाहिए। आदेश का पालन नहीं होने पर हिरासत में लिए जाने से लेकर प्रॉपर्टी जब्त करने जैसी कार्रवाई हो। इतना ही नहीं, अदालतों के पास अधिकार होगा कि वे अवमानना की कार्रवाई शुरू कर सके।

अप्रैल 2022 में बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने नांदेड़ सिविल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए महिला को अपने पूर्व पति को हर महीने 3 हजार रुपये अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। इस मामले में जोड़े की शादी 17 अप्रैल 1992 को हुई थी। महिला ने क्रूरता का आरोप लगाते हुए तलाक की मांग की थी। 17 जनवरी 2015 को दोनों के तलाक पर मुहर लग गई। तलाक के बाद पूर्व पति ने महिला से 15 हजार रुपये मासिक गुजारे भत्ते का दावा किया क्योंकि उसके पास आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं था। महिला एक शिक्षण संस्थान में नौकरी करती है। नांदेड़ सिविल जज ने उसे अपने पूर्व पति को अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था।

2015 में ‘राजेश बनाम सुनीता और अन्य’ केस में पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया कि पति गुजारा भत्ता देने से भाग नहीं सकता, भले ही उसे देने के लिए उसे भीख तक क्यों न मांगनी पड़े। अदालत ने कहा, ‘अगर पति गुजारा भत्ता देने में असफल रहता है तो हर डिफॉल्ट पर उसे सजा काटनी होगी।’ हाई कोर्ट ने कहा कि पति की पहली और सबसे अहम जिम्मेदारी अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर है। इस जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए उसके पास भीख मांगने, उधार लेने या चोरी करने का विकल्प है।

दिलचस्प बात ये है कि इस फैसले के करीब 3 साल बाद जनवरी 2018 में मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामले में फैमिली कोर्ट के जजों को सलाह दी कि गुजारा भत्ता के मामलों में वे ‘भीख मांगो, उधार लो या चोरी करो’ जैसी टिप्पणियों से परहेज करें। जस्टिस आरएमटी टीका रमन ने कहा कि भीख मांगना या फिर चोरी करना गैरकानूनी है। इसलिए इस तरह की टिप्पणियां न करें। अगर पति नपुंसक है तब भी पत्नी को उससे मैंटिनेंस पाने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने 1981 में ‘सिराज मोहम्मद खान जान मोहम्मद खान बनाम हफीजुन्निसा यासीन खान’ केस में कहा कि अगर पति नपुंसक हो तो भी पत्नी को गुजारा भत्ता की इजाजत दी जा सकती है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि नपुंसक पति अपने वैवाहिक दायित्वों का निर्वहन नहीं कर सकता जो पत्नी के लिए मानसिक यातना है। ऐसी स्थिति में अगर महिला पति के साथ रहने से इनकार करती है तो उसे पति से गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है।

यमुनाबाई अनंतराव आधव बनाम रनंतराव शिवराम आधव केस में सर्वोच्च अदालत ने कहा कि अगर कोई महिला किसी ऐसे शादीशुदा शख्स से हिंदू रीति-रिवाज के साथ शादी की हो जो अपनी पहली पत्नी के साथ रहता आया हो, तब कानून की नजर में उसकी शादी मान्य नहीं है। ऐसे में वह CRPC की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता का दावा नहीं कर सकती।

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