आज हम आपको बताएंगे कि आखिर रुपया कहां छापा जाता है! रुपया, भारत की करेंसी! रुपया भारत की करेंसी कहा गया है, जिस किसी के हाथ में रुपया होता है, वह अपने आप को जीने योग्य मानता है! साथ ही साथ रुपया वर्तमान में एक ऐसी वस्तु बन चुकी है, जिसके माध्यम से आपकी लाइफ का स्टेटस पता चलता है! लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि रोजमर्रा के काम में आने वाला यह रुपया, आखिर छाप कहां जाता है? कैसे छापा जाता है और इसकी छपाई में कितना खर्च आता है? तो आज हम आपको इसी बारे में संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं!
आपको बता दें कि जीवन में रोजमर्रा की जरूरतों के लिए रुपयों की जरूरत होती है। देश में करेंसी के रूप में नोट और सिक्के दोनों का प्रचलन है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अर्थव्यवस्था में इस्तेमाल होनेवाले ये रुपए कहां और कैसे छपते हैं? तो आइये आपको बताते है!
बता दें कि भारतीय करेंसी रुपया के लिए आरबीआई द्वारा कॉटन से बने कागज और एक खास तरह की स्याही का प्रयोग होता है। इसमें अधिकांश कागज का प्रोडक्शन मध्यप्रदेश के होशंगाबाद पेपर मिल में होता है। कुछ कागज महाराष्ट्र के करेंसी नोट प्रेस में भी बनाए जाते हैं। इसके अलावा दुनिया के चार अन्य देशों से भी कागज मंगाए जाते हैं। बता दें कि ये इन नोटों को विदेश से आयात की गई मशीन से छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देती है। फिर इन कटे हुए टुकड़ों को गलाकर ईंट बनाया जाता है, जिसका इस्तेमाल कई कामों में होता है। देश में सबसे पहले वाटर मार्क वाला नोट 1861 में छपा था। रुपए पर हिंदी और अंग्रेजी के अलावा 15 भाषाओं का इस्तेमाल होता है। भारत सहित आठ देशों की करेंसी को रुपया कहा जाता है। नोट छापने के लिए जिस ऑफसेट स्याही का प्रयोग होता है, उसको मध्यप्रदेश के देवास बैंकनोट प्रेस में बनाया जाता है।
वहीं, नोट पर जो उभरी हुई छपाई नजर आती है उसकी स्याही सिक्किम में स्थित स्विस फर्म की यूनिट सिक्पा में तैयार की जाती है। भारतीय करेंसी रुपए की छपाई के लिए कागज दुनिया के जिन चार देशों के फर्म से मंगाए जाते हैं, वे हैं- 1. फ्रांस की अर्जो विगिज 2. अमेरिका पोर्टल 3. स्वीडन का गेन 4. पेपर फैब्रिक्स ल्युसेंटल। आइए अब आपको बताते हैं कि आखिर भारत में यह नोट कहां छापे जाते हैं? बता दे कि देश में चार बैंक नोट प्रेस, चार टकसाल और एक पेपर मिल है। जिसमें नोट प्रेस देवास मध्य प्रदेश, नासिक महाराष्ट्र,मैसूर कर्नाटक और सालबोनी पश्चिम बंगाल में हैं। देवास नोट प्रेस में साल में 265 करोड़ रुपए के नोट छपते हैं। यहां पर 20, 50, 100, 500, रुपए के नोट छापे जाते हैं। देवास में ही नोटों में प्रयोग होने वाली स्याही का प्रोडक्शन भी होता है। वहीं 1000 रुपए के नोट मैसूर में छपते हैं। रुपये छापने की प्रक्रिया में सबसे पहले पेपर शीट को एक खास मशीन सायमंटन में डाला जाता है। इसके बाद एक अन्य मशीन जिसे इंटाब्यू कहा जाता है, उससे कलर किया जाता है। इसके बाद पेपर शीट पर नोट छप जाते हैं। इस प्रक्रिया के बाद अच्छे और खराब नोट की छंटनी की जाती है।
एक पेपर शीट में करीब 32 से 48 नोट होते हैं। नोट छांटने के बाद उस पर चमकीली स्याही से संख्या मुद्रित की जाती है। यही नहीं जब कोई नोट पुराना हो जाता है, फट जाता है या फिर से मार्केट में सर्कुलेशन के लायक नहीं रहता है तो उसे बैंकों के जरिए जमा करा लिया जाता है। बता दें कि उत्पादन मध्यप्रदेश के होशंगाबाद पेपर मिल में होता है। कुछ कागज महाराष्ट्र के करेंसी नोट प्रेस में भी बनाए जाते हैं। इसके अलावा दुनिया के चार अन्य देशों से भी कागज मंगाए जाते हैं। नोट छापने के लिए जिस ऑफसेट स्याही का प्रयोग होता है, उसको मध्यप्रदेश के देवास बैंकनोट प्रेस में बनाया जाता है। आरबीआई इन नोटों को नष्ट कर देती है। पहले इन नोटों को जला दिया जाता था। लेकिन, पर्यावरण को होने वाले नुकसान को ध्यान में रखते हुए आरबीआई अब इन नोटों को विदेश से आयात की गई मशीन से छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देती है। फिर इन कटे हुए टुकड़ों को गलाकर ईंट बनाया जाता है, जिसका इस्तेमाल कई कामों में होता है। देश में सबसे पहले वाटर मार्क वाला नोट 1861 में छपा था। रुपए पर हिंदी और अंग्रेजी के अलावा 15 भाषाओं का इस्तेमाल होता है। भारत सहित आठ देशों की करेंसी को रुपया कहा जाता है। तो यह थी भारत की करेंसी रुपया की कहानी!