Friday, November 22, 2024
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आखिर क्या है लोकसभा में डिप्टी स्पीकर की अहमियत?

आज हम आपको लोकसभा में डिप्टी स्पीकर की अहमियत बताने जा रहे हैं! 18वीं लोकसभा के लिए बीजेपी सांसद ओम बिरला अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। लेकिन अभी भी लोकसभा के डिप्टी स्पीकर यानी उपसभापति पद को लेकर राजनीति गर्म है। विपक्ष डिप्टी स्पीकर का पद हासिल करने की उम्मीद कर रहा है। कांग्रेस के कई नेता खुले तौर पर इसकी मांग कर चुके हैं। विपक्ष ने स्पीकर पद के लिए भी अपना उम्मीदवार खड़ा किया था। पिछली बार यानी 17वीं लोकसभा (2019-24) के कार्यकाल में लोकसभा में कोई भी डिप्टी स्पीकर नहीं था। हालांकि 16वीं लोकसभा (2014-19) के कार्यकाल में बीजेपी के सहयोगी एआईएडीएमके के एम थम्बी दुरई डिप्टी स्पीकर बनाए गए थे। वहीं 1990 से 2014 तक लगातार उपसभापति का पद विपक्ष के पास रहा। आखिर लोकसभा के डिप्टी स्पीकर पद की क्या अहमियत है, विपक्ष इस पद की मांग क्यों कर रहा है? आइए बताते हैं। विपक्ष डिप्टी स्पीकर के पद को लेकर दावा कर रहा है कि लोकतंत्र में डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को मिलता रहा है। आखिर इसे लेकर संविधान क्या कहता है? सबसे पहले इसे समझ लेते हैं। डिप्टी स्पीकर पद को लेकर संविधान के आर्टिकल 95(1) में नियम हैं। इसके अनुसार, अगर लोकसभा स्पीकर का पद खाली है, तो ऐसे में डिप्टी स्पीकर अध्यक्ष के कर्तव्यों का पालन करता है। सदन की अध्यक्षता करते समय डिप्टी स्पीकर के पास अध्यक्ष के समान सामान्य शक्तियां होती हैं। नियमों में ‘स्पीकर’ के सभी संदर्भ उस समय के लिए डिप्टी स्पीकर के संदर्भ माने जाते हैं जब वह अध्यक्षता करता है। वहीं आर्टिकल 93 में कहा गया है कि लोकसभा में जल्द से जल्द दो सदस्यों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष नियुक्त करना चाहिए। आर्टिकल 178 में राज्य विधानसभाओं में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के लिए इसी तरह का प्रावधान है।

पिछली लोकसभा में कोई भी डिप्टी स्पीकर नहीं था। वहीं इस बार विपक्ष इसकी पुरजोर मांग कर रहा है। लेकिन ये समझना जरूरी है कि क्या लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद अनिवार्य होता है? दरअसल, संविधान में इस पद को लेकर कोई समय-सीमा तय नहीं की गई है। यही वजह है कि सरकार डिप्टी स्पीकर की नियुक्ति को टालती रहती हैं। हालांकि जानकारों का कहना है कि आर्टिकल 93 और 178 में ‘होगा’ और ‘जितना जल्दी हो सके’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है। ये बताता है कि लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद न सिर्फ जरूरी है बल्कि इसकी नियुक्ति जल्द से जल्द होनी चाहिए।

जिस तरह स्पीकर का चुनाव होता है, वही नियम डिप्टी स्पीकर के चुनाव के लिए भी है। डिप्टी स्पीकर का चुनाव सदन के सदस्य करते हैं। आमतौर पर लोकसभा और विधानसभा में नए सदन के पहले सत्र में स्पीकर को चुनाव जाने की प्रथा रही है। सांसदों की शपथ के बाद तीसरे दिन स्पीकर चुना जाता रहा है। वहीं दूसरे सत्र में डिप्टी स्पीकर का चुनाव होता है। लोकसभा में, डिप्टी स्पीकर का चुनाव लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमों के नियम 8 द्वारा होता है। नियम 8 के अनुसार, चुनाव ‘ऐसी तिथि पर होगा जिसे अध्यक्ष तय करेंगे’। डिप्टी स्पीकर का चुनाव तब होता है जब उनके नाम का प्रस्ताव पारित हो जाता है। एक बार चुने जाने के बाद, डिप्टी स्पीकर आमतौर पर सदन के भंग होने तक पद पर बने रहते हैं।

विपक्ष डिप्टी स्पीकर को लेकर लगातार मांग कर रहा है। वहीं बीजेपी की तरफ से विपक्ष की इस मांग को बेबुनियाद बताया जा रहा है। लेकिन क्या वाकई डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को देना जरूरी है? इसका जवाब नहीं है। ऐसा कोई नियम तो नहीं है, लेकिन आमतौर पर विपक्ष का डिप्टी स्पीकर बनाया जाता रहा है। उदाहरण के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली मनमोहन सरकार के दोनों कार्यकालों 2004 से 2009 और 2009 से 2014 तक डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष के पास रहा। पहले कार्यकाल में शिरोमणि अकाली दल के चरणजीत सिंह अटवाल और दूसरे कार्यकाल में बीजेपी के करिया मुंडा को डिप्टी स्पीकर बनाया गया था। इसके अलावा 1999 से 2004 तक जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तब कांग्रेस के पी एम सईद को डिप्टी स्पीकर बनाया गया था सईद 1998 से 1999 तक अल्पकालिक बीजेपी सरकार के दौरान भी डिप्टी स्पीकर थे। 1996 और 1997 के बीच, जब एच डी देवेगौड़ा प्रधानमंत्री थे, तब बीजेपी के सूरजभान को ये पद दिया गया था। इसके अलावा 1991-96 में पी वी नरसिंह राव सरकार में बीजेपी के के. एस मल्लिकार्जुनैया और चंद्रशेखर सरकार (1990-91) में कांग्रेस के शिवराज पाटिल डिप्टी स्पीकर बनाए गए थे।

कई सरकारें ऐसी भी रही हैं, जब या तो डिप्टी स्पीकर नहीं बनाए गए अगर बनाए गए तो अपने ही सहयोगी दलों के। 1952 से 1969 तक पहले चार डिप्टी स्पीकर सत्तारूढ़ कांग्रेस से थे। एआईएडीएमके के थम्बी दुरई पहली बार 8वीं लोकसभा (1984-89) में उपसभापति बने थे, जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। डीएमके के जी लक्ष्मणन ने इंदिरा गांधी सरकार में 1980 से 1984 तक इस पद को संभाला था। इनमें से प्रत्येक पार्टी उस समय कांग्रेस की सहयोगी थी। ऐसे में विपक्ष का ये दावा करना कि डिप्टी स्पीकर का पद उन्हें ही मिलना चाहिए इसका ना कोई नियम है ना ही कोई ठोस आधार। इसके अलावा जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं, वहां भी डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को नहीं दिया गया है, जबकि विधानसभा और लोकसभा के लिए स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के नियम एक जैसे ही हैं।

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