क्या विपक्ष के INDIA गठबंधन में पड़ सकती है दरार?

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विपक्ष के INDIA गठबंधन में अब दरार पड़ सकती है! तीन महीने बाद एक बार फिर दिल्ली के अशोका होटल में I.N.D.I.A. गठबंधन के नेताओं का जमावड़ा लगा है। 28 दलों के नेता सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर चर्चा करेंगे। तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस बैकफुट पर नजर आ रही है। बैठक से पहले इंडिया के पार्टनर जेडी यू ने नेतृत्व का सवाल उठाया है तो शिवसेना ने अपने अखबार सामना में विधानसभा चुनाव में अन्य दलों को सीट नहीं देने के लिए कांग्रेस की आलोचना की है। आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल पहले ही संकेत दे चुके हैं कि वह दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस को सीट देने के मूड में नहीं हैं। ममता बनर्जी ने भी कांग्रेस को याद दिला दिया है कि सीटों के बंटवारे पर चर्चा करते समय बंगाल में अपनी हैसियत को नहीं भूलें। कांग्रेस की मुसीबत यह है कि देश के जिन राज्यों में वह अकेले दम पर चुनावी दम दिखा सकती है, वहां उसने सहयोगियों को भाव नहीं दिया है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में उसने किसी पार्टी के साथ समझौता नहीं किया। अब इंडिया की बैठक कांग्रेस को सहयोगियों के किले में अपने लिए लोकसभा सीटों के लिए मोलतोल करना है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सिर्फ 52 सीटें जीती थीं। कांग्रेस ने पंजाब में 8, तमिलनाडु में 8 और केरल में 15 सीटें जीती थीं। तेलंगाना और असम में पार्टी को 3-3 सीटें मिली थीं। इसके बाद वह अन्य राज्यों में एक या दो सीट जीतने में ही सफल रही। गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और आंध्रप्रदेश में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था। राजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में सिर्फ एक-एक सीट ही मिली थी। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को दो सीटें मिली थी, जिसके बार में इंडिया की बैठक से पहले ममता बनर्जी ने चर्चा की। फिर सीटों के बंटवारे के लिए फार्मूला क्या होगा? सबसे बड़ा सवाल है कि मोदी लहर में बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों के क्षत्रप कांग्रेस को कितनी सीट देंगे। कांग्रेस 370 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, जबकि सहयोगियों को 173 सीटों पर समर्थन देगी। 373 सीटों के दावे को मान लें तो कांग्रेस कर्नाटक, असम, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात में सीट बांटने के मूड में नहीं है। पार्टी उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ना चाहती है।

पंजाब में लोकसभा की 13 और दिल्ली में 7 सीटें हैं। 2019 में कांग्रेस को 8 और आम आदमी पार्टी को दो सीटें मिली थीं। बीजेपी और अकाली दल के खाते में 2-2 सीटें आईं थीं। मगर विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दोनों राज्यों में कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन किया। 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की 70 सीटों में से 62 सीटें जीती थीं जबकि कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था। आम आदमी पार्टी को 54.3 फीसदी और कांग्रेस को महज 9.7 फीसदी वोट मिले थे। 2022 में आम आदमी पार्टी ने पंजाब में भारी जीत दर्ज की। 117 सदस्यों वाली विधानसभा में आप के 92 विधायक हैं। उसका वोट प्रतिशत 42.01 है। दूसरी ओर करारी हार के बाद कांग्रेस पंजाब में 18 सीटों पर सिमट गई। उसे 22.98 प्रतिशत वोट ही मिले थे। वोट शेयर के आधार पर इन दोनों राज्यों में आम आदमी का पलड़ा भारी है। इंडिया गठबंधन की बैठक में यह तय करना है कि अरविंद केजरीवाल दोनों राज्यों की कुल 20 में से कुल कितनी सीट कांग्रेस को देंगे। इस बार आम आदमी पार्टी हरियाणा में भी अपने प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर रही है। अगर सहमति नहीं बनी तो इन राज्यों में इंडिया को झटका लग सकता है।

विपक्षी गठबंधन इंडिया में पहली बार कलह पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान सामने आया था। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने मध्यप्रदेश और राजस्थान में सीट शेयरिंग नहीं करने के लिए कांग्रेस पर हमला बोला था। उत्तरप्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं। बीजेपी को रोकने के लिए अखिलेश यादव ने सीट शेयरिंग में नरमी बरतने के संकेत दिए हैं, मगर यूपी में कांग्रेस की हालत पतली है। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ सोनिया गांधी की सीट रायबरेली ही जीत सकी थी। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा था। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2.33 ही रहा। इसके उलट समाजवादी पार्टी ने लोकसभा में पांच और विधानसभा में 111 सीटें जीती हैं। राज्य में 32.06 प्रतिशत वोट सपा के खाते में आई थीं। कांग्रेस 2009 के फार्मूले के आधार पर 21 लोकसभा सीट की मांग कर रही है।

बिहार में सीटों को लेकर भी बड़ा पेंच फंसा है। राज्य की कुल 40 लोकसभा सीटों में से 16 जेडी-यू के खाते में है। बाकी बची 24 सीटों में 17 पर राष्ट्रीय जनता दल की दावेदारी है। बिहार के महागठबंधन में सीपीआई भी है। उसने भी 6 सीटों की डिमांड की है। कांग्रेस के पास अभी राज्य से सिर्फ एक लोकसभा सांसद है। सूत्र बताते हैं कि बिहार में कांग्रेस की किस्मत लालू यादव के हाथ में है। नीतीश कुमार की जेडी यू और लालू यादव की आरजेडी 16-16 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। बाकी बची 8 सीटों में से पांच कांग्रेस को मिल सकती है। लालू यादव और नीतीश कुमार इस फार्मूले के साथ दिल्ली पहुंचे हैं, जिसमें कांग्रेस नेताओं से इस पर चर्चा की जाएगी। हालांकि इससे पहले जेडी यू संयोजक के मुद्दे को साफ करना चाहती है।

बड़े राज्यों में से एक पश्चिम बंगाल में इंडिया गठबंधन की अग्निपरीक्षा होगी। पिछले लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने 42 में से 22 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें मिली थीं। 2021 के विधानसभा चुनाव के नतीजों में कांग्रेस पूरी तरह बंगाल से साफ हो गई। उसे सिर्फ 2.19 प्रतिशत वोट मिले थे। टीएमसी ने 215 सीटों के साथ 48 फीसदी वोट हासिल किए थे। हालांकि ममता बनर्जी ने संकेत दिए हैं कि वह सीट बंटवारे में उदारता बरतेंगी, मगर उन्होंने साफ किया है कि कांग्रेस पिछले चुनाव में सिर्फ दो सीटें ही जीत सकी है। दक्षिण के राज्यों में कांग्रेस के लिए खास समस्या नहीं है। कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना में उसके पास कोई गठबंधन पार्टनर नहीं है। तमिलनाडु और केरल में सीट शेयरिंग का फार्मूला पहले से ही तय है। हिंदी भाषी राज्यों में सीट बंटवारे में उसे यह साफ करना होगा कि मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा में वह इंडिया के सहयोगी दलों को कितनी सीटें ऑफर करती हैं। अगर बात नहीं बनी तो यूपी और दिल्ली में गठबंधन का टूटना तय है।