क्या बीजेपी कांग्रेस के नेताओं को अपनी साइड कर पाएगी?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि बीजेपी कांग्रेस के नेताओं को अपनी साइड कर पाएगी या नहीं! लोकसभा चुनाव सिर पर हैं। भारतीय जनता पार्टी ने इसके लिए अपनी तैयारी तेज कर दी है। तीसरी बार केंद्र की सत्‍ता में काबिज होने के लिए उसने कई प्‍लान बनाए हैं। इनमें से एक दूसरे दलों के नेताओं को तोड़कर अपने साथ मिलाना भी है। वैसे तो इसके लिए भगवा पार्टी की नजर सभी दलों पर है। लेकिन, उनमें भी सबसे ऊपर कांग्रेस है। इसके पीछे दो बड़ी मंशा हैं। पहली, इससे बीजेपी को मजबूती मिलेगी। दूसरी, प्रतिभावान नेताओं को चुन अपने साथ मिलाकर वह विपक्ष को कमजोर करने में कामयाब होगी। इसे राहुल ब्रिगेड पर बीजेपी के डोरे डालने की बड़ी वजह भी माना जाता है। दरअसल, बीजेपी ने कमजोर सीटों के लिए स्ट्रैटेजी बनाई है। ये ऐसी सीटें हैं जहां वह चुनावी और वैचारिक तौर पर कमजोर है। पार्टी इन सीटों को मजबूत करने के लिए नए लोगों का स्‍वागत कर रही है। इससे चुनावी माहौल भी बनेगा। हालांकि, इस बार निशाने पर मुख्‍य रूप से कांग्रेस होगी। पार्टी के प्रभावशाली नेताओं के निकलने से यह उसे कमजोर करेगा। बीजेपी आलाकामान पहले ही इसके लिए एक उच्च-स्तरीय समिति बना चुका है। इसका नाम ज्‍वाइनिंग कमिटी दिया गया है। इसमें केंद्रीय मंत्री भूपिंदर सिंह यादव, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, राष्ट्रीय पार्टी महासचिव विनोद तावड़े और महासचिव संगठन बीएल संतोष शामिल हैं। यह समिति संभावित उम्‍मीदवारों को पार्टी में शामिल करने से पहले उनकी स्‍क्रीनिंग करेगी। किसी उम्‍मीदवार को पार्टी के साथ जोड़ा जाए या नहीं, पहला निर्णय इसी का होगा।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी नीतियों के सबसे बड़े आलोचकों के तौर पर पेश किया है। उन्‍हें पीएम मोदी के खिलाफ विपक्ष के प्रमुख चेहरे के तौर पर देखा जाता है। बीजेपी की कोशिश राहुल को राजनीतिक रूप से कमजोर करने की है। वह कांग्रेस में राहुल के प्रभाव को कम करना चाहती है। यही वजह है कि हाल के सालों में बीजेपी ने राहुल की टीम से कई युवा नेताओं को शामिल किया है। उन्हें मुख्‍य पद देकर इनाम भी दिया है। इन नेताओं में ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह शामिल हैं। सिंधिया केंद्रीय विमानन मंत्री हैं। प्रसाद योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार में लोक निर्माण मंत्री हैं। वहीं, आरपीएन सिंह को बीजेपी में बड़े पद का इंतजार है।

वैसे तो बीजेपी ने सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा को भी अपने साथ मिलाने की कोशिश की। लेकिन, बात नहीं बनी। देवड़ा आखिरकार पिछले रविवार को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना में शामिल हो गए। यह महाराष्ट्र में बीजेपी की सहयोगी है। अभी तक कांग्रेस आलाकमान पायलट को बनाए रखने में कामयाब रहा है। उन्हें एआईसीसी के महासचिव पद पर प्रमोट किया गया है। अगर नेताओं को पाला बदलने के लिए लुभाकर बीजेपी कांग्रेस पर चोट करने में अब और कामयाब हुई तो इसका राहुल गांधी पर सीधा असर पड़ेगा। इसे राहुल की बड़ी नाकामी माना जाएगा। इसके उलट अपनी कोशिश में बीजेपी ने कांग्रेस के ही कई पुराने दिग्‍गजों को इस कवायद में लगा रखा है। इनमें हिमंत बिस्वा सरमा, एन बीरेन सिंह पेमा खांडू, नारायण राणे, कैप्टन अमरिंदर सिंह, विजय बहुगुणा, एसएम कृष्णा और दिगंबर कामत शामिल हैं।

इसके अलावा ऐसे समय में जब बीजेपी अपने आधार का विस्तार करने के लिए केरल में ईसाइयों को लुभाने की कोशिश कर रही है। तब पार्टी ने केजे अल्फोंस, टॉम वडक्कन और अनिल एंटनी सहित समुदाय के कुछ प्रमुख चेहरों को शामिल किया है। अनिल एंटनी कांग्रेस के दिग्गज नेता और रक्षा मंत्री रह चुके एके एंटनी के बेटे हैं। इसमें केंद्रीय मंत्री भूपिंदर सिंह यादव, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, राष्ट्रीय पार्टी महासचिव विनोद तावड़े और महासचिव संगठन बीएल संतोष शामिल हैं। यह समिति संभावित उम्‍मीदवारों को पार्टी में शामिल करने से पहले उनकी स्‍क्रीनिंग करेगी। किसी उम्‍मीदवार को पार्टी के साथ जोड़ा जाए या नहीं, पहला निर्णय इसी का होगा।मीडिया में खबरें हैं कि बीजेपी कांग्रेस खेमे के ऐसे कई नेताओं के संपर्क में है जो उसके साथ जुड़ने की इच्‍छा रखते हैं।दिग्‍गजों को इस कवायद में लगा रखा है। इनमें हिमंत बिस्वा सरमा, एन बीरेन सिंह पेमा खांडू, नारायण राणे, कैप्टन अमरिंदर सिंह, विजय बहुगुणा, एसएम कृष्णा और दिगंबर कामत शामिल हैं। इनमें से कुछ हरियाणा, महाराष्ट्र, पंजाब और राजस्थान में गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं। ये लोकसभा चुनाव से पहले पाला बदल सकते हैं।