Monday, April 29, 2024
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चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर एक बयान दिया गया है! सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि आम चुनाव होने वाला है। ऐसे में इससे अनिश्चितता और अव्यवस्था की स्थिति पैदा होगी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त एक्ट 2023 पर भी अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा, सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 2023 के फैसले में कहीं भी यह नहीं कहा था कि चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए बनाए जाने वाली कमिटी में न्यायपालिका का सदस्य होना चाहिए। फैसले में एक पैनल बनाया गया था जिसमें पीएम, नेता प्रतिपक्ष और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को रखा गया था। कोर्ट ने कहा कि फैसले का मकसद ये था कि जब तक संसद इस मामले में कानून बनाए, तब तक ये व्यवस्था लागू होगी। हम नियुक्ति से संबंधित कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेंगे। कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने को कहा है। बेंच ने कहा, याचिकाकर्ता ने पहले नए कानून पर रोक की मांग की थी और बाद में अर्जी दाखिल कर नए कानून के तहत की गई नियुक्तियों पर रोक की मांग की।सुखबीर सिंह संधू को चुनाव आयुक्त बनाया गया है। केंद्र सरकार के नए कानून के तहत सिलेक्शन कमिटी में पीएम, नेता प्रतिपक्ष और पीएम द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री को रखा गया है। इसमें चीफ जस्टिस को नहीं रखा गया था। इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एडीआर और कांग्रेसी नेता जया ठाकुर की ओर से दाखिल अर्जी पर सुनवाई हुई। आजादी के बाद लगातार चुनाव हुए हैं। कई बेहतरीन चुनाव आयुक्त नियुक्त होते रहे हैं। पहले चुनाव आयुक्त की नियुक्ति इग्जेक्यूटिव द्वारा की जाती थी। अब एक नए कानून के तहत हुई है।

दो नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई है, उस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया में कुछ और समय दिया जाना चाहिए था। जो भी उम्मीदवार थे, उनके बैकग्राउंड को समझने के लिए कमिटी को ज्यादा समय दिया जाना चाहिए था। गौरतलब है कि 14 मार्च को रिटायर्ड आईएएस अधिकारी ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू को चुनाव आयुक्त बनाया गया है। केंद्र सरकार के नए कानून के तहत सिलेक्शन कमिटी में पीएम, नेता प्रतिपक्ष और पीएम द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री को रखा गया है। इसमें चीफ जस्टिस को नहीं रखा गया था। इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एडीआर और कांग्रेसी नेता जया ठाकुर की ओर से दाखिल अर्जी पर सुनवाई हुई।

सीनियर एडवोकेट विकास सिंह याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए। उन्होंने दलील दी कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए अनूप बर्नवाल केस में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी। कहा गया था कि पैनल में पीएम, नेता प्रतिपक्ष और चीफ जस्टिस होंगे। केंद्र सरकार ने जो कानून बनाया, उसमें चीफ जस्टिस को पैनल में नहीं रखा गया बल्कि उनकी जगह पीएम द्वारा नॉमिनेटेड केंद्रीय मंत्री को रखा गया। इस तरह के बदलाव से चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में इग्जेक्यूटिव का दखल होगा और यह खतरनाक है। एडीआर की ओर से प्रशांत भूषण ने दलील दी कि कमिटी की जो बैठक हुई, उस पर सवाल है। कमिटी ने बेहद जल्दबाजी दिखाई। इस तरह से यह सब हुआ जिससे पिटिशनर की अर्जी बेकार हो जाए। सुनवाई की तारीख से एक दिन पहले नाम तय कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जिन्हें नियुक्त किया गया है, उनके खिलाफ कोई आरोप नहीं है। अब वे नियुक्त हो चुके हैं और चुनाव होने वाले हैं। हम कानून पर रोक नहीं लगा रहे हैं। हमने नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो विषय हैं। एक है कि क्या कानून संवैधानिक दायरे में है। दूसरा ये कि क्या नियुक्ति प्रक्रिया सही है। कोर्ट ने कहा कि दो या तीन दिन नियुक्ति प्रक्रिया के लिए दिए जाने चाहिए थे। इसमें रफ्तार थोड़ी धीमी रखनी चाहिए थी। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि 200 नामों पर विचार किया गया था। बेंच ने कहा कि 200 नामों पर विचार दो घंटे में किया गया। ज्यादा पारदर्शिता होनी चाहिए थी। जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा कि हम प्रक्रिया की बात कर रहे हैं। न्याय होना जरूरी है, न्याय होते दिखना भी जरूरी है। आखिर में कोर्ट ने नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।

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