आखिर वर्तमान की राजनीति से क्यों बच रहा है आम आदमी?

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वर्तमान में आम आदमी राजनीति से बच रहा है! इन दिनों लोकसभा चुनाव को लेकर फिजा में चारों तरफ सियासी सरगर्मियां हैं। मैं अपने घर से ऑटो से ऑफिस के लिए निकला। ऑटो शेयरिंग था लेकिन बतौर सवारी मैं अकेला था। ऑटो वाले भैया से मेरी बातचीत शुरू हुई तो उन्होंने मेरे बारे में पूछा कि कहां रहते हैं, क्या करते हैं? वह मेरे पेशे  के बारे में जानकर कुछ शहर की और कुछ अपने मोहल्ले की समस्याओं के बारे में बताने लगे जिनसे उन्हें रोज जूझना पड़ता है। चुनावी माहौल की वजह से मैं भी उससे पूछ बैठा कि राजनीति में क्या चल रहा है। आपके यहां से इस बार कौन जीतेगा? उन्होंने तुरंत मेरे सवाल से किनारा कर लिया और पल्ला झाड़ते हुए बोले कि ‘राजनीति से मेरा कोई लेना देना नहीं है। मैं इन चक्करों में नहीं पड़ता। मुझे अपने बच्चे पालने हैं।’ उसके इस जवाब से मैं तो अपराधबोध में आ गया। सोचने लगा कि हमारे आसपास ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जो अक्सर यह कहते हुए मिल जाते हैं, ‘मैं तो राजनीति से दूर रहता हूं। अरे भाई, राजनीति से मेरा घर नहीं चलता, मेरा घर तो नौकरी से चलता है भाई, यह राजनीति किसी को रोटी नहीं देती। मेरा राजनीति से क्या लेना-देना। मेरे साथ राजनीति मत करो।’ कई लोग यह भी कहते हुए मिल जाते हैं कि बहुत राजनीति कर रहे हो। इस तरह के जवाब काफी पढ़े-लिखे लोग भी देते हैं। कई बार यह भी कहा जाता है कि पढ़ने-लिखने वाले छात्रों को राजनीति से दूर रहना चाहिए जबकि छात्र हमारे देश का भविष्य हैं। उनकी सबसे बड़ी जरूरत शिक्षा है। उनकी शिक्षा कैसी होगी, यह सब राजनीति से जुड़े लोग तय करते है। ऐसे में छात्रों को राजनीति से दूर रहने की नसीहत देना कितना सही है? और सिर्फ छात्र ही नहीं, राजनीति पर सबका अपना नजरिया होना चाहिए।

लेकिन क्या एक लोकतांत्रिक देश में राजनीति के प्रति इतनी उदासीनता सही है? अंग्रेजी में एक कहावत है- If Politics decides your future then you decide what your Politics should be यानी जब राजनीति ही तय करती है कि आपका भविष्य क्या होगा, ऐसे में आपको यह जरूर तय करना चाहिए कि आपकी राजनीति क्या हो जाने-माने शायर जावेद अख्तर कहते हैं कि राजनीति से खुद को दूर रखने की बात वैसी ही है, जैसे कोई दिल्ली में रहता हो और कहे कि हमारा प्रदूषण से कोई लेना-देना नहीं है। जब हमारा खाना-पीना, आना-जाना, हमारी सुरक्षा, हमारी कमाई, हमारा खर्च, हमारी बचत, हमारी स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा और यहां तक कि हमें किस तरह की हवा में सांस लेनी है, यह भी राजनीति से तय होता है तो हम खुद को राजनीति से दूर कैसे रख सकते हैं?

