आज हम आपको आपातकाल की रात के बारे में बताने जा रहे हैं जब सभी लोग चौंक गए थे! 15 अगस्त, 1975 की सुबह जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लाल किले के प्राचीर से अपना भाषण पढ़ना शुरू किया, तब वहां श्रोताओं में उनकी हमउम्र करीबी दोस्त पुपुल जयकर भी मौजूद थीं। पुपुल जयकर चाहती थीं कि इंदिरा ने 50 दिन पहले देश में जो इमरजेंसी लगाई थी, उसे 15 अगस्त के अपने संबोधन में वापस लेने का ऐलान करें, मगर इंदिरा ने ऐसा कुछ नहीं किया। 25-26 जून, 1975 की दरम्यानी रात को इंदिरा ने पूरे देश में आंतरिक आपातकाल यानी इमरजेंसी लगा दी थी। आज बात करते हैं कि इंदिरा ने किन हालातों में इमरजेंसी लगाई और उसकी पृष्ठभूमि क्या भारत के पड़ोस बांग्लादेश में होने वाली हलचल भी थी। साथ ही यह भी जानेंगे कि क्या आज कोई सरकार इमरजेंसी लगा सकती है? क्या हैं वो नियम, कानून जिनकी वजह से आपातकाल दोहराना संभव नहीं है। तब कोर्ट ने इंदिरा की जीत अवैध ठहराकर उनकी सदस्यता रद्द कर दी। 13 जून, 1975 को इंदिरा गांधी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी गई और कोर्ट से आग्रह किया गया कि वह इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूरे फैसले पर स्थगन दे दे। दूसरी ओर प्रधानमंत्री आवास संजय और उनके करीबी लोगों के नेतृत्व में राजनीतिक लड़ाई के लिए ‘ वॉर रूम’ में बदल गया।दस साल: जिनसे देश की सियासत बदल गई’ में कहा गया है कि 15 अगस्त, 1975 को लालकिले के प्राचीर से देश को संबोधित करने वाली इंदिरा गांधी के भाषण से पांच घंटे पहले ही दिल्ली से 1867 किलोमीटर दूर ढाका में बांग्लादेश के संस्थापक मुजीब उर रहमान और उनके परिवार की हत्या कर दी गई।
14 और 15 अगस्त की दरम्यानी रात सेना के कुछ युवा बागी अफसरों ने टैंकों के साथ मुजीब के आवास तक पहुंचकर उसे घेर लिया था। बागी फौजियों ने मुजीब, उनके तीनों बेटों, उनकी पत्नी, दो बहुओं, उनके भाई और दो नौकरों सहित कुल 20 लोगों की हत्या कर दी। इस कत्लेआम में मुजीबुर रहमान का सारा परिवार खत्म हो गया। बस उनकी दो बेटियां शेख हसीना और शेख रेहाना बच गईं, जो उस वक्त बांग्लादेश से बाहर जर्मनी में थीं। ये संयोग ही है कि आपातकाल के 50 साल के अवसर पर हाल ही में शेख हसीना भारत दौरे पर आई थीं।
सुदीप ठाकुर बताते हैं कि शेख मुजीब बांग्लादेश के निर्माण के साथ ही लोकप्रियता के चरम पर थे। मगर महज दो-तीन सालों के भीतर ही उनका शासन भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोपों से घिर गया। खुद उन पर तानाशाही के आरोप लगने लगे थे। भारी विरोध के बीच शेख मुजीब ने 25 जनवरी, 1975 को बांग्लादेश में आपातकाल लागू कर एकल पार्टी की व्यवस्था कायम कर दी थी। जब पुपुल जयकर उनसे मिलने गईं, तो इंदिरा ने आशंका जताई कि उन्हें और उनके परिवार को भी इसी तरह से निशाना बनाया जा सकता है। जैसा कि पुपुल जयकर ने इंदिरा के हवाले से लिखा, ‘मैंने खुफिया रिपोर्ट्स को अब तक नजरंदाज किया है, लेकिन अब मैं ऐसा नहीं कर सकती।’
मामला तब बिगड़ा, जब इंदिरा रायबरेली लोकसभा चुनाव जीत गईं और उनकी इस जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। तब कोर्ट ने इंदिरा की जीत अवैध ठहराकर उनकी सदस्यता रद्द कर दी। 13 जून, 1975 को इंदिरा गांधी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी गई और कोर्ट से आग्रह किया गया कि वह इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूरे फैसले पर स्थगन दे दे। दूसरी ओर प्रधानमंत्री आवास संजय और उनके करीबी लोगों के नेतृत्व में राजनीतिक लड़ाई के लिए ‘ वॉर रूम’ में बदल गया।
जब यह साफ हो गया कि इंदिरा गांधी इस्तीफा नहीं देंगी, तब संजय और उनके करीबी लोगों ने दो काम किए। एक तो यह कि इंदिरा के पक्ष में कांग्रेस नेताओं के बयान जारी करवाए गए। बता दें कि उसकी पृष्ठभूमि क्या भारत के पड़ोस बांग्लादेश में होने वाली हलचल भी थी। साथ ही यह भी जानेंगे कि क्या आज कोई सरकार इमरजेंसी लगा सकती है? क्या हैं वो नियम, कानून जिनकी वजह से आपातकाल दोहराना संभव नहीं है। दस साल: जिनसे देश की सियासत बदल गई’ में कहा गया है कि 15 अगस्त, 1975 को लालकिले के प्राचीर से देश को संबोधित करने वाली इंदिरा गांधी के भाषण से पांच घंटे पहले ही दिल्ली से 1867 किलोमीटर दूर ढाका में बांग्लादेश के संस्थापक मुजीब उर रहमान और उनके परिवार की हत्या कर दी गई। दूसरा, राजधानी में इंदिरा के पक्ष में जगह जगह रैलियां निकलवाई गईं। 18 जून, 1975 को कांग्रेस संसदीय दल की बैठक हुई और उसमें इंदिरा गांधी के नेतृत्व पर पूरी आस्था जताई गई। इसी बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने चाटुकारिता की सारी हदें पार करके कहा-इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया।