आखिर उत्तराखंड के मजबूत गढ़ से कैसे हारी बीजेपी?

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Navi Mumbai: BJP workers celebrate the party's lead in Madhya Pradesh, Rajasthan and Chhattisgarh during counting of votes for elections to the Legislative Assemblies of the states, in Navi Mumbai, Sunday, Dec. 3, 2023. (PTI Photo)(PTI12_03_2023_000190A)

यह सवाल उठना लाजिमी है कि उत्तराखंड के मजबूत गढ़ से बीजेपी कैसे हारी है! उत्तराखंड में चल रहे विधानसभा उपचुनाव के वोटों की गिनती में भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगता दिख रहा है। प्रदेश की दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए थे। 10 जुलाई को दोनों सीटों पर वोट डाले गए थे। आज चुनाव परिणाम घोषित किया जा रहा है। दोनों ही सीटों के शुरुआती रुझानों में भाजपा पिछड़ती नजर आ रही है। भाजपा को बद्रीनाथ विधानसभा सीट पर कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा है। वहीं, मंगलौर विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी तीसरे स्थान पर खिसकती दिख रही है। मंगलौर सीट पर विधायक सरवत करीम अंसारी के निधन के बाद उपचुनाव हो रहा है। वहीं, बद्रीनाथ विधानसभा सीट के कांग्रेस विधायक राजेंद्र सिंह भंडारी के पाला बदलने के बाद उपचुनाव हो रहा है। बीजेपी दोनों सीटों पर बाहरी दूसरे दलों से आए उम्मीदवारों पर भरोसा करती दिख रही है। इस कारण कार्यकर्ताओं के बीच उनकी पकड़ ढीली बनती दिख रही है। उपचुनाव के शुरुआती रुझान इसी तरफ इशारा करते दिख रहे हैं। बद्रीनाथ निवर्तमान विधायक राजेंद्र सिंह भंडारी ने लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। इसके बाद उनकी विधानसभा सदस्यता चली गई थी। भाजपा ने उन्हें पार्टी उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतारा है। लेकिन, उपचुनाव के मैदान में वह पिछड़ते दिख रहे हैं। वहीं, मंगलोर सीट पर विधायक के निधन के बाद सहानुभूति की लहर का असर नहीं दिख रहा है। कांग्रेस उम्मीदवार यहां पर भी आगे चल रहे हैं। हालांकि, मंगलौर विधानसभा सीट पर कांग्रेस और बसपा के बीच चुनावी टक्कर होती दिख रही है। भाजपा यहां तीसरे स्थान पर की पिछड़ती नजर आ रही है।

बद्रीनाथ सीट पर भाजपा को कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। बद्रीनाथ से राजेंद्र सिंह भंडारी विधायक चुने गए। हालांकि, उन्हें भाजपा अपने पाले में लाने में कामयाब रही। ऐसे में यह सीट खाली हो गई। यहां से राजेंद्र भंडारी को एक बार फिर चुनावी मैदान में उतारा गया। हालांकि, इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा के बीच टक्कर होती दिख रही है। बद्रीनाथ विधानसभा सीट पर भाजपा ने पूर्व विधायक राजेंद्र भंडारी को उम्मीदवार बनाया। उनके समर्थन में पुष्कर सिंह धामी तक चुनावी मैदान में प्रचार करने उतरे। वहीं, मंगलौर विधानसभा सीट से करतार सिंह भड़ाना को प्रत्याशी बनाया गया। करतार सिंह भड़ाना हरियाणा और उत्तर प्रदेश में विधायक रह चुके हैं। उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा की सदस्यता ली थी। इस प्रकार भाजपा ने बाहरी उम्मीदवारों पर भरोसा जताया।

वहीं, कांग्रेस अलग रणनीति के साथ उपचुनाव के मैदान में उतरी। कांग्रेस ने मंगलौर सीट पर अनुभवी और बद्रीनाथ सीट पर नए चेहरे को चुनावी मैदान में उतारा। मंगलौर सीट से काजी मोहम्मद निजामुद्दीन और बद्रीनाथ सीट से प्रत्याशी लखपत बुटोला भाजपा को कड़ी टक्कर देते दिखे। उत्तराखंड उपचुनाव के चार राउंड के वोटों की गिनती के बाद असर साफ दिख रहा है। मंगलौर विधानसभा सीट पर कांग्रेस की बढ़त लगातार बड़ी हो रही है। कांग्रेस उम्मीदवार काजी मोहम्मद निजामुद्दीन ने 4898 वोटों की बढ़त बना ली है। तीसरे राउंड के वोटों की गिनती के बाद काजी मोहम्मद निजामुद्दीन 16,696 वोटों के साथ आगे निकलते दिख रहे हैं। वहीं, बहुजन समाज पार्टी के उबैदुर रहमान मोंटी 11,798 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर हैं। भारतीय जनता पार्टी के करतार सिंह भड़ाना 7630 वोट हासिल कर तीसरे स्थान पर हैं।बद्रीनाथ विधानसभा सीट पर तीसरे राउंड में भी कांग्रेस उम्मीदवार लखपत सिंह बुटोला बढ़त बनाई हुई है। कांग्रेस उम्मीदवार लखपत सिंह बुटोला लगातार पहले नंबर पर बने हुए हैं। उन्हें अब तक 7223 वोट मिले हैं। वहीं, भाजपा के राजेंद्र सिंह भंडारी 6062 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर हैं। इस प्रकार कांग्रेस उम्मीदवार ने 1161 वोटों की बढ़त बनाई हुई है।

बीजेपी ने पिछले समय में दूसरे दलों से नेताओं को लेकर चुनावी मैदान में उतारा है। लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान ऐसे मामले कई सीटों पर देखने को मिले। इन उम्मीदवारों से पार्टी का आम कार्यकर्ता कनेक्ट ही नहीं कर पाया। उत्तराखंड में भी यह होता दिख रहा है। बद्रीनाथ सीट पर 2017 के चुनाव में भाजपा ने कब्जा जमाया था। लेकिन, 2022 में पार्टी हार गई। इसके बाद विधायक राजेंद्र सिंह भंडारी को अपने पाले में ले आए। फिर उम्मीदवार बना दिया। इसको लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी थी। वहीं, मंगलौर में भी कारतार सिंह भड़ाना को लेकर स्थानीय कार्यकर्ताओं में कोई खुशी नहीं दिखी थी। कार्यकर्ता उदासीन हुए तो फायदा विपक्ष को मिलता दिख रहा है।