क्या जिहादियों से बच पाएगी भारत की सरकार?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या भारत की सरकार जिहादियों से बच पाएगी या नहीं! देश एक बड़े खतरे की चपेट में है। बढ़ रहा है, यह कहना अब गलत होगा। अब खतरा दिख रहा है, जकड़न महसूस की जा रही है, दिनोंदिन फंदा कसता जा रहा है। आज सोशल मीडिया के जमाने में कुछ छिपा नहीं रह पाता है। अलग-अलग धड़े एक-दूसरे की गलतियों, गतिविधियों की पोल सोशल मीडिया पर खोल रहे हैं। दक्षिणपंथी जमात क्या कर रहा है, एक-एक बात, हरेक घटना के डीटेल्स खूब तड़का लगाकर परोसे जा रहे हैं। दूसरी तरफ भी कई ऐसे हैंडल्स हैं जो सिर्फ और सिर्फ वामपंथी, जिहादी कार्रवाइयों का लेखा-जोखा पेश कर रहे हैं, पल-पल के अपडेट्स के साथ। अगर आप दोनों तरफ के दावों, घटनाओं की व्याख्या को छोड़कर सिर्फ वारदातों पर ही गौर करें तो रोंगटे खड़े हो जाएंगे। देश में जैसे-जैसे अमानवीय कृत्य लगभग हर दिन सामने आ रहे हैं, वो किसी भी देश, समाज, समुदाय या सरकार के लिए चिंताजनक हैं। और, अब तो यह भी कहा जा सकता है कि स्थिति सिर्फ चिंताजनक नहीं बल्कि खौफनाक हो गई है। सवाल है कि आखिर 10 सालों तक एक दल की बहुमत की सरकार और अब गठबंधन की बहुमत से तीसरी बार आई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार क्या नई पैदा हुई परिस्थितियों से वाकिफ भी है? अगर इसका जवाब हां में है तो एक नागरिक के तौर पर हर किसी की नींद उड़ जानी चाहिए। आइए पहले बात करते हैं कि देश में हो क्या रहा है।बात की शुरुआत पश्चिम बंगाल से। वही पश्चिम बंगाल जहां 1947 में मोहम्मद अली जिन्ना की ‘डायरेक्ट ऐक्शन डे’ की कॉल पर इंसानी लाशें बिछ गई थीं। आज उसी पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के एक विधायक कहते हैं कि ‘मुस्लिम राष्ट्र’ में सजा का यही प्रावधान है। बस कुछ दिन ही बीते हैं, उनके इस बयान के। संदर्भ उत्तरी दिनाजपुर जिले के चोपड़ा प्रखंड स्थित लक्ष्मीकांतपुर गांव में एक महिला के साथ सरेआम बर्बरता से जुड़ा है। महिला को टीएमसी का एक गुंडा ताजेमुल हक उर्फ जेसीबी बेरहमी से पीटता है, लेकिन मजाल है कि कोई चूं भी बोल दे। स्थानीय विधायक हमीदुर रहमान ने मीडिया के सवाल पर मुंह खोला भी तो कहा- मुस्लिम राष्ट्र में शरीया कानून के तहत सजा दी जाती है और यह इसी तरीके से लागू होती है। तो क्या बंगाल एक मुस्लिम राष्ट्र हो गया है? अगर नहीं तो फिर केंद्र सरकार ने इस पर क्या कार्रवाई की? मोदी सरकार ने ऐसा क्या किया कि कोई दूसरा हमीदुर रहमान ऐसा कहने की हिम्मत नहीं कर सके?

कोई कह सकता है कि कहने भर से शरिया लागू नहीं हो जाता और न हो मुस्लिम राष्ट्र बन जाता है। सही है, लेकिन कल ही झारखंड में जब हेमंत सोरेन सरकार के मंत्रियों ने शपथ ली तो राष्ट्रगान के वक्त मुस्लिम मंत्री हफीजुल हसन की हरकत निश्चित रूप से संविधान की आत्मा को रौंदने वाली थी। वो राष्ट्रगान नहीं गा रहे थे, ऊपर से वो राष्ट्रगान के बीच में ही आराम से अपना अंगोछा संभाल रहे थे। स्पष्ट संकेत था- राष्ट्रगान का मान मैं नहीं रखता। मुसलमान राष्ट्रगान का खुलेआम अपमान करते हैं। यह बेखौफ हो रहा है। बॉलिवुड के बड़े ऐक्टर नवाजुद्दीन सिद्दिकी का एक ऐसा ही वीडियो वायरल है। ये किस मानसिकता का प्रदर्शन है? यह आम मुसलमानों को क्या सिखा रहे हैं?

