आज हम आपको बताएंगे कि सुनीता विलियम्स के साथ अंतरिक्ष में क्या-क्या हुआ है! भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स बोइंग के स्टारलाइनर अंतरिक्ष यान में सवार होकर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) अंतरिक्ष में बीते तीन हफ्तों से फंसी हुई हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा सुनीता और उनके सहयोगी बुच विलमोर की सकुशल वापसी की तमाम कोशिशें कर रही है। एक हफ्ते के इस मिशन तीन बार बढ़ाया जा चुका है। बताया जा रहा है कि नासा मिशन को 45 से 90 दिनों तक के लिए बढ़ा सकता है। 5 जून को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचने के बाद अंतरिक्ष यान में हीलियम की लीकेज की समस्या आई थी। साथ ही इसके 5 थ्रस्टर भी खराब हो गए थे। यहां तक कि यान को बिजली देने वाला सर्विस मॉड्यूल में भी दिक्कतें आई हैं। इस बारे में हमने बात की भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व वैज्ञानिक विनोद कुमार श्रीवास्तव से, जिन्होंने कई अहम जानकारी शेयर की। इसरो के पूर्व वैज्ञानिक विनोद कुमार श्रीवास्तव के अनुसार, सुनीता और उनके सहयोगी जिस स्पेसक्रॉफ्ट से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंचे हैं। यह स्पेस स्टेशन अमेरिका और रूस की संयुक्त कोशिश का नतीजा है। जिस कैप्सूल से अंतरिक्ष यात्रियों को वहां भेजा जाता है, उसे भेजने के लिए थ्रस्टर्स का यूज करते हैं। थ्रस्टर्स मिनी रॉकेट होते हैं, जिन्हें फायर किया जाता है। हीलियम गैस रॉकेट के टैंक को प्रेशराइज्ड किया जाता है और जरूरत के मुताबिक दबाव के अनुसार ये फायर किया जाता है। हीलियम को हाई प्रेशर पर रखा जाता है।
हीलियम को कई टैंकों में रखा जाता है, जिसे हाई प्रेशर पर इन टैंकों में रखा जाता है। यानी कम जगह में ज्यादा गैस रखी जाती है। इसे आमतौर पर 300-400 किलो पर सेंटीमीटर वर्ग में स्टोर किया जाता है। इंजन को कंट्रोल करने और रॉकेट को फायर करने के लिए हीलियम को उच्च दाब से निम्न दाब पर लाया जाता है। ये हीलियम गैस बॉटल में स्टोर है। एक्सपर्ट विनोद कुमार श्रीवास्तव के अनुसार, हीलियम नापने के लिए हीलियम लीक डिटेक्टटर सेंसर्स होते हैं, जो यान के इंजन में फिट होते हैं। ये जो बुलबुला निकल रहा है, उसे ही लीक कहा जाता है। इसे खुली आंखों से देखा नहीं जा सकता है। अगर महीने भर भी लीक होता है तो भी मिशन में खराबी नहीं आ सकती है। ये लीकेज 10 हजार लीटर में चंद बूंदों जितनी होती हैं, जिनके निकलने पर यान में ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। हां, ये है कि बाद में ये समस्या और बढ़ सकती है।
गैस सिलेंडर तकनीकी रूप में कहा जाता है। मुंह पर वॉल्व लगा होता है, वो बंद होता है। इस गैस में 300 से 400 किलोग्राम पर सेंटीमीटर वर्ग प्रेशर होता है। जैसे कार के टायर में हवा भरी होती है। यानी कम जगह में ज्यादा गैस भरी जाती है। जहां ज्यादा गैस होती है, उसे रिलीज कर दिया जाता है। उसका इस्तेमाल थ्रस्टर में किया जाता है। ISS पर मौजूदा वक्त में 8 कैप्सूल डॉक किया जा सकता है। अभी वहां पर रूस का ही कैप्सूल मौजूद है, जो इमरजेंसी में काम आता है। पहले अमेरिका का भी कैप्सूल होता था। मगर, अभी सारे कैप्सूल रूस के ही हैं। ये कैप्सूल स्टेशन पर डॉक हैं। अगर खराब से खराब स्थिति आती है तो रूस का कैप्सूल वहां पर है, जिससे एकसाथ 5 अंतरिक्ष यात्री धरती पर लौट सकते हैं। 5 यात्री स्टेशन पर हैं, जबकि बाकी सुनीता और बुच के आने से स्टेशन पर 7 यात्री हो गए हैं।
एक वक्त में स्टेशन पर ऐसे 8 पोर्ट हैं, जहां कैप्सूल लगा सकते हैं। अभी की तारीख में दो कैप्सूल हैं, जिसमें से एक रूस का है। चूंकि अमेरिका और रूस के बीच संबंध अच्छे नहीं हैं, इसलिए अमेरिका अभी अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा है। अमेरिका के पास 45 से 72 दिन का समय है, जिसमें वो यान की खामी में सुधार कर सकता है। यह भी हो सकता है कि स्टारलिंक के पास भी इमरजेंसी सिचुएशन के लिए एक कैप्सूल हो, जिसका अंतरिक्ष यात्रियों को धरती पर लाने में किया जा सकता है। स्पेस स्टेशन के मेनटेनेंस के लिए 2025 तक के एक एग्रीमेंट के अनुसार, हर 6 महीने में रूस को स्पेस स्टेशन पर कैप्सूल भेजना होता है। अगर अमेरिका अपनी कोशिश में नाकाम रहता है तो वह रूस से इस बारे में आग्रह कर सकता है। वह खाली कैप्सूल स्टेशन पर भेजेगा और यात्रियों को धरती पर लेकर आएगा। जब कैप्सूल को अनडॉक किया जाता है तो कम से 15-16 थ्रस्टर को एकसाथ फायर करना होगा। अनडॉक करने के लिए गैस से थ्रस्ट पैदा करते हैं, वो जब स्पेस स्टेशन से दूर चला जाता है तब थ्रस्टर्स का इस्तेमाल करते हैं। ऐसा नहीं करने पर अगर फायर कर दिया तो स्टेशन को नुकसान पहुंच सकता है।
धरती पर एंट्री करने के दौरान यान एक विशेष एंगल से प्रवेश करता है। यह एंगल 94.71 डिग्री से लेकर 99.80 डिग्री तक होता है। हर एंट्री एंगल से धरती के वातावरण में प्रवेश करने के बाद कैप्सूल का ऊपरी हिस्सा पूरा जल जाएगा और नीचे का हिस्सा, जिसमें यात्री रहते हैं वो पैराशूट से नीचे आ जाते हैं।