वर्तमान में युवाओं में भी प्रोस्टेट कैंसर का खतरा बढ़ता ही जा रहा है! मुंबई के मरीन ड्राइव के रहने वाले एस. निखिल ने 18 महीने पहले कोविड महामारी के बाद पहली बार पूरे शरीर का चेकअप करवाया था। निखिल ने अपने दोस्तों के कहने पर यह चेकअप कराया था। निखल के पूरे शरीर का चेकअप होने के बाद जो रिपोर्ट सामने आई वो वाकई चौंकाने वाली थी। उनकी रिपोर्ट में प्रोस्टेट-विशिष्ट एंटीजन पीएसए का स्तर बहुत अधिक पाया गया। सरल भाषा में बताएं तो निखिल को प्रॉस्टेट कैंसर था। पीएसए असल में इसी कैंसर का संकेत देने वाला एक प्रोटीन होता है। पेशे से बिजनेसमैन निखिल बताते हैं कि मैं उस वक्त 55 साल का था, स्वस्थ था, लगभग हर रोज टेनिस खेलता था और ऐसा कोई लक्षण नहीं था जिससे मुझे शक हो कि मुझे प्रॉस्टेट कैंसर भी हो सकता है। निखिल को कैंसर होने का एक और कारण यह था कि उन्हें कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे। आम तौर पर यह बीमारी 70-80 साल के बुजुर्गों को होती है। लेकिन जांच के बाद डॉक्टरों को पता चला कि उन्हें आठवें चरण का प्रॉस्टेट कैंसर है, जिसका जल्द ऑपरेशन जरूरी था। यूरो-ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. अनूप रमानी और डॉ. अमित जोशी के मुताबिक, निखिल का मामला एक नए चलन को दर्शाता है, जिसमें प्रॉस्टेट कैंसर होने की उम्र घट रही है। दुर्भाग्य से, इन युवाओं में कैंसर का ज्यादा तेजी से बढ़ने वाला रूप पाया जाता है। टाटा मेमोरियल सेंटर, परेल और खारघर में प्रोफेसर डॉ. जोशी, बताते हैं कि पहले तक मुझे शायद 15 दिन में या एक महीने में एक बार 50 साल के मरीज मिलते थे, लेकिन अब हर ओपीडी में कम उम्र के मरीज आ रहे हैं। डॉ. रमानी का कहना है कि उन्होंने करीब 6 साल पहले इस बदलाव को देखा था। उन्होंने कहा कि कुछ तो बदला हुआ है। यह लाइफस्टाइल से जुड़ी आदतें जैसे धूम्रपान और शराब पीना, जेनेटिक कारण या फिर पीएसए टेस्ट की आसानी से उपलब्धता हो सकती है। कम से कम पढ़े-लिखे और आर्थिक रूप से सक्षम लोगों में, हर साल पीएसए टेस्ट करवाने जैसी स्वस्थ्य जांच की आदतें भी युवाओं में इस कैंसर को जन्म दे सकती हैं।
मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु जैसे शहरों में प्रॉस्टेट कैंसर पुरुषों में होने वाले शीर्ष 10 कैंसर में से एक है। मुंबई में, यह 1990 में पुरुषों में आठवें सबसे आम कैंसर से बढ़कर 2014 में तीसरे नंबर पर पहुंच गया है। 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस पर WHO के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में भारत में 37,948 पुरुष प्रॉस्टेट कैंसर से प्रभावित हुए हैं। जो देश में दर्ज 14 लाख नए कैंसर मामलों में लगभग 3% है। डॉ. रमानी ने कहा कि भारत में सबसे बड़ी समस्या मृत्यु दर अधिक होना है। अमेरिका में, 80% प्रॉस्टेट कैंसर के रोगियों का जल्दी पता चल जाता है और 20% बहुत देर से आते हैं। भारत में यह आंकड़े उलट हैं।
आमतौर पर प्रॉस्टेट कैंसर बहुत धीमी गति से बढ़ता है, इसलिए कई मामलों में लक्षण दिखने से पहले ही किसी व्यक्ति की अन्य प्राकृतिक कारणों से मृत्यु हो सकती है। लेकिन 40 या 50 साल के उम्र में होने वाले प्रॉस्टेट कैंसर की अलग खासियत होती है। यह अधिक तेजी से फैलता है। डॉ. जोशी बताते हैं, कम उम्र के प्रॉस्टेट कैंसर वाले मरीज हमारे पास आते हैं तब तक कैंसर अधिक तेजी से बढ़ रहा होता है और अंगों में फैल चुका होता है।’ यह उसी तरह है जैसे कम उम्र की महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का अधिक तेज बढ़ने वाला रूप पाया जाता है। उन्होंने कहा कि कुछ जेनेटिक फैक्टर या आणविक प्रक्रियाएं इसके लिए जिम्मेदार हो सकती हैं, लेकिन अभी तक इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला है। कम उम्र में प्रॉस्टेट कैंसर के बढ़ते मामलों का पता लगाने के लिए डॉ. जोशी की टीम ने टाटा मेमोरियल सेंटर के खारघर शाखा में एक अध्ययन शुरू किया है। लेकिन डॉ. जोशी कहते हैं कि 50 साल से अधिक उम्र के सभी पुरुषों को पीएसए टेस्ट करवाने की सलाह नहीं दी जा सकती।
पूरे विश्व में भारत समेत, कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। टाटा मेमोरियल सेंटर के निदेशक शैक्षणिक डॉ. श्रीपाद बनावली ने बताया, ‘पहले जब मैं मरीजों का मेडिकल हिस्ट्री लेता था, तो कोई भी मरीज ये नहीं कहता था कि उनके परिवार में किसी और को कैंसर हुआ है। लेकिन अब लगभग हर मरीज के परिवार में कोई न कोई कैंसर का मरीज होता है।’ कैंसर के मामले पूरी दुनिया में बढ़ रहे हैं और साथ ही कम उम्र में होने वाले कैंसर के मामलों में भी वृद्धि हो रही है, जिसमें प्रॉस्टेट कैंसर भी शामिल है। सितंबर 2023 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि पिछले 30 वर्षों में 50 से कम आयु वर्ग के लोगों में कैंसर होने की दर में 79% की वृद्धि हुई है। 1990 में जहां 1.8 मिलियन कैंसर का पता चला था, वहीं 2019 में यह संख्या बढ़कर 3.3 मिलियन हो गई।