आज हम आपको पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अद्भुत कहानी बताने जा रहे हैं! पूर्व प्रधानमंत्री और महान अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की औपचारिक राजनीति से अलविदा होने का दिन आ गया है। आज वो राज्यसभा से रिटायर हो जाएंगे। संसद के उच्च सदन के सदस्य के रूप में उनके छह वर्षों के कार्यकाल का आज आखिरी दिन है। उन्होंने प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद कहा था कि ‘इतिहास उनकी समीक्षा करते वक्त दयाभाव रखेगा।’ अब राजनीति के क्षेत्र में इतिहास बनने जा रहे मनमोहन सिंह की समीक्षा का वक्त आ गया है। मनमोहन सिंह को जानने-समझने वाले बाकियों की बात बाद में, लेकिन पहले उनके बयान का जिक्र कर लेते हैं जिनके बारे में खुद मनमोहन सिंह ने अपनी आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुलकर राय रखी थी। वो शख्सियत कोई और नहीं बल्कि मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। तारीख थी 8 फरवरी, 2024। राज्यसभा के कुछ सदस्यों को विदाई देने का मौका। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदाई भाषण दे रहे हैं। रिटायर हो रहे सदस्यों के बारे में बारी-बारी से चर्चा कर रहे हैं। अब बारी आई है मनमोहन सिंह की। मोदी कहते हैं, ‘मैं विशेष रूप से माननीय डॉ. मनमोहन सिंह जी का उल्लेख करना चाहूंगा। उन्होंने छह बार इस सदन में अपने मूल्यवान विचार रखे। सदन के नेता के रूप में और प्रतिपक्ष के नेता के रूप में भी उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है।’ पीएम मोदी मनमोहन सिंह के एक सांसद का दायित्व निभाने को लेकर काफी अभिभूत हैं। वो मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं। मोदी कहते हैं, ‘मुझे याद है, उस सदन के अंदर पिछले कुछ दिनों में एक वोटिंग का अवसर था। पता था कि विजय ट्रेजरी बेंच की होने वाली है, अंतर भी बहुत था। लेकिन डॉक्टर मनमोहन सिंह जी व्हीलचेयर में आए, वोट किया। एक सांसद अपने दायित्व के लिए कितना सजग है, इसका वो उदाहरण हैं। वो प्रेरक उदाहरण हैं। इतना ही नहीं, कभी कमिटी मेंबर्स के चुनाव हुए, वो व्हीलचेयर में वोट देने आए। सवाल यह नहीं है कि किसको ताकत देने के लिए वो आए थे। मैं मानता हूं कि वो लोकतंत्र को ताकत देने आए थे। इसलिए आज विशेष रूप से उनके दीर्घायु जीवन के लिए हम सबकी तरफ से प्रार्थना करता हूं। वो निरंतर हमारा मार्गदर्शन करते रहें, हमें प्रेरणा देते रहें।’
मोदी ने कभी मनमोहन पर जोरदार तंज भी कसा था। संभवतः उसी परिप्रेक्ष्य में कहा, ‘वैचारिक मतभेद, कभी बहस में छींटाकसी, वो तो बहुत अल्पकालीन होती है। लेकिन इतने लंबे अर्से तक जिस प्रकार से उन्होंने इस सदन का मार्गदर्शन किया है, देश का मार्गदर्शन किया है, जब भी हमारे लोकतंत्र की चर्चा होगी, तो कुछ माननीय सदस्यों चर्चा होगी, उसमें माननीय मनमोहन सिंह के योगदान की चर्चा जरूर होगी।’ मनमोहन को एक प्रेरक शख्सियत बताकर बाकी सांसदों को सुझाव भी देते हैं। मोदी कहते हैं, ‘चाहे इस सदन में हों या उस सदन में, जो आज नहीं हैं शायद भविष्य में आने वाले हैं, मैं सभी सांसदों से ये जरूर कहूंगा कि ये जो माननीय सांसद होते हैं, किसी भी दल के क्यों न हों, जिस प्रकार से उन्होंने अपने जीवन को कंडक्ट किया होता है, जिस प्रकार की प्रतिभा के दर्शन उन्होंने अपने कार्यकाल में कराए होते हैं, उससे हमें एक गाइडिंग लाइट के रूप में सीखने का प्रयास करना चाहिए।’
दरअसल, मनमोहन सिंह ने दिल्ली सर्विस बिल पर वोटिंग करने व्हिलचेयर पर आए थे। उस वक्त मनमोहन सिंह काफी कमजोर दिख रहे थे। उनकी तस्वीर देश ने देखा तो बरबस उनकी तारीफ किए नहीं रहा। हां, एक बार मन में यह भी सवाल आया कि क्या जरूरत थी इस हाल में आने की जब उनके वोट से हार-जीत पर कोई फर्क पड़ना नहीं था। जो ऐसा सोच रहे होंगे, उन्हें पीएम मोदी ने मनमोहन के उस हाल में भी संसद आने का मर्म समझा दिया। ध्यान रखिए,
मनमोहन सिंह के लिए उस व्यक्ति ने ये बातें कहीं जिनके लिए मनमोहन से 4 जनवरी, 2014 की प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक सवाल किया गया था। तब मनमोहन ने टके सा जवाब देते हुए कहा था, ‘नरेंद्र मोदी के गुण-दोष पर बहस किए बिना, मेरा पक्का यकीन है कि उनका प्रधानमंत्री बनना देश के लिए विनाशकारी साबित होगा।’
