हाल ही में सेना अध्यक्ष को एक्सटेंशन मिल चुका है! जिसके बाद सवाल उठने लगे कि क्या पहले भी सेना अध्यक्ष को एक्सटेंशन मिला है या नहीं! सरकार ने सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे को रविवार को एक महीने का सेवा विस्तार दिया। वह 31 मई को रिटायर होने वाले थे। कई दशकों में सरकार से किसी आर्मी चीफ को मिला यह पहला ऐसा सेवा विस्तार है। सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे को उनके रिटायरमेंट से छह दिन पहले एक महीने का एक्सटेंशन मिला है। जनरल पांडे, जिन्होंने अप्रैल 2022 में 29वें सेना प्रमुख के रूप में पदभार संभाला था और इस महीने 62 वर्ष के हो गए हैं। उनके उत्तराधिकारी की घोषणा में अत्यधिक देरी ने पहले ही कई अटकलों को जन्म दे दिया था। प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) द्वारा विस्तार से मामले में और पेच फंस जाएगा। क्योंकि अगले सबसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारी, वाइस चीफ लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी जम्मू और कश्मीर राइफल्स और उनके बाद दक्षिणी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल अजय कुमार सिंह गोरखा राइफल्स दोनों 30 जून को रिटायर होने वाले हैं। सेना, नौसेना और वायुसेना प्रमुख 62 वर्ष या तीन साल तक, जो भी पहले हो, तब तक सेवा दे सकते हैं। वहीं लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी 60 वर्ष की आयु में रिटायर हो जाते हैं यदि उन्हें फोर स्टार रैंक के लिए मंजूरी नहीं मिलती। एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा कि ‘कोई भी अटकलबाजी या विवाद अनुचित है’ क्योंकि यह निर्णय लिया गया था कि चुनाव प्रक्रिया पूरी होने से पहले कोई बड़ा पद नहीं भरा जाएगा। पिछले एक महीने में कोई शीर्ष-स्तरीय सैन्य पोस्टिंग नहीं की गई है। अगले सेना प्रमुख को मतदान के अंतिम चरण से एक दिन पहले 31 मई को पदभार संभालना था। अधिकारी ने कहा, अब अगली सरकार जून के मध्य में नए सेना प्रमुख की घोषणा कर सकती है, जो 30 जून को जनरल पांडे से पदभार ग्रहण करेंगे, लेफ्टिनेंट जनरल द्विवेदी और सिंह दोनों अभी भी दौड़ में रहेंगे।
हालांकि, चुनाव आचार संहिता ने सरकार को 19 अप्रैल को यह घोषणा करने से नहीं रोका कि एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी 30 अप्रैल को एडमिरल आर हरि कुमार के बाद नए नौसेना प्रमुख के रूप में पदभार ग्रहण करेंगे। वरिष्ठता में अगले तीन अधिकारी जिनके नाम भी एसीसी को भेजे गए थे, वे उत्तरी कमान और मध्य कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एम वी सुचिंद्र कुमार और एनएस राजा सुब्रमणि और एकीकृत रक्षा स्टाफ के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जे पी मैथ्यू हैं।
सेना में प्रमोशन के लिए आमतौर पर वरिष्ठता को महत्व दिया जाता है, लेकिन कुछेक मामलों में ऐसा नहीं हुआ है। सबसे पहला उदाहरण 1975 का है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जनरल जी. जी. Bewoor का कार्यकाल बढ़ा दिया था। पिछले 10 वर्षों में भारत सरकार ने दो बार वरिष्ठता के नियम को दरकिनार किया है। पहली बार, दिसंबर 2016 में लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बक्शी और पी. एम. हारिज को दरकिनार कर जनरल बिपिन रावत को सेना प्रमुख बनाया गया था। बाद में जनरल रावत पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बने, लेकिन दिसंबर 2021 में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में उनका निधन हो गया।
दूसरी बार, मई 2019 में एडमिरल करमबीर सिंह को नौसेना प्रमुख बनाया गया। इस दौरान बिमल वर्मा को नजरअंदाज किया गया, जो उस वक्त अंडमान और निकोबार कमान के प्रमुख थे। दोनों ही मामलों में सरकार ने सरकार ने अपना फैसला ‘सिर्फ वरिष्ठता के आधार पर नहीं, बल्कि योग्यता के आधार पर’ लिया हुआ बताया था। वरिष्ठता के सिद्धांत के पहले भी कई अपवाद रहे हैं। उदाहरण के लिए, इंदिरा गांधी ने 1983 में लेफ्टिनेंट जनरल एस के सिन्हा की जगह जनरल ए एस वैद्य को सेना प्रमुख नियुक्त किया था। इसी तरह, एयर चीफ मार्शल एस के मेहरा 1988 में एयर मार्शल एम एम सिंह की जगह वायुसेना प्रमुख बने थे।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इससे पहले दो महीने पहले ही नए सेना प्रमुख की घोषणा कर दी जाती थी।वरिष्ठता में अगले तीन अधिकारी जिनके नाम भी एसीसी को भेजे गए थे, वे उत्तरी कमान और मध्य कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एम वी सुचिंद्र कुमार और एनएस राजा सुब्रमणि और एकीकृत रक्षा स्टाफ के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जे पी मैथ्यू हैं। आखिरी समय में लिए गए ये फैसले सशस्त्र बलों के मनोबल के लिए अच्छे नहीं हैं। सशस्त्र बलों का राजनीतिकरण भी बढ़ रहा है। कुछ बड़े अधिकारी अपने प्रमोशन के लिए सक्रिय रूप से राजनेताओं की मदद ले रहे हैं।