आज हम आपको उसे देश के बारे में बताने जा रहे हैं जहां सभी ग्लेशियर खत्म हो चुके हैं! दक्षिणी अमेरिका के देश वेनेजुएला आधुनिक इतिहास में ऐसा पहला देश बन गया है, जिसके सभी ग्लेशियर खत्म हो गए हैं। वेनेजुएला ने अपना आखिरी बचा हुआ ग्लेशियर भी खो दिया है। यह इतना सिकुड़ गया है कि जलवायु वैज्ञानिकों ने इसे बर्फ के मैदान के तौर पर क्लासीफाइड कर दिया है। माना जाता है कि वेनेजुएला आधुनिक समय में अपने सभी ग्लेशियर खोने वाला पहला और अकेला देश है। इंटरनेशनल क्रायोस्फीयर क्लाइमेट इनिशिएटिव (आईसीसीआई) ने कहा है कि वेनेजुएला का एकमात्र शेष ग्लेशियर- हम्बोल्ट या ला कोरोना बहुत छोटा हो गया था। ऐसे में इसे अब ग्लेशियर के बजाय आइस फील्ड के तौर पर वर्गीकृत किया गया है। वेनेजुएला के बाद मौसम विज्ञानी इंडोनेशिया, मैक्सिको और स्लोवेनिया से ग्लेशियर मुक्त होने की संभावना जता रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछली शताब्दी में वेनेजुएला ने कम से कम छह ग्लेशियर खो दिए हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक औसत तापमान बढ़ने के साथ बर्फ पिघल रही है, इससे दुनिया भर में समुद्र का स्तर भी बढ़ रहा है। सरकार ने उम्मीद जाहिर की थी कि बर्फ के पिघलने की प्रक्रिया रुक जाएगी। इस कदम की स्थानीय जलवायु वैज्ञानिकों ने आलोचना करते हुए कहा कि इससे आसपास के आवास प्लास्टिक के कणों से दूषित हो सकते हैं।डरहम विश्वविद्यालय के ग्लेशियोलॉजिस्ट कैरोलिन क्लासन का कहना है कि 2000 के दशक के बाद से वेनेजुएला के आखिरी ग्लेशियर पर ज्यादा बर्फ नहीं जमी है। इस साल मार्च में कोलंबिया में लॉस एंडीज़ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि ये ग्लेशियर 450 हेक्टेयर से घटकर केवल दो हेक्टेयर रह गया है। हालांकि ग्लेशियर के रूप में योग्य होने के लिए बर्फ के एक टुकड़े के न्यूनतम आकार के लिए कोई वैश्विक मानक नहीं है। अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण का कहना है कि आम तौर पर स्वीकृत दिशानिर्देश लगभग 10 हेक्टेयर है। नासा ने हालांकि 2018 में इसे वेनेजुएला का आखिरी ग्लेशियर माना गया था।
आईसीसीआई और इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के ग्लेशियोलॉजिस्ट जेम्स किर्कम औरमिरियम जैक्सन ने बीबीसी से कहा कि ग्लेशियोलॉजिस्ट अक्सर सामान्य परिभाषा के रूप में 0.1 वर्ग किमी [10 हेक्टेयर] को मानदंड मानते हैं। उन्होंने माना कि हाल के सालों में हम्बोल्ट ग्लेशियर तक पहुंचने में समस्याएं हो सकती हैं, जिससे माप के प्रकाशन में देरी हो सकती है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के प्रोफेसर मार्क मसलिन ने कहा कि हम्बोल्ट करीब दो फुटबॉल मैदान के बराबर है, ऐसे में ये ग्लेशियर नहीं है। मसलिन ने कहा कि ग्लेशियर बर्फ हैं जो घाटियों को भर देती हैं। इसलिए मैं कहूंगा कि वेनेजुएला में कोई ग्लेशियर नहीं है।
बीते साल दिसंबर में वेनेजुएला सरकार ने बची हुई बर्फ को थर्मल कंबल से ढकने की एक परियोजना शुरू की थी। सरकार ने उम्मीद जाहिर की थी कि बर्फ के पिघलने की प्रक्रिया रुक जाएगी। इस कदम की स्थानीय जलवायु वैज्ञानिकों ने आलोचना करते हुए कहा कि इससे आसपास के आवास प्लास्टिक के कणों से दूषित हो सकते हैं। प्रोफेसर मास्लिन ने कहा कि पहाड़ी ग्लेशियरों को गर्मी के महीनों में सूरज की रोशनी को प्रतिबिंबित करने और अपने आसपास की हवा को ठंडा रखने के लिए पर्याप्त बर्फ की आवश्यकता होती थी। उन्होंने कहा, “एक बार जब ग्लेशियर खत्म हो जाता है, तो सूरज की रोशनी जमीन को गर्म कर देती है, इसे बहुत अधिक गर्म कर देती है और गर्मियों में वास्तव में बर्फ बनने की संभावना बहुत कम हो जाती है।”
नवीनतम अनुमानों से पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर 20 से 80 प्रतिशत ग्लेशियर 2100 तक नष्ट हो जाएंगे। मौसम विज्ञानी इंडोनेशिया, मैक्सिको और स्लोवेनिया से ग्लेशियर मुक्त होने की संभावना जता रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछली शताब्दी में वेनेजुएला ने कम से कम छह ग्लेशियर खो दिए हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक औसत तापमान बढ़ने के साथ बर्फ पिघल रही है, इससे दुनिया भर में समुद्र का स्तर भी बढ़ रहा है। डरहम विश्वविद्यालय के ग्लेशियोलॉजिस्ट कैरोलिन क्लासन का कहना है कि 2000 के दशक के बाद से वेनेजुएला के आखिरी ग्लेशियर पर ज्यादा बर्फ नहीं जमी है।उन्होंने कहा कि भले ही इस नुकसान का एक हिस्सा पहले ही तय हो चुका है लेकिन तेजी से CO2 उत्सर्जन कम करने से नुकसान को कम किया जा सकता है। बता दें कि पहाड़ी इलाकों में गतिशील बर्फ की परत पाई जाती है। एक बड़े क्षेत्र में इस बर्फ की परत को ही ग्लेशियर या हिमनद कहा जाता है।