सवाल उलटा भी हो सकता है कि क्या आम मुसलमान जो इनके चाहने वाले हैं, क्या वो उनकी इच्छी के दबाव में, उन्हें खुश करने के लिए ही ये राष्ट्रगान का अपमान करते हैं? दोनों में कुछ भी सच हो सकता है या दोनों ही सच हो सकते हैं। आम मुसलमानों में राष्ट्रगान या भारत के प्रति सम्मान का भाव नहीं है, यह सच के ज्यादा करीब जान पड़ता है क्योंकि अगर ऐसा नहीं है तो वो ऐसे लोगों के प्रति हिकारत का भाव रखते और देश को पता चल जाता है कि आम मुसलमान इन ओहदेदारों की हरकतों से नाखुश हैं। क्या कभी किसी मुसलमान से ऐसी प्रतिक्रिया किसी ने देखी है? सवाल है कि जब करोड़ों की आबादी इस देश, इसके प्रतीकों के प्रति हिकारत का भाव रखती है, तो फिर सरकार क्या कर रही है?

आम मुसलमानों का बड़ा वर्ग किस तरह जहरीला हो चुका है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश का कोई कोना ऐसा नहीं बचा है जहां करीब-करीब हर दिन कोई ना कोई जिहाद प्रेरित वारदात नहीं होती है। क्या पूरब क्या, पश्चिम और क्या उत्तर, क्या दक्षिण; चौतरफा जिहादी वारदातों से हिंदू समाज त्रस्त है और उसके अस्तित्व पर संकट गहराता जा रहा है। कुछ सोशल मीडिया हैंडल्स को फॉलो कर लीजिए, आपकी नींद उड़ जाएगी वारदातों की फेहरिश्त देखकर। स्कूल, कॉलेज, कोचिंग सेंटर, जिम, दुकानें… जहां देखिए हर जगह मुसलमानों का आतंक। दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर में मुस्लिम टीचर्स बच्चों को बेहद योजनाबद्ध तरीके से कन्वर्ट करते हैं, इसकी खबर कल ही सामने आई है। स्कूल-कॉलेजों में मुस्लिम लड़के-लड़कियां गैर-मुस्लिम साथियों के दिमाग फिराने में लगे हैं।

जहां भी लड़कियों या महिलाओं का आना-जाना है, वहां मुसलमान लड़के तैनात होते हैं, धोखे से प्यार के जाल में फांसने के लिए। नाम बदलकर डोरा डालते हैं और फिर बात क्रूरता और हत्या तक पहुंच जाती है। देश लगातार देखता आ रहा है कि कैसे हिंदू बच्चियों की बेहरमी से हत्या की जा रही है। अगर ये आम अपराध है तो फिर इसका उलटा भी होना चाहिए। क्या हिंदू लड़के भी धोखे से मुस्लिम लड़कियों को फंसा रहे हैं, उन पर बर्बरता कर रहे हैं या धर्म परिवर्तन नहीं करने पर हत्या कर रहे हैं? अगर नहीं तो फिर मुसलमानों के ये अमानवीय कृत्य आम अपराध कैसे हैं? जब एक ही पैटर्न पूरे देश में दिख रहा हो, जब कहीं भी न अपराधी का समुदाय अलग हो और ना ही पीड़िता का, तो फिर यह आम अपराध कैसे हो सकता है? क्या सरकार को यह नहीं सोचना चाहिए?

10 साल की मजबूत मोदी सरकार ने जिहादी फंडिंग पर रोक लगाना तो दूर, उसकी तरफ ताकना भी मुनासिब नहीं समझा। उलटे देश में हलाल सर्टिफिकेशन देने वाली मुस्लिम संस्थाएं कुकुरमुत्ते की तरह उग आईं। क्या सरकार बताएगी कि किस कानून के तहत किसी प्राइवेट पार्टी को हलाल सर्टिफिकेशन देने की छूट दी गई है? हलाल सर्टिफिकेशन देने वाली दुनियाभर की मुस्लिम संस्थाओं के खिलाफ उंगलियां उठ रही हैं कि वो कंपनियों से मिली अकूत दौलत का इस्तेमाल आतंकी और जिहादी फंडिग में कर रही हैं। क्या भारत में ऐसा नहीं हो रहा है? इससे भी बड़ा सवाल है कि अगर हलाल सर्टिफिकेशन की जरूरत है तो यह सरकार की अथॉरिटी में क्यों नहीं हो? क्यों नहीं, आईएसआई, एफएसएसएआई जैसी संस्थाओं के हाथ हलाल सर्टिफिकेशन का दायित्व दिया जाए?

जहां तक बात हिंदुओं की तरफ से हो रहे अपराधों का है, वो ज्यादातर मामलों में सिर्फ और सिर्फ प्रतिक्रिया है, विवशता है, लाचारी है। हालांकि, सोशल मीडिया पर इसे भी खूब बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है, लेकिन ऐसा करने वाले मुस्लिम आतंक पर चुप रहते हैं और कई बार तो तरह-तरह की आड़ लेकर समर्थन भी करते हैं। यह इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। हिंदू समाज का यह वर्ग स्टॉकहोम सिंड्रोम का शिकार है। उसका इलाज भी सरकार ही कर सकती है।