एक ऐसा समय जब पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन अस्तित्व में आई थी! सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को लेकर सुनवाई हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ईवीएम के सोर्स कोड का खुलासा कभी नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। इस टिप्पणी से 47 साल पीछे भारत के चुनावी इतिहास में चलते हैं। 1977 के आम चुनाव की बात है, जब देश में आपातकाल लगा हुआ था। मार्च में हुए इस चुनाव में देश के 29 लोकसभा सीटों पर हथियारबंद लोगों द्वारा जबरन बैलेट पेपर लूट लिए गए और बूथ कैप्चरिंग की गई। उस वक्त एक कश्मीरी पंडित और लोकसभा सचिवालय के बड़े अधिकारी रह चुके शामलाल शकधर चुनाव में ऐसी घटनाओं से बड़े आहत हुए। जून, 1977 में वह देश के मुख्य चुनाव आयुक्त बने। उनके दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि कुछ भी करके चुनावी यज्ञ को बिना किसी बाधा के संपन्न कराना है। उनके मन में यह ख्याल आया कि जब 1952 से संसद की कार्यवाहियों के दौरान इलेक्ट्रॉनिक मशीनों का इस्तेमाल किया जा सकता है तो फिर चुनावों में क्यों नहीं। उनके दिमाग में आया यह विचार ही देश में निष्पक्ष चुनावों की नींव रखने वाला बना। शामलाल शकधर 1953 में लोकसभा के पहले संयुक्त सचिव बने थे। ऐसे में उनका यह अनुभव बेहद काम आया। उन्होंने पद संभालते ही सबसे पहले हैदराबाद में इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड(ECIL) का दौरा किया और उसे वोटिंग मशीन का एक प्रोटोटाइप डेवलप करने को कहा। उस वक्त आपातकाल लगाने वालीं इंदिरा गांधी हार चुकी थीं। दिल्ली की सत्ता पर जनता पार्टी की सरकार आ चुकी थी। शकधर ने सरकार से चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक मशीनों के इस्तेमाल की संभावना तलाशने को कहा। 1980 में ECIL ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का पहला प्रोटोटाइप बनाकर चुनाव आयोग को सौंप दिया। इस मशीन में तब 6 बटन लगे थे, जो 6 चिप से जुड़े थे। हरेक बटन एक चुनाव उम्मीदवार से संबंधित था। यह मशीन सभी वोट को रिकॉर्ड कर लेती थी। आयोग के सामने इसका प्रदर्शन बेहतर रहा, मगर इसमें प्रत्याशियों के नाम रखने की संख्या सीमित थी। इसके बाद आयोग ने तब भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) से वोटिंग मशीन बनाने को कहा, जिसमें एकसाथ 64 प्रत्याशियों के नाम दर्ज रहते थे। अप्रैल, 1981 में चुनाव आयोग के सामने इस मशीन का प्रदर्शन इतना बेहतरीन रहा कि आयोग ने BEL को ऐसी मशीनों को बनाने की मंजूरी दे दी।
केरल की एक विधानसभा सीट थी पेरावायुर, जिसने तब मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। यहां मई, 1982 में चुनाव कराए गए। इसके 123 पोलिंग बूथों में से 50 पर परंपरागत बैलेट पेपर की जगह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का इस्तेमाल किया गया। यहां मतदान बेहद शांतिपूर्ण और ईवीएम का ट्रायल पूरी तरह सफल रहा। इस ट्रायल के बाद 10 और उपचुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल हुआ। इसी के साथ चुनावों में ईवीएम मशीन के सफर की शुरुआत हो गई। यह सफर आज इतना हो चुका है कि लोकसभा चुनाव, 2024 में देश में 55 लाख ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
केरल की जिस सीट पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया था, उस चुनाव को ही सुप्रीम कोर्ट ने बाद में रद्द कर दिया। 1984 में इस मामले से जुड़ी एक सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना संसद में कानून बने चुनावों में ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। इस वजह से 2 साल तक ईवीएम मशीनों को कोल्ड स्टोरेज में रहना पड़ा। 1989 में आखिरकार संसद में जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में संशोधन किया गया और चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल के प्रावधान को जोड़ा गया।
1998 में फिर से ईवीएम के इस्तेमाल को लेकर आम सहमति बनी। मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के 25 विधानसभा क्षेत्रों में ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल किया गया। इसके बाद 1999 में गोवा ऐसा पहला राज्य बना, जहां नई विधानसभा के लिए पूरे राज्य में ईवीएम मशीनों से ही चुनाव कराए गए। इसके बाद इनका इस्तेमाल 1999 में 45 लोकसभा क्षेत्रों में किया गया। इसके बाद मई, 2001 में तमिलनाडु, केरल, पुड्डुचेरी और पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनावों में पूरी तरह से ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल किया गया। 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार सभी संसदीय सीटों पर ईवीएम से ही चुनाव कराए गए। इन सीटों पर 10 लाख से ज्यादा ईवीएम का इस्तेमाल हुआ।
ईवीएम और वीवीपैट की खासियत यह है कि इन्हें बाहरी पावर सप्लाई की जरूरत नहीं होती। इनके पास अपनी बैटरी और पावर पैक होता है। इससे इनकी हैकिंग की आशंका भी नहीं रहती है। वीवीपैट का इस्तेमाल कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स, 1961 में संशोधन के बाद शुरू हुआ। 14 अगस्त, 2013 को आयोग ने इसका इस्तेमाल शुरू किया। चुनाव में पहली बार नगालैंड की नोकसेन विधानसभा सीट पर 4 सितंबर, 2013 को हुए उपचुनाव में वीवीपैट का इस्तेमाल हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने बीते बुधवार को यह साफ किया है कि ईवीएम सोर्स कोड का कभी भी खुलासा नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने चुनाव के दौरान ईवीएम से डाले गए वोटों के साथ मतदाता वीवीपैट पर्चियों के मिलान के निर्देश देने की मांग वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान यह मौखिक टिप्पणी की।