आज हम आपको C-130J हरक्यूलस विमान की विशेषताएं बताने जा रहे हैं! कुवैत में हुए भीषण अग्निकांड में जान गंवाने वाले 45 भारतीयों का शव स्वदेश आ चुका है। भारतीय वायुसेना के C-130J सुपर हरक्यूलस विमान से इन शवों को कोच्चि लाया गया। ये पहली बार नहीं है जब एयरलिफ्ट मिशन में C-130J को उतारा गया। पहले भी कई सर्च, रेस्क्यू समेत दुनियाभर में सामरिक एयरलिफ्ट मिशन में इनका इस्तेमाल होता रहा है। पिछले साल उत्तरकाशी में जब सुरंग हादसा हुआ था, जिसमें कई मजदूर फंस गए थे। उस समय भी भारतीय वायुसेना ने रेस्क्यू ऑपरेशन में इसका इस्तेमाल किया था। इस तरह के अहम मिशन में C-130J सुपर हरक्यूलस को उतारा जाना इसकी खास खूबियों के चलते है। जानिए क्यों भारतीय वायुसेना स्पेशल ऑपरेशन में इसके उतारने से पीछे नहीं हटती। 34 टन से भी ज्यादा वजन वाला C-130J सुपर हरक्यूलस विमान छोटे और रफ एयरस्ट्रिप पर भी उतर सकता है। भारतीय वायुसेना ने 2007 में इनका ऑर्डर दिया था। धीरे-धीरे इसे अपग्रेड किया गया। इन्हें एक्सप्रेसवे पर भी लैंड कराया जा चुका है। इन विमान की ऊंचाई करीब 15 मीटर और लंबाई 30 मीटर है। ये एक बार में करीब 19 टन वजन उठा सकता है। यह चार इंजन वाला टर्बोप्रॉप सैन्य परिवहन विमान है। अमेरिकी वायुसेना इसे सैनिकों को ले जाने के लिए इस्तेमाल करती है।
इस विमान को अमेरिकी सुरक्षा और एयरोस्पेस कंपनी लॉकहीड मार्टिन ने बनाया है। C-130J सुपर हरक्यूलस, 643 किलोमीटर की रफ्तार से उड़ान भर सकता है। ये एक बार में 68 हजार किलोमीटर तक जा सकता है। कुवैत से भारत की दूरी करीब 5100 किलोमीटर है। इसी के चलते इंडियन एयरफोर्स ने कुवैत से भारतीयों के शवों को वापस लाने में इस विमान का इस्तेमाल किया। C-130J सुपर हरक्यूलस की लैंडिंग में समस्या नहीं होती। ये छोटे रनवे, ऊबड़-खाबड़ जमीन पर भी लैंड करने में सक्षम है। खराब मौसम का भी इस पर ज्यादा असर नहीं पड़ता। सर्च और रेस्क्यू के काम में भी इसकी मदद ली जाती है। इस विमान से बड़ी संख्या में सैनिकों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया जा सकता है। इस विमान से टैंक भी भेजे जा सकते हैं। बीते साल जब उत्तरकाशी हादसा हुआ था तो कई मजदूर इसमें फंस गए थे। उन्हें निकालने के लिए चल रहे रेस्क्यू में भी C-130J का इस्तेमाल हुआ था। इसी के जरिए ड्रिल मशीनें रेस्क्यू वाली जगह पहुंचाई गई थी। ये विमान 90 लोगों को लेकर उड़ान भर सकता है। सैनिकों को भेजने में ये अहम रोल निभा सकता है।
भारत के अलावा अमेरिकी वायु सेना, यूएस मरीन कॉर्प्स, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली और ब्रिटेन की सेना भी इसका इस्तेमाल करती है। ये दुनिया का सबसे आधुनिक ट्रांसपोर्ट विमान है, जिसे स्पेशल ऑपरेशन में उतारा जाता है। सी-130जे पहले से ज्यादा तेज है। बता दें कि अमेरिकी रक्षा विभाग की रक्षा सुरक्षा सहयोग एजेंसी (डीएससीए) ने कहा कि यह प्रस्तावित बिक्री अमेरिका-भारत रणनीतिक संबंधों को मजबूती प्रदान करने तथा एक प्रमुख रक्षा साझेदार की सुरक्षा को दुरुस्त करने में मदद करके अमेरिका की विदेश नीति एवं राष्ट्रीय सुरक्षा का समर्थन करेगी। डीएससीए ने अमेरिकी कांग्रेस को एक प्रमुख बिक्री अधिसूचना जारी कर कहा कि हिंद-प्रशांत और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में राजनीतिक स्थिरता, शांति एवं आर्थिक प्रगति के लिए भारत एक महत्वपूर्ण शक्ति बना हुआ है। ये ज्यादा दूरी तक जाता है और पुराने प्लेटफॉर्म की तुलना में ज्यादा वजन ले जाने में सक्षम है।
भारत ने जो अनुरोध किये हैं, उनमें विमानों में खप सकने वाले कलपुर्जे और मरम्मत तथा वापसी वाले पुर्जे, कारट्रिज एक्चुएटिड उपकरण या प्रोपेलेंट एक्चुऐटिड उपकरण (सीएडी या पीएडी), अग्निशमन कारट्रिज, आधुनिक रडार चेतावनी रिसीवर शिपसेट और जीपीएस आदि शामिल हैं। इनकी कुल कीमत नौ करोड़ डॉलर है। पेंटागन ने कहा कि प्रस्तावित बिक्री सुनिश्चित करेगी कि पहले खरीदे जा चुके विमान भारतीय वायु सेना, सेना और नौसेना की परिवहन जरूरतों, स्थानीय एवं अंतरराष्ट्रीय मानवीय सहायता तथा क्षेत्रीय आपदा राहत के लिए प्रभावी तरीके से काम कर सकें। उसने कहा कि उपकरणों और सेवाओं की यह बिक्री वायु सेना को सी-130जे परिवहन विमानों के संदर्भ में मिशन के लिहाज से तैयार रहने की स्थिति में रखेगी। भारत को इस अतिरिक्त सहायता को प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं आएगी। पेंटागन के अनुसार इन उपकरणों की प्रस्तवित बिक्री क्षेत्र में मूलभूत सैन्य संतुलन को नहीं बदलेगी। प्रमुख अनुबंधकर्ता लॉकहीड-मार्टिन कंपनी (जॉर्जिया) होगी। अमेरिका ने 2016 में एक बड़ा कदम उठाते हुए भारत को प्रमुख रक्षा साझेदार घोषित किया था। इसके तहत अमेरिका अपने कई आधुनिक हथियारों को बिना यूएस कांग्रेस की मंजूरी के सीधे भारत को बेंच सकता है।