ऐसा नहीं है कि मनमोहन सिंह की तारीफ करने वाले पीएम मोदी विपक्ष के अकेले नेता हैं। मोदी मंत्रिमंडल के ही सबसे चर्चित मंत्रियों में एक नितिन गडकरी ने नवंबर, 2022 में कहा था कि आर्थिक सुधारों के लिए देश मनमोहन सिंह का कर्जदार रहेगा। कौन भूल सकता है कि 1990 के दशक की शुरुआत भारत के आर्थिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, जब देश को भुगतान संतुलन के गंभीर संकट का सामना करना पड़ा। प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को लाइसेंस-कोटा राज से मुक्त करने का बीड़ा उठाया। अभूतपूर्व आर्थिक सुधारों के लिए उनकी नीतियां सरकारी नियंत्रण को कम करने, विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने और व्यापार व्यवस्था में सुधार पर केंद्रित थीं। इन सुधारों ने न केवल संकट को टाला बल्कि भारत को मजबूत आर्थिक विकास के मार्ग पर भी स्थापित किया।
वर्ष 2004 का लोकसभा चुनाव आया जिसमें सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी कांग्रेस पार्टी ने पहली बार गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने का फैसला किया। चुनाव बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) का गठन हुआ। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इसकी अध्यक्ष बनीं। सोनिया का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए उछला। तभी विदेशी मूल का मुद्दा छा गया और सोनिया ने मनमोहन सिंह का नाम आगे कर दिया। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने और सोनिया राष्ट्रीय सलाहकार
परिषद (NAC) की चेयरपर्सन बन गईं। मनमोहन सिंह सरकार 2009 में दोबारा सत्ता में लौटी। मनमोहन सिंह की 10 वर्षों की सरकार ने कई बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं जिनमें एक बेहद महत्वपूर्ण भारत-अमेरिका के बीच सिविल न्यूक्लियर डील थी। मनमोहन ने अपने कार्यकाल के बाद मीडिया ब्रीफिंग में खुद भी इसे अपनी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि बताई। मनमोहन सरकार के खाते में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), सूचना का अधिकार कानून (RTI), यूनिवर्सल आइडी कार्ड आधार जैसी अन्य बड़ी उपलब्धियां हैं।
हाल में मनमोहन की तारीफ करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक सात वर्ष पहले मनमोहन सिंह की बहुत कड़ी आलोचना की थी। वो तारीख थी 9 फरवी, 2017। तब पीएम मोदी ससंद का निम्न सदन लोकसभा में खड़े थे। उन्होंने मनमोहन सिंह के लिए जो कहा, वो हमेशा-हमेशा के लिए एक यादगार बयान बन गया है। मोदी ने कहा, ‘डॉ. मनमोहन सिंह जी पूर्व प्रधानमंत्री हैं, आदरणीय व्यक्ति हैं। पिछले 30-35 साल से भारत के आर्थिक निर्णयों से उनका सीधा संबंध रहा है और निर्णायक भूमिका में रहा है। 35 साल तक। इस देश में शायद ही कोई ऐसा अर्थजगत का व्यक्ति होगा जिसने हिंदुस्तान की आजादी के 70 साल में आधा समय एक ही व्यक्ति का इतना दबदबा रहा है और इतने घोटालों की बातें आ रही हैं। लेकिन खासकर हम राजनेताओं को डॉ. साहब से बहुत कुछ सीखने जैसा है। इतना सारा हुआ लेकिन उन पर एक दाग नहीं लगा। बाथरूम में रेनकोट पहनकर नहाना, ये कला तो डॉक्टर साहब ही जानते हैं और कोई नहीं जानता।’
तो क्या मनमोहन सिंह ने एक अर्थशास्त्री के रूप में इतने लंबे वक्त तक प्रभावी पदों पर रहकर जो योगदान दे सके, वो उम्मीद से कम हैं? आरबीआई के पूर्व गवर्नर और मनमोहन सिंह सरकार की आर्थिक सलाहकार परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष सी रंगराजन से जुड़ा एक वाकया याद आता है। मनमोहन के दूसरे कार्यकाल के आखिरी वर्षों में डॉलर के मुकाबले रुपये में तेज गिरावट आ रही थी। एक पत्रकार ने पीएम से इस बारे में पूछ लिया तो उन्होंने सीधा उत्तर देने के बाद सी रंगराजन से शिकायत की कि उनसे रुपये के बारे में पूछा जा रहा है। तब रंगराजन ने सामान्य प्रतिक्रिया दी, लेकिन बाद में अपने करीबी से बोले, ‘एक सफल अर्थशास्त्री के रूप में पहचाने जाने वाले प्रधानमंत्री की ऐसी बात चौंकाने वाली थी।’