ये सवाल उठना लाजमी है कि क्या सीएम अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर निकल पाएँगे या नहीं! दिल्ली शराब नीति घोटाला मामले में सीएम अरविंद केजरीवाल को 28 मार्च तक ईडी की रिमांड पर भेज दिया है। ऐसे में सवाल है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद अब आगे क्या कानूनी रास्ता होगा? क्या जमानत के लिए अर्जी दाखिल हो सकती है? केजरीवाल की ओर से रिलीफ के लिए कौन सी अदालत का दरवाजा खटखटाना होगा? यह सब कानूनी सवाल हैं, जिन पर चर्चा जोरों से है। जहां तक रिमांड का सवाल है तो अधिकतम 14 दिन की रिमांड की मांग की जा सकती है। कानूनी जानकार और हाई कोर्ट के वकील नवीन शर्मा बताते हैं कि आरोपी की गिरफ्तारी के बाद पहले 14 दिनों के दौरान जांच एजेंसी रिमांड के लिए अर्जी दाखिल कर सकती है और रिमांड के दौरान आरोपी से पूछताछ कर सकती है। कानूनी जानकार बताते हैं कि रिमांड पर बहस के दौरान सरकारी वकील को अदालत को इस बात से अवगत कराना होता है कि पूछताछ क्यों जरूरी है। आखिर क्या रिकवरी करनी है। साथ ही अदालत को बताना होता है कि आरोपी से पूछताछ के आधार पर छानबीन में क्या मदद मिलनी है। कोर्ट के पास अधिकार है कि जितने दिनों की रिमांड की मांग की जा रही है उतने दिन या उससे कम अवधि के लिए रिमांड पर भेज सकती है। अगर इस दौरान पूछताछ पूरी नहीं होती है तो फिर जांच एजेंसी दोबारा रिमांड बढ़ाने की मांग कर सकती है।
रिमांड पहली गिरफ्तारी के 14 दिनों के दौरान ही ली जा सकती है। अगर 14 दिनों के भीतर जांच एजेंसी को कोई नया तथ्य नहीं मिलता है तो फिर रिमांड नहीं मिलेगी, लेकिन पुलिस को पूछताछ करनी है तो कोर्ट की इजाजत से जेल में भी पूछताछ की जा सकती है। रिमांड अवधि पूरी होने के बाद आरोपी को जब तक जमानत न मिले, तब तक न्यायिक हिरासत के तहत जेल भेजने का प्रावधान है। जांच एजेंसी द्वारा रिमांड लिए जाने के बाद जब आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है उसके बाद ही आरोपी की जमानत अर्जी पर सुनवाई होती है। यानी रिमांड के दौरान जमानत पर सुनवाई नहीं होती है बल्कि न्यायिक हिरासत की अवधि के दौरान जमानत पर सुनवाई होती है।
अगर तय समय में चार्जशीट दाखिल न हो तो आरोपी को जमानत दिए जाने का प्रावधान है। यानी सीआरपीसी की धारा-167 (2) के तहत 10 साल तक की सजा के मामले में गिरफ्तारी के 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करनी होती है और इस दौरान अगर चार्जशीट नहीं होती तो आरोपी को जमानत मिल जाती है। जबकि 10 साल से उम्रकैद व फांसी के मामले में 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं करने पर आरोपी को जमानत मिल जाती है। कानूनी जानकार और सीनियर एडवोकेट रमेश गुप्ता बताते हैं कि चाहे मामला बेहद गंभीर ही क्यों न हो, लेकिन समय पर अगर पुलिस चार्जशीट दाखिल न करे, तब भी आरोपी को जमानत दी जा सकती है। मसलन ऐसा मामला जिसमें 10 साल या उससे ज्यादा सजा का प्रावधान हो वैसे मामले में अगर गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करना जरूरी है। अगर इस दौरान चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती है तो आरोपी को जमानत दिए जाने का प्रावधान है।
एडवोकेट राजीव मलिक का कहना है कि गिरफ्तारी से पहले ही अगर यह आशंका हो कि गिरफ्तारी हो सकती है तो आरोपी की ओर से अग्रिम जमानत की मांग की जा सकती है। अगर आरोपी को अंदेशा हो कि अमुक मामले में वह गिरफ्तार हो सकता है तो गिरफ्तारी से बचने के लिए धारा-438 के तहत आरोपी अग्रिम जमानत की मांग कर सकता है। कोर्ट जब किसी आरोपी को जमानत देता है तो वह उसे पर्सनल बॉन्ड के अलावा जमानती पेश करने के लिए कह सकता है। जब भी किसी आरोपी को जमानत दी जाती है तो आरोपी को पर्सनल बॉन्ड भरने के साथ यह कहा जा सकता है कि वह इतनी रकम का जमानती पेश करे।
एडवोकेट अमन सरीन बताते हैं कि जब किसी आरोपी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में केस पेंडिंग होता है उस दौरान आरोपी सीआरपीसी की धारा-439 के तहत अदालत से जमानत की मांग करता है। ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट केस की मेरिट आदि के आधार पर उक्त अर्जी पर फैसला लेती है। उक्त धारा के तहत आरोपी को अंतरिम जमानत या फिर रेगुलर बेल दी जाती है इसके लिए आरोपी को मुचलका भरना होता है और जमानत के लिए दिए गए निर्देशों का पालन करना होता है। मामले में आरोपी अगर चाहे तो निचली अदालत से जमानत की अर्जी खारिज होने के बाद वह हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है और अगर हाई कोर्ट से भी जमानत अर्जी खारिज हो जाए तो फिर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सकता है। साथ ही आरोपी को लगता है कि उसके खिलाफ गलत तरीके से मामला बनाया गया है तो वह हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में एफआईआर रद्द करने के लिए भी गुहार लगा सकता है।