आज हम आपको बताएंगे कि मोदी ने अपने ही मतदाताओं से धोखा कैसे खाया! लोकसभा चुनाव, 2024 में भाजपा ने युवा, ग़रीब, महिला और किसान सभी पर फोकस किया था। बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में भी इन चारों के सशक्तीकरण पर खासा जोर दिया था। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन चारों को देश की सबसे बड़ी जाति और स्तंभ बता चुके हैं। चुनाव नतीजे आने के बाद ये साफ हो चुके हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी की ये योजनाएं जनता को ज्यादा लुभा नहीं पाईं। सबसे ज्यादा ये क्लास यूपी और महाराष्ट्र में था, जहां इसने भाजपा को बड़ा झटका दिया है। पिछले कुछ सालों में युवा, गरीब, महिला और किसान को ध्यान में रखते हुए की तरह की योजनाओं लाई गईं। इससे एक तरह का ‘लाभार्थी क्लास’ विकसित हुआ। ये ‘लाभार्थी क्लास’ जाति, धर्म और लिंग के दायरे से अलग सरकारी योजनाओं के लागू करने से तैयार हुआ है। मोदी की गारंटी को जनता ने उतना समर्थन नहीं दिया, जितना उसे मिलना चाहिए था। यहां यह भी कह सकते हैं कि इन्हीं गारंटी ने मोदी सरकार की लाज बचा ली। हो सकता था कि अगर ये योजनाएं इतनी पॉपुलर नहीं होतीं तो शायद भाजपा को करीब 50 सीटों का और नुकसान हो सकता था।
दरअसल, जो भी योजनाएं मोदी सरकार ने चलाई थीं, उनमें से कई तो पहले से भी चल रही थीं। इसलिए जनता को इसमें कुछ नया नहीं मिला। दूसरा, ये कि नौकरियां,लोकसभा चुनाव से पहले एक सर्वे किया था, जिसमें कहा गया था कि बीजेपी को करीब 40 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है और गरीब और निम्न वर्ग के बीच उनका सपोर्ट 39-39 फ़ीसदी है। 2019 की बात करें तो पहले अमीरों और मध्यम वर्ग में उनका जनाधार कहीं ज्यादा था और गरीबों से अंतर बहुत ज्यादा होता था। लाभार्थी क्लास ने ये अंतर पाट दिया है। रोजगार देने के मामले में मोदी सरकार कहीं न कहीं फेल रही थी। यूपी में ही अरसे से लंबित पुलिस भर्ती जैसी परीक्षाएं लीक होती रही हैं, जिनमें आम घरों के बच्चे परीक्षा देते हैं। ये नाराजगी कहीं ने कहीं भाजपा को नुकसान पहुंचा रही थी। भाजपा के 400 पार के नारे को विपक्ष ने यह कहकर प्रचारित किया कि भाजपा संविधान बदलना चाहती है, ताकि आरक्षण खत्म किया जा सके। यह नरैटिव जमीनी स्तर पर इतना अचूक हथियार साबित हुआ कि सरकारी योजनाओं का लाभ लेने वाली गरीब जनता ने ही भाजपा को बड़ा झटका दे दिया।
भारत की विकास दर यानी जीडीपी 2023-24 में 8.2 फीसदी की रफ्तार से दौड़ रही है। मोदी अपने हर चुनावी कैंपेन में यह बात कहते रहे हैं। उन्होंने भारत को बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश भी बताया। मगर, वो आम जनता को ये समझाने में विफल रहे कि आखिर जब अर्थव्यवस्था दौड़ रही है तो पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान पर क्यों हैं? मंहगाई इतनी तेजी से क्यों बढ़ रही है। योजनाओं के लाभार्थियों को मोदी सरकार वोट बैंक में तब्दील कर पा रही है। सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ ने लोकसभा चुनाव से पहले एक सर्वे किया था, जिसमें कहा गया था कि बीजेपी को करीब 40 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है और गरीब और निम्न वर्ग के बीच उनका सपोर्ट 39-39 फ़ीसदी है। 2019 की बात करें तो पहले अमीरों और मध्यम वर्ग में उनका जनाधार कहीं ज्यादा था और गरीबों से अंतर बहुत ज्यादा होता था। लाभार्थी क्लास ने ये अंतर पाट दिया है।
चुनावी विश्लेषक कहते हैं कि भारत की चुनावी राजनीति की एक सच्चाई ये भी है कि जाति और वर्ग की लड़ाई को इन सरकारी योजनाओं ने धुंधला कर दिया है। बता दें कि सबसे ज्यादा ये क्लास यूपी और महाराष्ट्र में था, जहां इसने भाजपा को बड़ा झटका दिया है। पिछले कुछ सालों में युवा, गरीब, महिला और किसान को ध्यान में रखते हुए की तरह की योजनाओं लाई गईं। इससे एक तरह का ‘लाभार्थी क्लास’ विकसित हुआ। ये ‘लाभार्थी क्लास’ जाति, धर्म और लिंग के दायरे से अलग सरकारी योजनाओं के लागू करने से तैयार हुआ है। मोदी की गारंटी को जनता ने उतना समर्थन नहीं दिया,लाभार्थी क्लास’ जाति, धर्म और लिंग के दायरे से अलग सरकारी योजनाओं के लागू करने से तैयार हुआ है। मोदी की गारंटी को जनता ने उतना समर्थन नहीं दिया, जितना उसे मिलना चाहिए था। यहां यह भी कह सकते हैं कि इन्हीं गारंटी ने मोदी सरकार की लाज बचा ली। जितना उसे मिलना हालांकि, इसके बाद भी जातिगत समीकरण राजनीति में भीतर पैबस्त है। इसीलिए पार्टी की उम्मीदवारों की सूची जाति और वर्ग के समीकरण के मुताबिक ही बनती है।