सीएम केजरीवाल और प्रवर्तन निदेशालय के बारे में क्या बोले पीएम मोदी ?

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हाल ही में पीएम मोदी ने सीएम केजरीवाल और प्रवर्तन निदेशालय के बारे में एक बयान दिया है!कई राज्यों में जहां विपक्षी दलों की सरकार है वहां राज्यपालों के साथ टकराव चल रहा है। विपक्षी दलों की ओर से उनके काम में हस्तक्षेप का आरोप लगाया जा रहा है। विपक्ष के आरोप और इन सवालों का पीएम मोदी ने जवाब दिया। पीएम मोदी ने कहा कि राज्यपाल राज्य के संवैधानिक अधिकार का प्रतिनिधित्व करता है। राजनीतिक मतभेदों की परवाह किए बिना सभी दलों द्वारा उनकी स्थिति का सम्मान किया जाना चाहिए। पीएम मोदी ने विपक्षी दल खासकर कांग्रेस पार्टी को लेकर कहा कि राज्यपाल पद की शुचिता के बारे में उन्हें बोलने का कोई अधिकार नहीं है। पीएम मोदी ने दिल्ली के मौजूदा सीएम से जुड़े सवाल का भी जवाब दिया। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि यह मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह लोगों को इस मुद्दे पर पूरा पर्स्पेक्टिव दिखाएं कि दिल्ली के लोग कैसे पीड़ित हैं, अदालतों ने मामले में क्या कहा है। मैं आशावादी हूं कि यह एक मिसाल नहीं बनेगा। मुझे लगता है कि अन्य राजनेताओं में नैतिकता की इतनी कमी नहीं होगी और वे इस हद तक नहीं जाएंगे।

राजभवनों को कांग्रेस भवन में बदलने वाली कांग्रेस पार्टी को राज्यपाल पद की शुचिता के बारे में बोलने का कोई अधिकार नहीं है। प्रधानमंत्री बनने से पहले मैं एक दशक से अधिक समय तक एक राज्य का मुख्यमंत्री था। उन वर्षों में मैंने कांग्रेस के राज्यपालों के अधीन काम किया। मैं उनका सम्मान करता था और हमारे मतभेदों के बावजूद वे मेरा सम्मान करते थे। भारत की आजादी के बाद शायद पहली बार हम विभिन्न राज्यों में राज्यपालों पर इस स्तर के हमले देख रहे हैं। हमें यह समझना चाहिए कि राज्यपाल केंद्र और राज्य सरकार के बीच एक सेतु का काम करता है, जो विविध और विशाल राष्ट्र के प्रशासन में जरूरी संतुलन लाता है। लेकिन यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ राज्यों में हम राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं द्वारा राज्यपाल के काफिले को रोकने और कुछ राज्यों में राजभवन पर पेट्रोल बम फेंकने के बारे में सुन रहे हैं। इस तरह का व्यवहार खतरनाक और अस्वीकार्य है। जब ऐसी घटनाएं होती हैं, तो वे उस राज्य में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति के बारे में गंभीर चिंता पैदा करते हैं।

यह कानून के शासन के प्रति लोगों के सम्मान के टूटने का संकेत देता है। जहां तक राज्य के मामलों में राजभवन के हस्तक्षेप की बात है, तो हमें इतिहास पर एक नजर डालने की जरूरत है। किस पार्टी और सत्तारूढ़ लोगों ने राज्य मशीनरी को पंगु बनाने के लिए आर्टिकल 356 का सबसे अधिक दुरुपयोग किया? किस प्रधानमंत्री ने खास तौर पर विपक्ष की चुनी गई सरकारों को गिराने के लिए आर्टिकल 356 का पचास बार इस्तेमाल किया? वहीं, 2014 के बाद से भारत ने कितनी निर्वाचित राज्य सरकारों को अनैतिक रूप से गिराते देखा है? कोई नहीं। इसके बजाय, केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर संबंधों को बढ़ावा देने के प्रयासों के साथ कोऑपरेटिव फेडरलिज्म में बढ़ोतरी हुई है।

हमारे सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को अच्छी तरह से खत्म कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला EVM के महत्व और पारदर्शिता के बारे में विस्तार से बताता है। विपक्ष हमेशा देश को बूथ कैप्चरिंग के युग की ओर ले जाना चाहता है जो केवल बैलट पेपर के जरिए ही संभव है। मुझे नहीं लगता कि जब EVM की बात आती है तो विपक्षी गठबंधन के सदस्यों ने कभी तर्कपूर्ण बात की होगी। उनके लिए EVM हमेशा हार के बाद सुविधाजनक बलि का बकरा रही है। देखिए इस बार क्या अलग होता है।

विपक्ष को सत्ता नहीं मिलने के कारण वह विश्व मंच पर भारत को बदनाम करने में लग जाता है। वे हमारे लोगों, हमारे लोकतंत्र और हमारी संस्थाओं के बारे में अफवाहें फैलाते हैं। युवराज को चुनाव लड़ना पड़ रहा है और भारत के लोग उनसे प्रभावित नहीं हैं, इससे भारत कम लोकतांत्रिक नहीं हो जाता। मुझे नहीं लगता कि विदेशी राजधानियों में इस तरह के आरोपों को स्वीकार करने वाले ज्यादा लोग हैं। वे अक्सर अपने देशों में प्रमाणपत्र की दुकानों की तुलना में वास्तविकता के साथ अधिक तालमेल रखते हैं। जब मैं विश्व नेताओं के साथ बातचीत करता हूं, तो मुझे हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया और हमारी संस्थाओं को लेकर सच्ची प्रशंसा दिखाई देती है। जब वे हमारी चुनावी प्रक्रिया के पैमाने और गति को गहराई से समझते हैं, तो वे हमारी कुशलता से आश्चर्यचकित रह जाते हैं।