क्या सरकार छीन सकती है आपकी संपत्ति क्या है सच?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सरकार आपकी संपत्ति छीन सकती है या नहीं और इसके पीछे का सच क्या है! क्या आपकी संपत्ति सरकार ले सकती है? क्या उसे दूसरे लोगों में बांटा जा सकता है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जो इन दिनों चुनावी रैलियों में गूंज रहे हैं। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को राजस्थान के बांसवाड़ा में जनसभा में कहा कि कांग्रेस का घोषणापत्र कह रहा है कि वे माताओं-बहनों के सोने का हिसाब करेंगे। फिर उस संपत्ति को बांट देंगे। इसे उनको बांटेंगे जिनके बारे में मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। मोदी ने कहा कि पहले जब उनकी सरकार थी, तब उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। इसका मतलब ये है कि वे संपत्ति जुटाकर जिनके ज्यादा बच्चे हैं, उनको बांटेंगे। घुसपैठियों (बांग्लादेशी) को बांटेंगे। आपकी मेहनत की कमाई का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा? मोदी ने कहा कि क्या आपको ये मंजूर है ? आपकी संपत्ति सरकार को ऐंठने का अधिकार है क्या? क्या आपकी संपत्ति को, आपकी मेहनत से कमाई संपत्ति को सरकार को ऐंठने का अधिकार है? मोदी के इस बयान पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी पलटवार करते हुए कहा कि पहले चरण के मतदान में निराशा हाथ लगने के बाद नरेंद्र मोदी के झूठ का स्तर इतना गिर गया है कि घबरा कर वह अब जनता को मुद्दों से भटकाना चाहते हैं। कांग्रेस के ‘क्रांतिकारी मेनिफेस्टो’ को मिल रहे अपार समर्थन के रुझान आने शुरू हो गए हैं। देश अब अपने मुद्दों पर वोट करेगा, अपने रोजगार, अपने परिवार और अपने भविष्य के लिए वोट करेगा। भारत भटकेगा नहीं!

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हैदराबाद में 6 अप्रैल को चुनावी रैली में ‘जितनी आबादी उतना हक’ का नारा देते हुए देश में आर्थिक-सामाजिक सर्वे कराने की बात कही थी। उन्होंने कहा, अगर पार्टी जीतकर सत्ता में आई तो देश में जातिगत जनगणना के साथ आर्थिक सर्वे भी कराया जाएगा ताकि पता लगाया जा सके कि किसके पास कितना पैसा पहुंच रहा है। यानी की देश की अधिकतर संपत्ति पर किसका कंट्रोल है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में भी सामाजिक-आर्थिक सर्वे कराने का वादा किया है। पार्टी का कहना है कि इन्हीं आंकड़ों के आधार पर जनता को योजनाओं का लाभ दिया जाएगा।

आजादी के बाद भारत में संपत्ति के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(f) और अनुच्छेद 31 के तहत एक मूल अधिकार के रूप में मान्यता दी गई थी। इन प्रावधानों ने नागरिकों को संपत्ति अर्जित करने, धारण करने और इसका निपटारा करने के अधिकार की गारंटी दी। कानून के अधिकार के बिना संपत्ति से वंचित करने पर रोक लगा दी। बाद में इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण बदलाव 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 के जरिए लाया गया, जिसने संपत्ति के मूल अधिकार को पूरी तरह समाप्त कर दिया। अनुच्छेद 19(1)(f) और अनुच्छेद 31 को 20 जून, 1979 से हटा दिया गया। इस संशोधन से संविधान में एक नया प्रावधान अनुच्छेद 300-A जोड़ा गया, जिसने संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकार के बजाय विधिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया।

फिलहाल, संपत्ति का अधिकार मुख्य रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 300-A द्वारा शासित होता है। इसमें कहा गया है कि कानून के अधिकार के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। पहले के प्रावधानों के विपरीत मौजूदा स्थिति यह है कि संपत्ति का अधिकार पूर्ण नहीं है और इसे कानून द्वारा विनियमित किया जा सकता है। इस संशोधन के अनुसार, निजी संपत्ति का होना एक मौलिक मानव अधिकार है। इसे कानूनी प्रक्रियाओं और आवश्यकताओं का पालन किए बिना राज्य द्वारा नहीं लिया जा सकता है।

अब जरा 19वीं सदी की ओर चलते हैं, जब जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने संपत्ति के बारे में दो किताबों में लिखकर पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया।’कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ और ‘दास कैपिटल’ जैसी किताबों ने एक समय पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों पर राजनीतिक और आर्थिक रूप से निर्णायक असर डाला था। माना जाता है कि रूसी क्रांति के बाद सोवियत संघ का उदय इस बात का उदाहरण था। यहां तक कि 20वीं सदी के इतिहास पर समाजवादी खेमे का बहुत असर रहा है। पहले ये समझ लेते हैं कि कार्ल मार्क्स के वे कौन से सिद्धांत हैं, जिन्होंने नए वर्ग और संपत्ति के बंटवारे को लेकर नया ताना-बाना समझाया था।