क्या पाकिस्तान की मदद से भारत को घेरेगा चीन?

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चीन और पाकिस्तान की मदद से भारत को घेर सकता है! जम्मू-कश्मीर में एक खूबसूरत सी जगह है शक्सगाम घाटी। भारत का स्विट्जरलैंड मानी जाने वाली इस घाटी को ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट भी कहा जाता है। शक्सगाम वैली अब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) में है। इसी घाटी के 5,180 वर्ग किलोमीटर के भारतीय इलाके को पाकिस्तान ने 1963 में एक समझौते के तहत गैरकानूनी तरीके से चीन को दे दिया था। भारत बीते छह दशक से लद्दाख में भारतीय इलाके की 38,000 वर्ग किमी जमीन पर चीन के अवैध कब्जे का विरोध भी करता रहा है। इस समझौते को चीन-पाकिस्तान सीमा समझौता भी कहा जाता है। हाल ही में भारत ने शक्सगाम घाटी में सड़क बनाने की कोशिशों का चीन के समक्ष कड़ा विरोध दर्ज कराया है। एक अंग्रेज केनेथ मैसन की किताब’एक्सप्लोरेशन ऑफ द शक्सगाम वैली एंड आघिल रेंजेज, 1926′ में लिखा गया है कि सर्वे ऑफ इंडिया की ओर से मेजर मैसन हिमालयी क्षेत्र का सर्वे करने पहुंचे थे। 1918 में उन्होंने बताया कि पामीर का पठार रूस को जोड़ने का एक रास्ता है। मैसन ने ही शक्सगाम के बारे में भी जिक्र किया है, जो काराकोरम इलाके में है। उन्होंने बताया कि यह इलाका रणनीतिक रूप से बेहद अहम है। काराकोरम नाम वैसे तो तुर्की भाषा का है, जिसका मतलब है काले कंकड़ का इलाका। इसके बाद सर मार्टिन कोनवे ने अपनी किताब ‘क्लाइमबिंग इन द हिमालयाज’ में भी शक्सगाम वैली के बारे में बताया है। वहीं कर्नल वुड ने इस इलाके के बारे में बताया है कि यहां पर ईस्टर्न काराकोरम और अपर यारकंद वैली है। इसके बाद अंग्रेज एक्सप्लोरर विलियम मूरक्रॉफ्ट ने 1820 से 22 तक लेह का दौरा किया, जिसमें उन्होंने शक्सगाम को भारतीय हिस्से में बताया था।

डिफेंस एंड स्ट्रेटेजिक अफेयर्स एनालिस्ट ले.कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के अनुसार, ड्रैगन चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के जरिए दोहरी रणनीति अपना रहा है। एक तो वह आर्थिक रूप से खुद को मजबूत कर रहा है और दूसरा भारत जैसे देशों पर शिकंजा कसने की तैयारी कर रहा है। वह एक तरह से भविष्य में होने वाली जंग के लिए खुद को तैयार कर रहा है। शक्सगाम घाटी ही वह रास्ता है, जहां से चीन पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक पहुंच से लेकर अफगानिस्तान के रास्ते मध्य एशिया तक पहुंच बनाना चाहता है। इससे वह अपने प्रतिद्वंद्वी देश भारत को भी घेर सकता है।

द फॉरगाटन फैक्ट ऑफ चाइना आक्यूपाईड कश्मीर’ के लेखक सुजन आर चिनॉय लिखते हैं कि चीन ने काराकोरम इलाके में अपनी पैठ 1750 के दशक से ही जमानी शुरू कर दी थी। उस समय चीन में क्विंग साम्राज्य के चौथे राजा कियान लौंग थे। तब चीन ने यह दावा किया था कि पामीर के पठार से सटे कुनलुन रेंज से गुजरने वाला काराकोरम दर्रे के पूर्वी हिस्से को मंचाऊ साम्राज्य ने 1759 में ही शामिल कर लिया था। उस वक्त के चीन के ऐतिहासिक नक्शे में यारकंद के निचले हिस्से और शक्सगाम से निकलने वाली नदियों को ही दर्शाया गया था। 1890 के पहले तक शक्सगाम वैली को लेकर चीन ने कोई दावा नहीं किया था और न ही शिनजियांग प्रांत के हिस्से में अक्साई चिन को ही दिखाया गया था।

ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से अंग्रेज एक्सप्लोरर विलियम मूरक्रॉफ्ट, ब्रिटिश डिप्लोमैट नेई एलियास और ब्रिटिश आर्मी ऑफिसर फ्रांसिस ई यंगहसबैंड ने पूरे हिमालय क्षेत्र की यात्राएं कीं। उन्होंने 1879-80 में काराकोरम से लेकर तिब्बत और मध्य एशिया तक की यात्राएं कीं। उन्होंने अपने यात्रा संस्मरण में लिखा है कि 1889-90 में हुंजा, जिसे कंजुत भी कहा जाता था, एक स्वतंत्र राज्य था। उस वक्त पहली बार चीन ने हुंजा के मीर इलाके पर अपना दावा किया। चीन ने 1865 में कश्मीर के महाराजा रणजीत सिंह के बनाए किले शाहिदुल्लाह पर अपना कब्जा जमा लिया। यह किला काराकश नदी और रसकम नदी के बीच में स्थित था। मीर हुंजा में किरगिज, ईरानी और तुरानी मूल के लोग खेती करते थे और चीन के अफसर रसकम और शक्सगाम वैली में रहने वाले लोगों से जबरन टैक्स वसूलते थे। धीरे-धीरे हुंजा पर चीन अपना अधिकार जताने लगा।

1891 में महाराणा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों की मदद से मीर को हराकर हुंजा को अपने राज्य का एक हिस्सा बना लिया। बस यहीं पर अंग्रेज चीन की चाल को समझने में चूक गए। उस समय रूस पूरी दुनिया में आक्रामक रूप से आगे बढ़ रहा था। भारत की ब्रिटिश सरकार को भी लगा कि कहीं रूस उनके भारतीय उपनिवेश पर कब्जा न कर ले। ऐसे में उन्होंने चीन को कुन लुन और काराकोरम माउंटेन रेंज के बीच पांव पसारने का न्यौता दे दिया। अंग्रेजों ने चीन को तो एक किराएदार की तरह बुलाया था, मगर वह धीरे-धीरे ट्रांस काराकोरम इलाके का खुद को मालिक मानने लगा। यह इनपुट ब्रिटिश भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लैंसडाउन के पास पहुंचा तो उन्होंने लिखा-अगर हम चीन को उस इलाके में मजबूत बनाते हैं तो एक दिन वह काशगर-यारकंद इलाके में पूरा कब्जा कर लेगा। यहां तक कि कश्मीर के महाराजा ने जब चीनियों के शाहिदुल्लाह किले का ढहाने की शिकायत की तो अंग्रेजों ने इस पर ध्यान नहीं दिया और अक्टूबर, 1892 में चीन ने काराकोरम दर्रे के पास एक बॉर्डर पिलर लगा दिया। रसकम वैली में चीन की मौजूदगी अंग्रेजों की गलत नीतियों का नतीजा रही। हालांकि, इसके बाद भी भारत की आजादी के बाद भी शक्सगाम वैली पर चीन ने कभी दावा नहीं किया था।

1963 के इस समझौते का अनुच्छेद 6 कहता है कि कश्मीर विवाद भारत और पाकिस्तान के बीच है। इसी समझौते के अनुच्छेद 2 के तहत चीन ने इस इलाके में अपने दखल को बढ़ाया है। 1948 से पहले जम्मू और कश्मीर राज्य का हिस्सा था। 1948 के युद्ध के बाद पाकिस्तान ने कश्मीर के कुछ इलाकों पर कब्जा कर लिया, जिसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) कहा जाता है। 1963 के सीमा समझौते में शक्सगाम इलाके को चीन का देने के पीछे पाकिस्तान की दलील थी कि इससे पाकिस्तान और चीन की दोस्ती और मजबूत होगी। पाकिस्तान का कहना था कि ऐतिहासिक रूप से इस इलाके में कभी इंटरनेशनल बॉर्डर तय ही नहीं था, ऐसे में इस जमीन को चीन के हवाले करने से पाकिस्तान का कोई नुकसान नहीं हुआ। वहीं, भारत शक्सगाम को हमेशा से अपना हिस्सा बताता है। उसके अनुसार, शक्सगाम का यह पूरा इलाका भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य का अभिन्न हिस्सा है।