आज हम आपको बताएंगे कि धर्म की व्याख्या कहां से मिलती है! सबसे पुरानी सभ्यताओं में एक सिंधु घाटी की सभ्यता यानी हड़प्पा सभ्यता में आज भी दुनिया के कई देशों में लोगों की काफी दिलचस्पी है। यह सभ्यता कई कारणों से सिर्फ पुरात्तत्वविदों के लिए ही नहीं पूरी दुनिया के लिए भी हैरत का विषय है। सौ साल पहले 20 सितंबर, 1924 को दुनिया को पहली बार सिंधु (हड़प्पा) सभ्यता के बारे में पता चला था। ब्रिटिश राज द्वारा स्थापित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक जॉन मार्शल ने इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज में यह बात कही थी। बता दें कि पाकिस्तान में कुछ लोगों को लगता है कि यह नामकरण थोड़ा पक्षपाती है क्योंकि हड़प्पा पंजाब में है, सिंध में नहीं। लेकिन असल में हड़प्पा ही वह जगह थी जहां सबसे पहले खुदाई हुई थी। कुछ हिंदू मानते हैं कि हड़प्पा सभ्यता को सरस्वती सभ्यता कहा जाना चाहिए। कुछ लोग इसे सरस्वती सभ्यता के रूप में संदर्भित करते हैं, यह मानते हुए कि यह घग्गर-हकरा नदी के किनारे स्थित थी, जिसे वे पौराणिक सरस्वती नदी मानते हैं। इस सभ्यता की व्याख्या को लेकर भारत और पाकिस्तान, दो देशों में अलग-अलग नजरिए हैं। जॉन मार्शल ने इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज में एक रोमांचक घोषणा की। उन्होंने कहा था कि पुरातत्वविदों को बहुत कम ही ऐसा अवसर मिलता है, जैसा उन्हें सिंधु के मैदानों में खुदाई करने को मिला। उन्होंने कहा कि अब तक भारत के इतिहास के बारे में हमारी जानकारी ईसा से 300 साल पहले तक ही थी। लेकिन सिंधु घाटी में दो चौंकाने वाली जगहों – पंजाब के हड़प्पा और सिंध के मोहनजोदड़ो में मिले अवशेष बताते हैं कि वहां कभी समृद्ध शहर हुआ करते थे। ये शहर शायद सैकड़ों साल पुराने हैं। दिलचस्प बात ये है कि असल में इन खंडहरों की सही उम्र का पता एक पत्र के जरिए चला। 27 सितंबर 1924 को प्रोफेसर एएच सायसे ने अखबार के संपादक को लिखे पत्र में बताया कि वहां मिली मुहरें सुमेर में पाई गई मुहरों से मिलती-जुलती हैं, जो 2300 ईसा पूर्व की हैं।
19वीं सदी में अंग्रेजों को तो ये भी नहीं पता था कि ये खंडहर किसी बड़े सभ्यता के हैं। अंग्रेज वहां से ईंटें निकाल कर मुल्तान-लाहौर रेलवे लाइन बनाने में इस्तेमाल कर रहे थे। असल में सबसे पहली हड़प्पा की मुहर 1853 में ही अलेक्जेंडर कनिंघम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संस्थापक को वहीं मिली थी, लेकिन उन्होंने इसे 1875 में जाकर दिखाया। पहले इस सभ्यता को सिंधु-सुमेरियन कहा जाता था लेकिन बाद में पता चला कि ये अपनी ही अलग सभ्यता थी। इसे बाद में सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाने लगा। लेकिन अब और भी जगहों पर इस सभ्यता के निशान मिले है जैसे कि सूख चुके घग्गर-हकरा नदी के किनारे और गुजरात के तट पर। इसलिए अब इस सभ्यता को सबसे पहले खोजे गए शहर के नाम पर – हड़प्पा के नाम से जाना जाता है।
1947 में भारत के विभाजन के समय इस सभ्यता के दो प्रमुख स्थल – हड़प्पा और मोहनजोदड़ो ,पाकिस्तान में चले गए। दोनों देशों ने इन जगहों से मिली चीजों को आपस में बांट लिया। 1970 के दशक तक, भारत के पास सिर्फ 10% ही हड़प्पा की मुहरें और चीजें थीं। लेकिन 2020 तक सरकार के प्रयासों से पूरे भारत में 1400 से ज्यादा हड़प्पा जैसी जगहें खोजी जा चुकी हैं। ये जगहें गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और यहां तक कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी मिली हैं।
हड़प्पा सभ्यता का पुराना नाम सिंधु घाटी सभ्यता अब उतना सटीक नहीं रहा। चूंकि अब भारत में इस सभ्यता के और भी कई स्थल खोजे जा चुके हैं, इसलिए सिर्फ सिंधु शब्द ठीक नहीं बैठता। पाकिस्तान में कुछ लोगों को लगता है कि यह नामकरण थोड़ा पक्षपाती है क्योंकि हड़प्पा पंजाब में है, सिंध में नहीं। लेकिन असल में हड़प्पा ही वह जगह थी जहां सबसे पहले खुदाई हुई थी। अपनी ही अलग सभ्यता थी। इसे बाद में सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाने लगा। लेकिन अब और भी जगहों पर इस सभ्यता के निशान मिले है जैसे कि सूख चुके घग्गर-हकरा नदी के किनारे और गुजरात के तट पर। इसलिए अब इस सभ्यता को सबसे पहले खोजे गए शहर के नाम पर – हड़प्पा के नाम से जाना जाता है।कुछ हिंदू मानते हैं कि हड़प्पा सभ्यता को सरस्वती सभ्यता कहा जाना चाहिए। कुछ लोग इसे सरस्वती सभ्यता के रूप में संदर्भित करते हैं, यह मानते हुए कि यह घग्गर-हकरा नदी के किनारे स्थित थी, जिसे वे पौराणिक सरस्वती नदी मानते हैं। वे हड़प्पा संस्कृति को वेदों और महाभारत में वर्णित सरस्वती नदी से जोड़ते हैं।