राजनीति करने का मतलब, चुनाव लड़ने से नहीं है। हम जिस राजनीति की बात कर रहे हैं या जिस तरह से हमें राजनीति करने का अधिकार हमारे संविधान से मिला है, उसका मतलब सिर्फ वोटों की होड़ से नहीं है। इसका मतलब किसी राजनीतिक पार्टी या नेता के पीछे झंडे लेकर और टोपी पहनकर दौड़ने से भी नहीं है। किसी पार्टी का पार्ट टाइम या फुल टाइम कार्यकर्ता बनने से भी नहीं है। राजनीति से मतलब है कि हम जिस देश में रहते हैं, उसकी नीतियां कैसी हों और कौन लोग बना रहे हैं? इसके पीछे उनकी मंशा क्या है? इससे हमारे जीवन, हमारे समाज, हमारे बच्चों, आने वाली हमारी पीढ़ियों और हमारे देश के वर्तमान व भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा? राजनीति का अर्थ इन सब बातों के प्रति सजग रहने से है। इसके लिए लोकतांत्रिक तरीके से अपने वोट के जरिए, सोच-समझ कर सही व्यक्ति का चुनाव करने से है।

सबसे बड़ी बात यह है कि हमारे समाज में राजनीति के प्रति नकारात्मक धारणा एक दिन में नहीं आई है। आजादी के बाद से ही धीरे-धीरे और बहुत सुनियोजित तरीके से राजनीति को हमारे दिमाग में बहुत गलत अर्थो में फिट किया गया है। राजनीति के प्रति एक डर भी बहुत सुनियोजित तरीके से दिमाग में बैठाया गया ताकि लोग राजनीतिक रूप से इतने जागरूक न हो सकें, जितनी जागरूकता की जरूरत एक लोकतांत्रिक देश में रहने वाले नागरिकों को होती है। जो लोग राजनीतिक रूप से ताकतवर हैं, वे नहीं चाहते हैं कि इस पूरी व्यवस्था में उनके अलावा कोई दूसरा आए या राजनीति के प्रति अपना तार्किक विचार रख सके। राजनीति से जुड़े लोग तो सिर्फ यही चाहते हैं कि आप वैसा ही सोच सकें, जैसा वे चाहते हैं। कई बार अनायास ही कह दिया जाता है कि भाई तुम इस राजनीति में मत पड़ो। कई बार सलाह के रूप में तो कई बार धमकी के रूप में भी यहां मतलब सिर्फ राजनीति से ही नहीं है। यहां यह मेसेज दिया जाता है कि तुम किसी भी उस प्रपंच में मत पड़ो, जिसमें तुमसे बड़े दिग्गज पहले से शामिल हैं। राजनीति को आम जनमानस में इस तरह से रेखांकित किया जाता रहा है कि यह गुंडे, मवाली और भ्रष्ट लोगों के लिए बनी है। इसका नतीजा यह हुआ कि राजनीति धीरे-धीरे सही अर्थ से दूर होती चली गई और लोग उस राजनीति से भी बचने लगे जो सही मायने में हमें करनी चाहिए। इसी सोच का नतीजा है कि सरकार की तरफ से लोगों को वोट डालने के लिए छुट्टी दी जाती है मगर उस दिन लोग वोट देने के बजाय घूमने निकल जाते हैं।

1947 से पहले देश में जो राजनीति थी, वह आजादी की लड़ाई के लिए थी। शुरुआती दौर में हमारे देश के लोगों को लगता था कि यह राजा से राजा की लड़ाई है, इससे हमारा क्या लेना-देना? जिसका नतीजा था कि हम 200 बरसों तक गुलाम रहे। लेकिन महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई को आम जनमानस की लड़ाई बना दिया। गांधी ने बताया कि यह लड़ाई हमारी आपकी और सबकी है। खेत में काम करने वाले किसान और फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूर, सबको लगने लगा कि यह हमारी लड़ाई है। इसी तरह यह राजनीति भी सिर्फ उन लोगों के लिए नहीं है जो चुनाव लड़ रहे हैं। जब राजनीति से ही हमारा सब कुछ सुनिश्चित होता है तो हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी राजनीतिक भागीदारी को तय करें।