Tuesday, May 14, 2024
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क्या चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में CJI का होना आवश्यक है?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में CJI का होना आवश्यक है या नहीं! सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने दो नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का बचाव किया। केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि चयन समिति में एक ज्यूडिशियल मेंबर होने से ही चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पैदा नहीं होती है। केंद्र सरकार द्वारा चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए बनाए गए नए कानून के तहत यह नियुक्ति हुई है नए कानून के तहत नियुक्ति पैनल में पीएम, नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मिनिस्टर को रखा गया है जबकि सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच के फैसले में पीएम, नेता प्रतिपक्ष और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पैनल द्वारा नियुक्ति की व्यवस्था दी गई थी। इसके बाद केंद्र सरकार के कानून और नियुक्ति को चुनौती गई है। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की लॉ मिनिस्ट्री की ओर से दाखिल हलफनामे में याचिकाकर्ता की उस दलील को खारिज कर दिया गया जिसमें याचिकाकर्ता ने कहा था कि दो नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति जल्दबाजी में की गई है। याचिकाकर्ता ने कहा था कि 15 मार्च को मामले में सुनवाई होनी थी और उससे एक दिन पहले ही 14 मार्च को नियुक्ति का ऑर्डर कर दिया गया।केंद्र ने याचिकाकर्ता की उस दलील का खंडन किया कि एग्जीक्यूटिव की दखल चुनाव आयोग की स्वायत्तता में हस्तक्षेप है। याचिकाकर्ता का यह दावा भी गलत है कि बिना ज्यूडिशियल मेंबर की सेलेक्शन कमिटी पक्षपातपूर्ण होगा। सुप्रीम कोर्ट में एडीआर और कांग्रेसी नेता जया ठाकुर ने अर्जी दाखिल कर चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त को नियुक्त करने के लिए बनाए गए नए कानून को चुनौती दी गई है।

केंद्र सरकार की ओर से दाखिल जवाब में कहा गया है कि याचिकाकर्ता की दलील एक मौलिक गलतफहमी पर आधारित है कि किसी भी अथॉरिटी की स्वतंत्रता केवल तब भी बनाए रखा जा सकता है जब चयन समिति एक विशेष रचना के तहत बनाया गया हो। केंद्र के हलफनामे में चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए बनाए गए कानून का बचाव किया और कहा है कि यह समझना होगा कि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता या फिर किसी और संस्थान या अथॉरिटी की स्वतंत्रता चयन समिति में न्यायिक सदस्य की मौजूदगी से पैदा नहीं होती है। केंद्र सरकार ने कहा कि इस मामले में राजनीतिक विवाद अस्पष्ट मंशा के आधार पर बनाने की कोशिश की गई है। केंद्र ने हा कि जिन दो लोगों को चुनाव आयुक्त बनाया गया है उनकी योग्यता पर कभी कोई सवाल नहीं उठाया गया है। साथ ही कहा कि जो भी चुनाव आयुक्त नॉमिनेट किए गए हैं उनकी पात्रता या योग्यता पर कोई आपत्ति नहीं की गई है। केंद्र ने कहा कि याचिकाकर्ता की अर्जी खारिज की जानी चाहिए। केंद्र ने कहा कि चुनाव आयुक्त व मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यकाल की शर्तें एक्ट 2023 को चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए एक महत्वपूर्ण सुधार के तौर पर देखा जा रहा है जो ज्यादा लोकतांत्रिक, समावेशी है। केंद्र ने याचिकाकर्ता की उस दलील का खंडन किया कि एग्जीक्यूटिव की दखल चुनाव आयोग की स्वायत्तता में हस्तक्षेप है। याचिकाकर्ता का यह दावा भी गलत है कि बिना ज्यूडिशियल मेंबर की सेलेक्शन कमिटी पक्षपातपूर्ण होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने बीते शुक्रवार को 2023 के नए कानून के तहत चुनाव आयुक्तों ईसी की नियुक्ति पर रोक लगाने से मना कर दिया था। नए कानून के अनुसार, चयन समिति में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री होते हैं। जबकि सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच के फैसले में पीएम, नेता प्रतिपक्ष और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पैनल द्वारा नियुक्ति की व्यवस्था दी गई थी। इसके बाद केंद्र सरकार के कानून और नियुक्ति को चुनौती गई है। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की लॉ मिनिस्ट्री की ओर से दाखिल हलफनामे में याचिकाकर्ता की उस दलील को खारिज कर दिया गया जिसमें याचिकाकर्ता ने कहा था कि दो नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति जल्दबाजी में की गई है। याचिकाकर्ता ने कहा था कि 15 मार्च को मामले में सुनवाई होनी थी और उससे एक दिन पहले ही 14 मार्च को नियुक्ति का ऑर्डर कर दिया गया।मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने फैसला दिया था कि मुख्य चुनाव आयुक्त सीईसी और चुनाव आयुक्त ईसी को प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर एक समिति के सुझाव के आधार पर नियुक्त किया जाएगा।

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