वर्तमान में मोदी सरकार ने बजट में चौंका कर रख दिया है! मोदी सरकार ट्रेंड तोड़ने की माहिर है। अक्सर देखने को मिला है कि वह अपने फैसलों से चौंका देती है। यही कारण है कि उसके फैसलों के बारे में अनुमान लगा पाना मुश्किल होता है। बात चाहे राजनीति की हो या आर्थिक नीतियों की। इस मामले में उसका रिकॉर्ड एक जैसा है। यह सरकार परिपाटियों को तोड़ने के लिए जानी जाती है। मोदी 1.0 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट को पेश करने की 92 साल पुरानी परंपरा तोड़ी थी। बजट को फरवरी के अंत में पेश करने के बजाय इसे फरवरी के पहले दिन पेश करना शुरू किया गया था। फिर मोदी 2.0 में ब्रीफकेस की जगह बही-खाता जैसे प्रयोग किए गए। 2019 से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करने के लिए ब्रीफकेस की जगह लाल कपड़े से ढके बही-खाते का इस्तेमाल करती रही हैं। यह बदलाव प्रतीकात्मक है। इसका मकसद भारत की समृद्ध विरासत और पारंपरिक मूल्यों को दर्शाना है। गुरुवार को पेश होने वाला बजट अंतरिम बजट है। यह लोकसभा चुनाव से पहले पेश किया जा रहा है। इसी के चलते ज्यादातर लोगों को उम्मीद है कि यह लोकलुभाव होगा। इसमें भी चार ‘जातियों’ पर ज्यादा फोकस हो सकता है। इन चार ‘जातियों’ में गरीब, युवा, महिला और किसान शामिल हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार कहते रहे हैं कि उनके लिए सिर्फ यही चार जातियां हैं। सवाल यह है कि ट्रेंड तोड़ने की माहिर मोदी सरकार बजट में चौंकाएगी तो नहीं! क्या ऐसी भी उम्मीद की जा सकती है कि नई स्कीमों पर बड़े खर्च करने के ट्रेंड को छोड़ बजट गैप को कम करने पर फोकस हो। अर्थव्यवस्था को बम-बम रखने के लिए बुनियादी ढांचे पर ध्यान दिया जाए। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को बजट पेश करेंगी। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इसके जरिये पॉलिटिकल मैसेज भी दिया जाएगा। ऐसे में मोदी सरकार ग्रोथ की पिच पर बैटिंग कर सकती है। इस कड़ी में उसकी ओर से खर्चों को काबू में रखने का नजरिया भी अपनाया जा सकता है।सिटीग्रुप के इकनॉमिस्ट समीरन चक्रवर्ती की मानें तो सरकार शायद चुनाव से पहले राजनीतिक संदेश दे। वह खर्चों और आर्थिक मजबूती के बीच संतुलन बनाकर रख सकती है।
मसलन, सरकार महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए महिला किसानों को वार्षिक भुगतान दोगुना कर 12,000 रुपये कर सकती है। इसे लागू करने में सरकारी खजाने पर करीब 1,195 करोड़ का बोझ पड़ेगा। यह सरकार के कुल खर्च में एक छोटी रकम है। लेकिन, इसका मैसेज बहुत बड़ा होगा। सरकार सब्सिडी के मद में होने वाले खर्च को भी मौजूदा स्तर पर रख सकती है। मोदी सरकार पहले ही मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम को अगले पांच साल के लिए बढ़ा चुकी है। इसमें भी बहुत कम अतिरिक्त खर्च आएगा। कारण है कि सालों से यह सब्सिडी वाली स्कीम चली रही है।
सरकार अपने राजकोषीय घाटे को कम करने की कोशिश में है। यह खर्च और राजस्व के बीच का अंतर होता है। वह इसे चालू वित्तीय वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद के 5.9 फीसदी के लक्ष्य से कम से कम आधा फीसदी घटाना चाहती है।
सरकार से यह उम्मीद भी है कि वह युवाओं में बेरोजगारी को लेकर विपक्ष की आलोचना पर ध्यान देगी। बुनियादी ढांचे पर भारी खर्च को जारी रखेगी। जबकि विदेशी और घरेलू निर्माताओं को प्रोत्साहन के जरिये निवेश करने के लिए लुभाने की कोशिश करेगी। यह इस उम्मीद में किया जा सकता कि इससे नौकरियां पैदा होंगी। चुनावी साल में राजकोषीय घाटा कम होने की कोशिश से पता चलेगा कि सरकार मतदाताओं को लुभाने के लिए सामाजिक खर्च पर बहुत अधिक निर्भर नहीं हो सकती है। अलबत्ता, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर भरोसा कर रही है। इसने सत्तारूढ़ पार्टी को हाल के राज्य चुनावों में जीत हासिल करने में मदद की है।
सार्वजनिक खर्च के बूते भारत की अर्थव्यवस्था जुलाई-सितंबर तिमाही में 7.6 फीसदी बढ़ी। ऐसे में मोदी सरकार ग्रोथ की पिच पर बैटिंग कर सकती है। इस कड़ी में उसकी ओर से खर्चों को काबू में रखने का नजरिया भी अपनाया जा सकता है।सिटीग्रुप के इकनॉमिस्ट समीरन चक्रवर्ती की मानें तो सरकार शायद चुनाव से पहले राजनीतिक संदेश दे। वह खर्चों और आर्थिक मजबूती के बीच संतुलन बनाकर रख सकती है।31 मार्च को समाप्त होने वाले पूरे वर्ष के लिए 7.3 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया जा रहा है। यह प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में दुनिया की सबसे तेज रफ्तार है।