हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने संपत्तियों के बंटवारे विषय पर एक बयान दिया है! लोकसभा चुनाव के बीच यह बहस जारी है कि क्या सरकार निजी संपत्तियों को जब्त या पुनर्वितरित कर सकती है। संपत्ति बंटवारे को लेकर छिड़ी बहस के बीच सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मंगलवार सुप्रीम कोर्ट से कहा कि समतावाद हासिल करने के लिए ये ‘देहाती और बचकानी’ तरीके हैं। संविधान के अनुच्छेद 39(बी) में समुदाय के भौतिक संसाधनों के वितरण की परिकल्पना की गई है, जिसका उद्देश्य आम लोगों की भलाई है। मेहता ने चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की बेंच से कहा कि हर नागरिक की संपत्ति का योग करके और उसे एक खास वर्ग में बराबर-बराबर बांटकर देश की संपत्ति की गणना करने का प्रस्ताव करना एक देहाती और बचकानी विधि होगी। इस तरह के विचार आर्थिक विकास, शासन, सामाजिक कल्याण और राष्ट्र की समझ की कमी को दर्शाते हैं। मेहता ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति की जमीन का एक टुकड़ा है और उसे एक बड़े क्षेत्र के निवासियों की आम भलाई के लिए सड़क बनाने की जरूरत है, तो निजी स्वामित्व वाली उस जमीन को समुदाय की व्यापक भलाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले भौतिक संसाधन के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।चौथे दिन दलीलें सुन रही थी कि क्या निजी संपत्तियों को भी संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत समुदाय का भौतिक संसाधन माना जा सकता है और परिणामस्वरूप, सरकार द्वारा इसे अपने अधिकार में लेकर सार्वजनिक भलाई के लिए नागरिकों के बीच वितरित किया जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘अनुच्छेद 39 (बी) आधारित कानून का उद्देश्य किसी विशेष समुदाय, नस्ल या जाति के लोगों की संपत्ति को छीनकर दूसरे वर्ग के नागरिकों में वितरित करना नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि कोई भी निजी संपत्ति समुदाय का भौतिक संसाधन नहीं है और प्रत्येक निजी संपत्ति समुदाय का भौतिक संसाधन है ये दो अलग दृष्टिकोण हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निजीकरण और राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए इसकी समकालीन व्याख्या किए जाने की आवश्यकता है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह भी कहा कि निजी और सार्वजनिक संपत्तियों के बीच बड़ा विरोधाभास नहीं हो सकता है। पीठ ने कहा, हम आज भी निजी संपत्ति की रक्षा करते हैं, हम अभी भी व्यवसाय जारी रखने के अधिकार की रक्षा करते हैं। हम अभी भी इसे राष्ट्रीय एजेंडे के हिस्से के रूप में चाहते हैं। मैं इसे सरकार का एजेंडा नहीं कहता।
पीठ ने कहा कि सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, 1990 से ही निजी क्षेत्र द्वारा निवेश को प्रोत्साहित करने की नीति रही है। न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे। मामले में बुधवार को भी दलीलें रखी जाएंगी।पीठ इस विवादास्पद कानूनी प्रश्न पर निर्णय लेने के लिए चौथे दिन दलीलें सुन रही थी कि क्या निजी संपत्तियों को भी संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत समुदाय का भौतिक संसाधन माना जा सकता है और परिणामस्वरूप, सरकार द्वारा इसे अपने अधिकार में लेकर सार्वजनिक भलाई के लिए नागरिकों के बीच वितरित किया जा सकता है।
पीठ ने पहले के एक फैसले में न्यायमूर्ति वी आर कृष्णा अय्यर अब रिटायर द्वारा की गई टिप्पणियों को थोड़ा अतिवादी करार दिया। पीठ ने कहा, निजी और सार्वजनिक संपत्तियों के बीच कोई सख्त द्वंद्व नहीं हो सकता है। न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर की व्याख्या थोड़ा अतिवादी है। यह व्याख्या कहती है कि चूंकि समुदाय व्यक्तियों से बना है…गणना करने का प्रस्ताव करना एक देहाती और बचकानी विधि होगी। इस तरह के विचार आर्थिक विकास, शासन, सामाजिक कल्याण और राष्ट्र की समझ की कमी को दर्शाते हैं। मेहता ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति की जमीन का एक टुकड़ा है और उसे एक बड़े क्षेत्र के निवासियों की आम भलाई के लिए सड़क बनाने की जरूरत है, तो निजी स्वामित्व वाली उस जमीन को समुदाय की व्यापक भलाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले भौतिक संसाधन के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।इसलिए समुदाय के भौतिक संसाधनों का मतलब व्यक्ति का संसाधन और व्यक्ति के भौतिक संसाधन का मतलब समुदाय का संसाधन भी होगा। पीठ में न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे। मामले में बुधवार को भी दलीलें रखी जाएंगी।