क्या कांग्रेस पार्टी को नहीं मिल रही है नई ऊर्जा?

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वर्तमान में कांग्रेस पार्टी को नई ऊर्जा नहीं मिल पा रही है! किसी भी राजनीतिक दल के उत्तरोत्तर विकास के लिए जरूरी है कि उसमें नई ऊर्जा समय-समय पर आती रहे। युवा और छात्र इकाइयों को राजनीतिक दलों की नर्सरी कहा जाता है। लेकिन देखें तो बीते डेढ़ दशक में कांग्रेस की यह नर्सरी बंजर सी हो गई है। जानकारों की मानें तो दोनों संगठनों के ढांचे में जबसे बदलाव हुए हैं तब से इन दोनों संगठनों से निकलने वाली पौध बेअसर हो गई है। न तो संगठन में अगली पीढ़ी के नेता आ रहे हैं, न ही कांग्रेस के आंदोलनों में वह धार बची है, जिसके लिए युवा जोश की जरूरत होती है। इस लोकसभा चुनाव में यूपी में छह सीटें जीतने के बाद कांग्रेस 2027 के विधान सभा चुनावों को लेकर योजना तैयार कर रही है। हालांकि आंदोलन की राह पकड़कर वह जिस तरह से अपने लिए राजनीतिक जमीन बनाना चाहती है, उसमें सबसे बड़ी कमी युवा जोश की है।अब इस कमिटी में जीते और हारे दोनों प्रतिनिधि होते हैं, लिहाजा चुनाव बाद भी एक भीतरी प्रतिस्पर्धा बनी रहती है, जो कि संगठन के विस्तार में काफी अड़चन पैदा करती है। ऐसे में जानकार मानते हैं कि इसमें बदलाव किया जाना चाहिए। यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई में बीते काफी समय से चुनाव की प्रक्रिया से कमिटी में पदाधिकारी निर्वाचित होते हैं। मनोनयन की कोई व्यवस्था नहीं है। कांग्रेस के नेता इस मसले पर काफी चिंतित भी दिखते हैं और वे मानते हैं कि यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई को दोबारा खड़ा करना बेहद जरूरी है। साथ ही वे मौजूदा सिस्टम और तौर तरीके में कुछ कमियां भी देखते हैं, जिसे बदलने की वकालत करते हैं।

यूथ कांग्रेस का संगठन दो जोनों में जबकि एनएसयूआई का संगठन तीन जोनों में बंटा हुआ है। ऐसे में हर जोन के मसले अलग हैं और उनका एक्सपोजर भी। अब मान लीजिए कि लखनऊ में किसी भी मसले पर विरोध प्रदर्शन किया जाना है तो उसमें मध्य जोन की हिस्सेदारी होगी जबकि बाकी के जोन के लोग उतनी निष्पक्षता से इसमें नहीं जुटते हैं। कांग्रेस का लंबे समय से सत्ता से दूर रहना और छात्र राजनीति को कुंद किया जाना भी एनएसयूआई को विस्तारित करने में बड़ी अड़चन है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव होते हैं, लिहाजा वहां संगठन ज्यादा बेहतर है। वो कहते हैं कि बदलाव होने हैं। सभी एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस की मजबूती की तरफ काम कर रहे हैं।ऐसे में संगठन की ताकत जमीन पर कम दिखती है। इसके अलावा किसी भी एक अध्यक्ष के पास इतनी ताकत नहीं होती है कि वह अपना प्रभाव जमीन पर दिखा सके। जब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी की प्रभारी बनाई गई थीं तब उनके समय में एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस ने जोनल सिस्टम समाप्त किए जाने की मांग की थी। उस समय बदलाव का आश्वासन तो दिया गया था, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी।

यूथ और एनएसयूआई में चुनाव के मार्फत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव होता है। चुनाव में जो जीता वह तो अध्यक्ष बना, लेकिन हारने वाला व्यक्ति उपाध्यक्ष बना रहता है। अब इस कमिटी में जीते और हारे दोनों प्रतिनिधि होते हैं, लिहाजा चुनाव बाद भी एक भीतरी प्रतिस्पर्धा बनी रहती है, जो कि संगठन के विस्तार में काफी अड़चन पैदा करती है। ऐसे में जानकार मानते हैं कि इसमें बदलाव किया जाना चाहिए। यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई में बीते काफी समय से चुनाव की प्रक्रिया से कमिटी में पदाधिकारी निर्वाचित होते हैं। मनोनयन की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में अगर किसी दूसरे दल की छात्र इकाई या यूथ विंग से अच्छे लोगों को लाना बेहद मुश्किल है क्योंकि उन्हें पदाधिकारी नहीं बनाया जा सकता है। इस तरह से छात्र इकाई और यूथ विंग के विस्तार की संभावनाएं भी काफी कम हैं।

यूपी में एनएसयूआई से लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व इनचार्ज रहे प्रणव पांडेय फिलहाल नैशनल सेक्रेटरी हैं और महाराष्ट्र के प्रभारी के तौर पर काम देख रहे हैं। प्रणव कहते हैं कि संगठन में काफी कुछ बदलाव अपेक्षित हैं। यूपी में भी अगले दो-तीन महीने में कुछ बदलाव होंगे। वो कहते हैं कि यूपी में कांग्रेस का लंबे समय से सत्ता से दूर रहना और छात्र राजनीति को कुंद किया जाना भी एनएसयूआई को विस्तारित करने में बड़ी अड़चन है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव होते हैं, लिहाजा वहां संगठन ज्यादा बेहतर है। वो कहते हैं कि बदलाव होने हैं। सभी एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस की मजबूती की तरफ काम कर रहे हैं। दो से तीन महीने में काफी बदलाव दिखाई देंगे।